अशोका यूनिवर्सिटी में बगावत! अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसरों ने गवर्निंग बॉडी को लिखा खुला पत्र

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नई दिल्ली। अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास के शोध पत्र ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ (दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतांत्रिक स्खलन) पर विवाद बढ़ गया है। दास के इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद,अर्थशास्त्र विभाग ने बुधवार को गवर्निंग बॉडी को एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि अशोका विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी के अध्ययन की “गुणों की जांच” करने की प्रक्रिया में “हस्तक्षेप” से “फैकल्टी के पलायन में तेजी” आने की संभावना है। यानि यदि विश्वविद्यालय का यही माहौल रहा तो कुछ और प्रोफेसर इस्तीफा दे सकते हैं।

विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के आधिकारिक एक्स हैंडल द्वारा पोस्ट किए गए गवर्निंग बॉडी को खुला पत्र, अशोका विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस (सीईडीए) के संस्थापक निदेशक अश्विनी देशपांडे ने भी साझा किया। जब उनसे पूछा गया कि क्या पत्र विभाग की ओर से सर्वसम्मति से जारी किया गया था? तो उन्होंने इसका उत्तर देते हुए कहा, “हां”। इसमें मांग की गई कि सब्यसाची दास को “बिना शर्त” विश्वविद्यालय में उनके पद पर लाया जाए। और गवर्निंग बॉडी “किसी समिति या किसी अन्य संरचना के माध्यम से संकाय अनुसंधान का मूल्यांकन” करने में कोई भूमिका न निभाए।

पत्र में कहा गया है कि, “हमारे सहयोगी प्रोफेसर सब्यसाची दास द्वारा इस्तीफे की पेशकश और विश्वविद्यालय द्वारा जल्दबाजी में स्वीकृति ने अर्थशास्त्र विभाग के संकाय, हमारे सहयोगियों, हमारे छात्रों और हर जगह अशोका विश्वविद्यालय के शुभचिंतकों के प्रति हमारे विश्वास को गहराई से तोड़ दिया है। विश्वविद्यालय नेतृत्व को इस मुद्दे पर राय जाहिर करनी चाहिए।”

पत्र के अनुसार, “हम गवर्निंग बॉडी से इस मामले को लेकर तुरंत संज्ञान लेने का आग्रह करते हैं, लेकिन 23 अगस्त, 2023 से ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए। ऐसा करने में विफलता विश्वविद्यालय के सबसे बड़े शैक्षणिक विभाग और विश्वविद्यालय के दृष्टिकोण को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर देगी।”

इस मुद्दे पर चर्चा के लिए दिन में संकाय की एक आपात बैठक भी बुलाई गई है। यह घटनाक्रम अशोका विश्वविद्यालय में नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से ठीक तीन दिन पहले आया है। अशोका विश्वविद्यालय के प्रवक्ता और कुलपति को भेजे गए ईमेल का अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

अशोका विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और रचनात्मक लेखन विभागों ने भी अर्थशास्त्र विभाग के लिए समर्थन व्यक्त करते हुए कई गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को लिखा है कि “हम अर्थशास्त्र विभाग में अपने सहयोगियों के साथ खड़े हैं और उनकी मांग को दोहराते हैं कि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर सब्यसाची दास को उनके पद पर बहाल किया जाए। अन्य विभागों ने कहा “हम इस असफलता के लिए जिम्मेदार गवर्निंग बोर्ड और वरिष्ठ सहयोगियों से जवाबदेही की भी मांग करते हैं, और गवर्निंग बॉडी से पुष्टि चाहते हैं कि यह संकाय अनुसंधान के मूल्यांकन में कोई भूमिका नहीं निभाएगा या वरिष्ठ संकाय को तदर्थ समितियों या निकायों में नियुक्ति करके इस अभ्यास को करने के लिए मजबूर करेगा।”

अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने पिछले सप्ताह इस्तीफा दे दिया था। विश्वविद्यालय ने सोमवार को उनके इस्तीफे की पुष्टि की और एक बयान में कहा, “उन्हें मनाने के काफी प्रयास करने के बाद, विश्वविद्यालय ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।” भारतीय चुनावों पर डॉ. सब्यसाची दास का पेपर हाल ही में सोशल मीडिया पर साझा किए जाने के बाद व्यापक विवाद का विषय बन गया था, जहां कई लोगों ने इसे विश्वविद्यालय के विचारों को प्रतिबिंबित करने वाला माना था। विश्वविद्यालय अपने संकाय और छात्रों द्वारा किए गए शोध को निर्देशित या मॉडरेट नहीं करता है। यह शैक्षणिक स्वतंत्रता डॉ. सब्यसाची दास पर भी लागू होती है।

गवर्निंग बॉडी को लिखे खुले पत्र में अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है कि, “प्रो. दास ने अकादमिक अभ्यास के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया। सहकर्मी समीक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से शैक्षणिक अनुसंधान का पेशेवर तौर पर मूल्यांकन किया जाता है। उनके हालिया अध्ययन की खूबियों की जांच करने की इस प्रक्रिया में गवर्निंग बॉडी का हस्तक्षेप संस्थागत उत्पीड़त करने वाला है, इस तरह के हस्तक्षेप अकादमिक स्वतंत्रता को कम करते हैं और विद्वानों को डर के माहौल में काम करने के लिए मजबूर करता है। हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और सामूहिक रूप से गवर्निंग बॉडी द्वारा व्यक्तिगत अर्थशास्त्र संकाय सदस्यों के शोध का मूल्यांकन करने के भविष्य में किसी भी प्रयास में सहयोग करने से इनकार करते हैं।”

गवर्निंग बॉडी में अशोक यूनिवर्सिटी के चांसलर रुद्रांग्शु मुखर्जी, वाइस चांसलर सोमक रायचौधरी, मधु चांडक, पुनीत डालमिया, आशीष धवन, प्रमथ राज सिन्हा, सिद्धार्थ योग, दीप कालरा और जिया लालकाका शामिल हैं।

गवर्निंग बॉडी को लिखे खुले पत्र में कहा गया है कि “विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग को बड़ी मेहनत से तैयार किया गया था, जिसे देश के प्रमुख अर्थशास्त्र विभागों में व्यापक रूप से माना जाता है।” “गवर्निंग बॉडी के द्वारा कार्रवाई विभाग के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। इससे प्रोफेसरो के पलायन की संभावना है, और हमें नए संकाय को लाने में मुश्किल का सामना करना पड़ा सकता है।”

सब्यसाची दास का शोध पत्र “डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी” भारत में 2019 के आम चुनाव में हुए अनियमित पैटर्न का दस्तावेजीकरण करता है और कमियों को पहचानने की कोशिश करता है।

विश्वविद्यालय ने एक ऑनलाइन पोस्ट में खुद को रिसर्च पेपर से अलग कर लिया था, जिसके बाद कहा गया था कि विश्वविद्यालय संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी “व्यक्तिगत क्षमता” में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है।

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