ARVIND KEJRIVAL

दिल्ली चुनाव नतीजों के बाद केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व चुनने की मजबूरी

दिल्ली चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने वाले लगभग सभी लोग इस बात पर सहमत हैं कि अरविंद केजरीवाल के काम को जीत मिली है, लेकिन केजरीवाल ने चुनाव जीतते ही उसे नकार दिया है।

दिल्ली की जनता ने भाजपा के उग्र सांप्रदायिक एजेंडे को नकार दिया। नरेंद्र मोदी की टीम ने पूरे चुनाव को सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला में बदल दिया था। चुनाव के दौरान ऐसी बातें कहीं गईं, ऐसे नारे लगे, जो पहले कभी नहीं लगे थे। शाहीन बाग को पाकिस्तान बता दिया गया। यही नहीं गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली चुनाव के दौरान साफ कहा था कि यह दो विचारधाराओं की लड़ाई है, लेकिन दिल्ली की जनता ने उनकी सांप्रदायिक विचारधारा को दरकिनार कर दिया। जनता ने केजरीवाल के काम को तरजीह दी और उनके सेकुलर मिजाज को चुना। उन्हें दूसरी बार बंपर सीटों से जिता दिया।

दिलचस्प विडंबना यह है कि काम के लिए वोट मांगने वाले अरविंद केजरीवल ने दिल्ली के चुनाव नतीजे आते ही अपनी गाड़ी बीजेपी के ट्रैक पर उतार दी। अचानक ही वह हिंदू हृदय सम्राट बनने की कोशिश में उतर पड़े। उन्होंने मंच से न सिर्फ वंदेमातरम् का नारा लगाया बल्कि दिल्ली चुनाव में मिली जीत को हनुमान जी की कृपा बताया। उन्होंने हनुमान जी को धन्यवाद भी दिया।

यही नहीं जीतने के तुरंत बाद उन्होंने गांधी जी की समाधि पर जाना जरूरी नहीं समझा बल्कि हनुमान जी के मंदिर का रुख किया। वह यह सब व्यक्तिगत तौर पर भी कर सकते थे। जीतने के बाद तमाम नेता भगवान की पूजा करते भी हैं, लेकिन वह उनका निजी आयोजन होता है सार्वजनिक नहीं। इसके विपरीत केजरीवाल ने बाकायदा इसके लिए पूरा मीडिया मैनेजमेंट किया।

मनीष सिसोदिया ने अपनी जीत के बाद कुछ दूर तक पैदल मार्च किया। इस यात्रा के दौरान जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे भी लगाए गए। टीवी देख रहे तमाम लोगों को भ्रम हुआ होगा कि शायद यह बीजेपी के कैंडिडेट हैं। चुनाव नतीजे आ जाने के बाद आखिर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जो उन्होंने बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के खिलाफ मिली जीत को सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे में उतार दिया। क्या यह समझा जाए कि आम आदमी पार्टी भाजपा की तरह आक्रमक हिंदुत्व की जगह अब सॉफ्ट हिंदुत्व के ट्रैक पर ही अपनी गाड़ी चलाएगी। यह काफी अहम सवाल हैं।

अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जबकि लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के उस वक्त अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाया था। इसके बाद लोकसभा चुनावों में मिली हार से पूरी पार्टी इसी निष्कर्ष पर पहुंची थी कि कांग्रेस को अपने मूल सेकुलर एजेंडे पर कायम रहना चाहिए। पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हाल के वर्षों में कांग्रेस ने सरकार बनाई है। कहीं भी किसी मुख्यमंत्री ने केजरीवाल की राह नहीं पकड़ी।

दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग के सवाल पर बिदकते रहे। उन्होंने रिपोर्टरों के शाहीन बाग से संबंधित हर सवाल के जवाब से कन्नी काट ली। तब ऐसा समझा गया था कि वह चुनावी मजबूरी की वजह से ऐसा कर रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद देश के सेकुलर लोगों को उम्मीद थी कि वह जीत के बाद अपने पहले भाषण में कुछ सार्थक बातें करेंगे। दिल्ली के विकास के बारे में बात रखेंगे, लेकिन वह आई लव यू और फ्लाइंग किस के बाद धार्मिक प्रवचन पर उतर आए। यह भी बताना नहीं भूले कि आज पत्नी का बर्थ डे है और यह हनुमान जी का उपहार है। हमें समझना होगा कि इस देश का चरित्र सेकुलर है। अगर ऐसा नहीं होता तो सीएए की मुखालफत में और मुसलमानों के समर्थन में इतनी बड़ी संख्या में सभी धर्मों के लोग साथ नहीं खड़े होते। खुद अरविंद केजरीवाल भी नहीं चुने जाते।

1947 में देश के बंटवारे में दूसरे विश्व युद्ध से ज्यादा लोग मारे गए थे। उस वक्त सांप्रदायिकता उफान पर थी। ऐसी हालत में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भारत का मूल चरित्र सेकुलर घोषित करना आसान नहीं रहा होगा। आज राज्य का चरित्र हिंदू गढ़ा जा रहा है। दिलचस्प यह है कि हम उसे स्वीकार ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसके पक्ष में तर्क भी गढ़ रहे हैं। आश्चर्य तब होता है कि उस दौड़ में केजरीवाल भी शामिल हो जाते हैं। अब हमें केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व का एजेंडा चुनना बुरा नहीं लगता।

केजरीवाल के भाजपा को हराने के बाद तमाम बुद्धिजीवी, सेकुलर और कम्यूनिस्ट भक्ति भाव के मोड में हैं। वह केजरीवाल के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। लोग या तो नफरत करते हैं या फिर भक्त हो जाते हैं। पहली सूरत में कट्टर होते जाते हैं। हर बात को नकारना आदत हो जाती है। दूसरी सूरत में भक्ति भाव में पूरी तरह से समर्पित। फिर जरा सी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती। यही भाववाद है। यही आज का भक्तिवाद है। जहां आलोचना के लिए स्पेस खत्म हो जाए। जैसे मोदी के भक्त उससे भी आगे निकल गए हैं और जांबी बन गए हैं। जांबी यानी ऐसी स्थित जहां कुछ भी सुनने-समझने का सेंस ही खत्म हो जाए।

केजरीवाल की भाजपा पर प्रचंड जीत के बाद मोदी विरोधी भी भक्तिभाव से आह्लादित हैं। उन्हें केजरीवाल की आलोचना बर्दाश्त नहीं है। धर्म एक अंधा कुंआ है। इसका कोई अंत नहीं है। हम पाकिस्तान का हाल देख रहे हैं। धर्म हमारा बहुत निजी मामला है। जब उसका प्रदर्शन होने लगे तो समझिए कि गाड़ी गलत दिशा में जा रही है। जनता को धर्म की चाश्नी में डुबोकर मूर्ख बनाने की तैयारी की जा रही है।

कुमार रहमान

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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