टेस्ला-बीवाईडी की रेस में भारत कहां खड़ा है?

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नई दिल्ली। बहुत संभव है कि यह सवाल भारतीय परिप्रेक्ष्य में सामयिक न लगे, लेकिन विश्व की विशालतम आबादी वाले देश के सामने यह प्रश्न आने वाले दिनों में उत्तरोत्तर परेशान करने वाला है। ऐसे में आज जब अमेरिकी समाचारपत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल ने प्रमुख चीनी इलेक्ट्रिक कार और बस निर्माता कंपनी बीवाईडी को लेकर पूरे एक पेज का लेख छापा, क्योंकि विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क की मशहूर कंपनी टेस्ला को अब कहीं न कहीं चीनी कंपनी बीवाईडी पछाड़ने की स्थिति में पहुंच चुकी है, तो यह साफ़ दिखाता है कि भविष्य की दिशा और दशा को कौन निर्णायक स्वरुप देने जा रहा है।

बीवाईडी की कहानी वाल स्ट्रीट जर्नल की जुबानी

बिल्ड योर ड्रीम (बीवाईडी) कंपनी की कहानी कुछ यूं है कि 1966 में एक धनी किसान परिवार में जन्में, लेकिन बचपन में ही अनाथ वांग चुंफू इस कंपनी के संस्थापक हैं। अमेरिकी अखबार के हवाले से जुलाई-सितंबर 2023 तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि बीवाईडी पूर्ण इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री 4,31,603 रही, जो टेस्ला के 4,35,059 से कुछ ही कम है।

बीवाईडी पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक हाइब्रिड कारों के उत्पादन में भी है, और इस वर्ष उसका लक्ष्य 36 लाख कार उत्पादन है। इसका अर्थ है दुनिया की 10 सबसे अधिक कार निर्माताओं की सूची में बीवाईडी भी एक होने जा रहा है। लेकिन अमेरिकी थिंक टैंक की चिंता भविष्य को लेकर है, जिसमें वर्तमान में टेस्ला इलेक्ट्रिक कार निर्माण में पहले स्थान पर है, लेकिन यह स्थान जल्द ही उससे छिन जाने वाला है।

वांग चुन्फू ने 1995 में मोबाइल बैटरी के क्षेत्र में इस व्यवसाय की शुरुआत की थी, लेकिन आज स्थिति यह है कि चीन में जर्मनी मूल की वॉक्सवैगन की बिक्री को इसने पछाड़ दिया है। पिछले दिनों जर्मनी में ऑटो-एक्सपो में बीवाईडी में तकनीकी बदलावों को देखकर जर्मन तकनीक विशेषज्ञ हैरान थे, और इसके बाद कंपनी ने चीन में अपने सेल्स को बरकारर रखने के लिए मॉडल में कई बदलाव के लिए अरबों डॉलर निवेश की घोषणा की है।

सितंबर में म्यूनिख में ऑटो शो में बीवाईडी बूथ पर विजिटर्स की उमड़ी भीड़ ने दूसरे ऑटो निर्माताओं की नींद हराम कर रखी है। हालत यह थी कि प्रतिद्वंदी कार निर्माताओं के अधिकारियों द्वारा टेस्ट ड्राइव के लिए एडवांस में दिन बुक किया जा रहा था। बीवाईडी ने अपने एक्सपोर्ट मॉडल Atto3 प्रीमियम ईवी कार की कीमत 40,000  डॉलर (32 लाख रूपये) आंकी थी। एलन मस्क की टेस्ला -S की कीमत करीब 70,000 डॉलर (56 लाख रूपये) फीचर्स और बैटरी क्षमता के हिसाब से बेहद कड़ी चुनौती पेश करती है।

पत्र के मुताबिक वांग और उनकी साझेदार ली इस कंपनी की आधारशिला हैं। वांग जहां कंपनी के भीतर रिसर्च, कॉस्ट-कटिंग और नवोन्मेष पर पूरी तरह से खुद को केंद्रित रखते हैं, वहीं ली देश और बाहरी देशों में बिक्री और आर्डर लाने के काम को देखती हैं।

वाल स्ट्रीट जर्नल ने आगे लिखा है कि बीवाईडी ने सबसे पहले टोयोटा उत्पादों की नकल से अपनी शुरुआत की, लेकिन लागत में कमी लाने के लगातार प्रयासों का ही नतीजा था कि टोयोटा के सीईओ अकीदो टोयोडा इन सीक्रेट्स के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए इसके संयंत्र में पहुंचे थे। पत्र के अनुसार चीनी प्रशासन द्वारा भी सरकारी फ्लीट्स में बीवाईडी की खरीद ने इसे आवश्यक समर्थन दिया, जिसके चलते ईवी मार्केट में इसके विस्तार को मदद प्राप्त हुई थी।

कंपनी अगले वर्ष करीब 4 लाख ईवी कार के निर्यात का लक्ष्य रखती है। चीन से बाहर, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, इजराइल और थाईलैंड में यह पहले से सर्वाधिक बिकने वाली ईवी कार है, लेकिन यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी इसने बेहद आक्रामक मार्केटिंग रणनीति अपनाई हुई है। आज स्थिति यह है कि अमेरिकी और यूरोपीय ऑटो निर्माता बीवाईडी के इस असाधारण विकास को देखते हुए बेहद घबराए हुए हैं, और संदेह जता रहे हैं कि हो न हो चीनी सरकार द्वारा कंपनी को अनुचित मदद की जा रही है।

जबकि तथ्य यह है कि पिछले वर्ष तक अमेरिका, यूरोप, चीन सहित भारत में भी ईवी वाहनों पर सरकारी सब्सिडी दी जा रही थी, जिसे अब खत्म कर दिया गया है। भारत में दो-पहिया वाहन की बिक्री में भारी कमी के पीछे यह सबसे बड़ी वजह है।

लेकिन बीवाईडी की रिकॉर्ड सेल अभी भी बड़े पैमाने पर घरेलू बाजार पर ही केंद्रित है। अभी उसने अमेरिकी बाजार में प्रवेश नहीं किया है। इसके बजाय उसने बस और ट्रक के बाजार में एंट्री को प्राथमिकता दी है, और चुनिंदा चोटी के निर्माताओं में खुद को शामिल कर लिया है।

टेस्ला और एलन मस्क की दुनिया

दूसरी तरफ यदि टेस्ला को देखें तो उसके पास पहले से अमेरिका और यूरोप का बाजार उपलब्ध था, जहां नई तकनीक और दाम चुकाने वाले ग्राहकों की संख्या मौजूद थी। ऊपर से paypal, स्टारलिंक और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के संस्थापक एलन मस्क को लेकर पहले ही बाजार में मशहूर रहा है कि बंदा जिस चीज को छू ले, वह चोटी पर पहुंच जाती है। इतना ही नहीं चीन में टेस्ला प्लांट की मौजूदगी और बड़ी संख्या में चीनी बाजार में खपत के साथ टेस्ला पहले से ईवी कार क्षेत्र में लगभग सभी बड़े बाजारों में पहले से मौजूद है। भारत में भी टेस्ला के लिए निवेश को लेकर आधिकारिक स्तर पर वार्ता हुई है, लेकिन एलन मस्क का जोर इस बात को लेकर बना हुआ है कि भारत में घरेलू खपत के मद्देनजर ही प्लांट लगाने के बारे में वे विचार कर सकते हैं।  

हाल ही में देखने में आया है कि भारत में भी छोटी और किफायती कारों का बाजार लगातार सिकुड़ता जा रहा है, और इसके स्थान पर एसयूवी और सेडान कारों के बाजार में विस्तार का सिलसिला जोर पकड़ रहा है। मर्सिडीज बेन्ज़ सहित कई विदेशी ब्रांड्स की बिक्री में भारी इजाफा हुआ है। लेकिन यह बिक्री अभी भी लाख पार नहीं का सकी है।

टेस्ला का बेसिक मॉडल 60 लाख रूपये से शुरू होता है, और भारत में निवेश से पहले यदि कम से कम 1 लाख सालाना बिक्री का मार्केट नहीं बनता है, तो ऐसे में अरबों डॉलर का निवेश और ओईएम श्रृंखला एक अलग चुनौती बन जाती है। जबकि जुलाई में बीवाईडी ने भारत में 1 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ हैदराबाद में मेघना कंस्ट्रक्शन के साथ संयुक्त उपक्रम के तहत सालाना 15,000 कारों के निर्माण का प्रस्ताव पेश किया था, जिसे भारत सरकार ने फिलहाल ठुकरा दिया है। हालांकि, बीवाईडी कारों के आयात को लेकर मनाही नहीं है।

अब सज्जन जिंदल चीनी कंपनी SAIC के साथ ईवी कार निर्माण में उतरेंगे

हाल ही में खबर आ रही है कि जेएसडब्ल्यू स्टील समूह के सज्जन जिंदल और SAIC मोटर कारपोरेशन के साथ एमजी मोटर्स को शामिल कर जनवरी 2024 तक भारत में भी इलेक्ट्रिक कार निर्माण का काम शुरू हो जायेगा। इसमें SAIC के पास 51% और सज्जन जिंदल-एमजी मोटर्स के पास 32-35% हिस्सेदारी रहेगी। एमजी मोटर्स का गुजरात के हलोल में संयंत्र था, जिसकी कीमत पहले 8 बिलियन डॉलर आंकी गई थी, लेकिन अब इसका मुल्यांकन 1।5 बिलियन डॉलर आंका गया है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो ईवी कार की बिक्री में SAIC की वैश्विक स्थिति 15वें स्थान पर है, जबकि बीवाईडी पहले पायदान पर काबिज है। इसके बाद क्रमशः टेस्ला, वॉक्सवैगन, stellantis, जनरल मोटर्स, हुंडई एवं बीएमडब्ल्यू  जैसी ईवी कार निर्माता कंपनियों का स्थान है।

भारत में भी ईवी कारों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। नई दुनिया अखबार की मानें तो 2020 से मई 2023 तक इसमें 223% का इजाफा हुआ है। लेकिन कुल बिक्री के आंकड़े सिर्फ 48,000 ही हैं। इसमें टाटा मोटर्स ने दो इलेक्ट्रिक कारें लांच की हैं, एक है नेक्सन ईवी और दूसरी है टिगोर ईवी। टाटा मोटर्स की हिस्सेदारी 86% बताई जा रही है। इसके बाद एमजी की ZS ईवी है, और हुंडई की Kona ईवी। मारुती सुजुकी भी 2025 तक ईवी बाजार में उतर रही है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या इन कार निर्माताओं के पास अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट से कुछ ठोस बुनियाद है, या ये सिर्फ विदेशों से आयातित ब्रांड्स पर अपनी चेंपी लगाकर मेक इन इंडिया का नारा बुलंद कर रहे हैं, और production link incentive (पीएलआई) जैसे मोदी सरकार की स्कीम के असली लाभार्थी हैं? चीन में वांग की सफलता का राज प्रमुखतया बैटरी से जुड़ा हुआ है।

इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी की क्षमता, चार्जिंग और लागत ही किसी कार को प्रतिस्पर्धी बनाती है। बीवाईडी की असाधारण सफलता के पीछे वांग की 90 के दशक से ही बैटरी के क्षेत्र में आर एंड डी पर जोर के साथ-साथ कैपिटल इंटेंसिव तकनीक की बजाय सस्ते श्रम का अधिकतम उपयोग छिपा है। एलन मस्क की टेस्ला की तुलना में लगभग आधे दाम पर ईवी कार का निर्माण करने वाली बीवाईडी के सामने चुनौती कम आपूर्ति की समस्या रहने वाली है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, शेंजेन के बीवाईडी प्लांट में न्यूनतम मजदूरी 750 डॉलर है (60,000 रूपये), जबकि शंघाई स्थित टेस्ला के प्लांट में यह 1,000 डॉलर (80,000 रूपये) बैठता है। लेकिन अख़बार ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि वांग द्वारा इंटीग्रेटेड प्लांट के निर्माण ने कुल लागत को काफी कम कर दिया है, और इस चुनौती को कोई भी प्रतिस्पर्धी ईवी कार निर्माता कंपनी चुनौती देने की स्थिति में नहीं है।

वाहन प्रदूषण से मरते लाखों लोगों का एकमात्र विकल्प ईवी वाहन

ऐसे में सवाल उठता है कि यदि विकास भी चाहिए और अपने देशवासियों को स्वस्थ भी रखना है तो उन नए विकल्पों की तलाश में जाना ही होगा, जिसमें स्वच्छ उर्जा, जल और वाहन सर्वप्रमुख हो चुके हैं। हमारे देश में टाटा और बिड़ला समूह पिछले कई दशकों से कार निर्माण के क्षेत्र में शामिल रहे हैं।

आज भारत भले ही विश्व में कार निर्माण के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम हासिल कर चुका है, लेकिन जल्द ही डीजल और पेट्रोल से चलने वाली कारें देश का दम घोंट देंगी और हर वर्ष लाखों करोड़ डॉलर ईंधन का बोझ ढोना, दिन-प्रतिदिन भारत के वश से बाहर हो रहा है।

ऐसे में विदेशी तकनीक के सहारे आश्रित रहने के बजाय यदि ये अरबपति कॉर्पोरेट सिर्फ नए बाजार में अपने मुनाफे की भनक पाते ही लपलपाते हुए संयुक्त-उपक्रम की जोड़तोड़ करते रहेंगे और सरकार भी मेक इन इंडिया के नाम पर पीएलआई स्कीम से झोला भर-भर मदद करती रहेगी, तो 140 करोड़ की आबादी वाले देश के लूले-लंगड़े विकास को बाद में जाकर खुद पर बेहद पछताने के सिवाय कोई चारा नहीं रहने वाला है।

अभी हाल ही में एक अध्ययन ने देश का ध्यान खींचा था कि वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण के बेहद छोटे कण 5 नैनो मीटर तक अब हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे घातक बनते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण को लेकर पिछले कुछ वर्षों से देश और सरकारों की चिंता लगातार बढ़ी है। इसके लिए कई वर्षों से सरकारी तंत्र का रटा-रटाया जवाब पंजाब और हरियाणा में धान की फसल के बाद खेतों में बचे डंठलों को जलाने (पराली) को दोष दिया जा रहा है।

पिछले कुछ दशकों से कृषि में हल-बैल की जगह ट्रैक्टरों और थ्रेशर सहित हार्वेस्टर के प्रयोग ने लगभग समूचे ग्रामीण अर्थव्यस्था को ही पूंजीगत प्रणाली से जोड़ दिया है। आज गांवों में कृषि कार्यो के लिए न हल-बैल जैसे परंपरागत साधनों की दरकार है और न ही पहले की तरह बड़े पैमाने पर खेतिहर मजदूरों को ही खेतीबाड़ी में कोई आजीविका का साधन बचा है।

पराली इसी का नतीजा है, जो मौसम में ठंडक और नमी के चलते पहले से ही ऑक्सीजन से रहित करोड़ों लोगों के शहर को दमघोंटू बना देता है। ऊपर से दसियों लाख निजी एवं व्यावसायिक वाहनों से अपने-अपने गंतव्य को जाने की हड़बड़ी के बीच भारत में दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई जैसे महानगर ही नहीं लगभग सैकड़ों शहर आज विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की श्रेणी में हैं।

अगर साफ़ शब्दों में कहें तो आज भारत को दुनिया के सबसे गंदे और प्रदूषित देशों की सूची में पहला मकाम हासिल है। 2010 बीजिंग ओलिंपिक तक यह स्थान चीन को हासिल था। याद कीजिये, ओलंपिक आयोजन को सफल बनाने के लिए चीन की तैयारियों को। उस दौरान वह दुनियाभर से रिकॉर्ड स्टील का आयात कर रहा था, और भारत तक से बड़ी मात्रा में अच्छे दामों पर चीन को स्टील का निर्यात किया जा रहा था।

यहां तक कि सेल सहित तमाम स्टील कंपनियां उस दौरान अपनी उत्पादन क्षमता में विस्तार की योजनायें साझा कर रही थीं। आज हालात यह है कि चीन से भारत में स्टील का आयात हो रहा है। उस दौरान बीजिंग में कृत्रिम बारिश के जरिये प्रदूषण को हटाया जा रहा था। आज 13 वर्ष बाद एशियाई खेलों के आयोजन के बीच चीन एक बिल्कुल बदला हुआ देश नजर आता है, जहां खेलों में प्रयुक्त मशाल भी एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के सहारे जलाई जाती है। बहरहाल, हम मूल मुद्दे पर आते हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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