क्यूबा इन द टाइम ऑफ कोरोना

Estimated read time 1 min read

क्यूबा एक छोटा सा देश है। कैरेबियन द्वीप समूह में एक छोटा सा टापू। अमेरिका और मित्र राष्ट्रों के दबदबे वाले इतिहास-भूगोल के चैनलों से जानकारी हासिल करने वालों की नज़र में तो इसकी बहुत बुरी छवि होगी। ऐसे लोगों तक यह ख़बर शायद ही पहुंचे कि अमेरिका औऱ उसके गिरोह की आर्थिक घेरेबंदी से जूझ रहा यह छोटा सा समाजवादी देश कोरोना वायरस के इलाज और मदद के लिए दुनिया भर में अपने डॉक्टर भेज रहा है। उधर,पूंजीवाद का गढ़ अमेरिका है जो कोरोना वायरस की वैक्सीन को सिर्फ़ और सिर्फ़ अमरीकियों के लिए कब्ज़ाना चाहता है।  

एक लेटेस्ट ख़बर ब्रिटेन के एक क्रूज शिप से जुड़ी है। यह शिप कई दिनों से कैरेबियन सागर में घूम रहा था लेकिन किसी भी देश ने इसे बंदरगाह पर उतरने की इजाजत नहीं दी क्योंकि इसमें कुछ लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया है। यह कोई न्यूज नहीं है। सभी देश ऐसा ही कर रहे हैं। ख़बर यह है कि क्यूबा ने इस शिप को अपने बंदरगाह पर लगाने की इजाजत दी है,  इसके यात्रियों का इलाज करने की सहमति दी है और फिर इन्हें ब्रिटेन भेजने की व्यवस्था करने पर सहमति दी है। अब इस दुष्प्रचार का क्या कीजे कि अपने देश के ही नहीं, दुनिया के हर नागरिक की चिंता करने वाला समाजवाद तो फेल बताया जा रहा है और पूंजीवाद पास बताया जा रहा है।

क्यूबा में चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो और राउल कास्त्रो के नेतृत्व में क़रीब पांच साल के ऐतिहासिक संघर्ष (1953-1959) के बाद क्रांति सफल हुई थी। महान क्रांतिकारी फिदेल और डॉ. अर्नेस्टो चे ग्वेरा के नेतृत्व में यहां क्रांतिकारी चिकित्सा सेवाएं शुरू की गईं। क्रांति के बाद क्यूबा में हेल्थ केयर के क्षेत्र में कैसे काम किया गया, एक बानगी देखिये। क्यूबा के डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने वाले एक सोवियत डॉक्टर लिखते हैं:-

“हमें यहाँ (क्यूबा में) जिस चीज ने हैरान किया वह थी बच्चों में रिकेट्स (विटामिन डी की कमी से होने वाली हड्डियों की एक बीमारी) और टीबी नामक बीमारियों का स्तर। अधिकतर मामलों में यह कुपोषण की वजह से होता था। आपको गलियों में घूमते किशोर मिल सकते थे जिनकी टाँगें बचपन में हुए रिकेट्स की वजह से नकारा हो चुकी होती थी। फिर भी, बच्चों की अगली पीढ़ी में, यानि 1970 के शुरुआती वर्षों के बाद से, रिकेट्स और टीबी मुश्किल से ही ढूंढने को मिल रही थी। और यह सिर्फ डॉक्टरों की वजह से इतना नहीं हुआ था बल्कि इसका श्रेय दुग्ध वितरण के सामाजिक कार्यक्रम को जाता है। देश के हर बच्चे के घर के बाहर एक लीटर दूध हर सुबह रख दिया जाता था।“

बहरहाल तब से लेकर क्यूबा के डॉक्टर पूरी दुनिया को सेवाएं देते आ रहे हैं। यहां तक कि समाजवाद को कोसने वाली पूंजीवादी सत्ता वाले इटली जैसे देश को भी कोरोना वायरस एपिडेमिक के दौरान क्यूबा के स्वास्थ्य कर्मी सेवाएं देने पहुंचे हैं। उधर, पूंजीवादी देशों के सरगना अमेरिका का हाल यह है कि कोरोना ने उसकी स्वास्थ्य सेवाओं की भी पोल खोल कर रख दी है। लेकिन, वह कोरोना की वैक्सीन भी सिर्फ़ अमेरिका के लोगों के लिए अपने कब्जे में चाहता है। जर्मनी की एक कंपनी ने जो कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार कर रही है, आरोप लगाया है कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने उस से सारी वैक्सीन खरीदने की कोशिश की है। वो भी सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के नागरिकों के लिए।

दरअसल, दुनिया के संकटों का हल समाजवाद में है। उससे कम कुछ भी कारगर नहीं। इस वक़्त क्यूबा की सेवाएं इस बात  का उदाहरण हैं कि अगर समाजवाद `फेलियर` है तो यह `फेलियर` दुनिया के लिए बहुत अच्छी चीज़ है।

(लेखक डॉ. नवमीत पानीपत स्थित एनसी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।) 

You May Also Like

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments