गणतंत्र दिवस: मैक्रों आ रहे हैं, बाइडेन क्यों नहीं आ रहे?

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नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर 26 जनवरी 2024 को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों हमारे मुख्य अतिथि होंगे। वह भारत आ रहे हैं। फिर कहने की इच्छा हो रही है कि विदेशों में भारत का डंका बज रहा है, बस मुश्किल यह है कि इन्वेस्टिगेटिव वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने मैक्रों, फ्रांस के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति एलीसी फ्राक्वां ओलान्द और हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘नाभिनालबद्ध’ बता दिया है।

‘मीडियापार्ट’ ने हाल की एक रिपोर्ट में कहा है कि 2016 में फ्रांस के दशों एवीएशंस से 36 राफेल विमानों की खरीद के भारत के सौदे में ‘करप्शन, एंफ्लुएंस पेडलिंग और फेवरेटिज्म’ के आरोपों की जांच-प्रक्रिया में बाधाएं खड़ी करना तीनों के लिए मुफीद है, क्योंकि जांच की आंच तीनों को ही अपनी जद में ले सकती है। सितम्बर 2016 में जब 58,891 करोड़ रुपये के इस सौदे को अंतिम रूप दिया गया था, तब ओलान्द फ्रांस के राष्ट्रपति थे।

पेरिस के खोजी वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने भारत सरकार पर जांच में सहयोग से इंकार का आरोप नहीं लगाया है, बस इतना कहा है कि सरकार आठ महीने तक फ्रांसीसी जजों के अनुरोध पर टालमटोल करती रही और फिर उसने चुप्पी ओढ़ ली। फ्रांस में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में लगे गैर-सरकारी संगठन ‘शेरपा’ की दूसरी शिकायत पर करीब डेढ़ साल से जांच में जुटे जज वर्जिनी तिलमों और पास्कल गस्तिनों को खुद अपने देश में भारी अवरोध का सामना करना पड़ा है।

दोनों जजों ने सितम्बर 2021 में मौजूदा राष्ट्रपति मैक्रों के सशस्त्र सेना मंत्री फ्लोरेंस पार्ली और विदेश मंत्री ज्यां इव्स ले द्रान से बस उनके मंत्रालयों में उपलब्ध ‘राफेल सौदे के मुतल्लिक बातचीत के गोपनीय दस्तावेजों को डी-क्लासीफाई’ कर, उन्हें मुहैया कराने का अनुरोध किया था। वे बस वेबसाइट के इस दावे की तस्दीक करना चाहते थे कि क्या सौदे के अंतिम करार पर हस्ताक्षर से ठीक पहले इसमें से भ्रष्टाचार-रोधी प्रावधान हटा दिया गया था।

इससे न तो ‘देश की रक्षा क्षमताओं पर नकारात्मक असर’ पडना था, न इससे ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के निर्वाह में कोई बाधा‘ थी और न ‘आपरेशनल ड्यूटी में लगे सैन्यकर्मियों की सुरक्षा में कोई अड़चन’, लिहाजा फ्रांस में सम्बन्धित दस्तावेज डी-क्लासीफाई किये जा सकते थे, पर फैसला इसके उलट आया। 

अकारण नहीं है कि मीडियापार्ट की रिपोर्ट ने डी-क्लासीफिकेशन अनुरोध पर फ्रांसीसी मंत्रालयों के फैसले को ‘न्यायिक जांच कभी पूरे नहीं होने देने की भारत सरकार की आकांक्षा के अनुरूप’ बताया है।

और अगर फ्रांस का यह फैसला भारत सरकार की आकांक्षा के साथ जुगलबन्दी थी, तो भारत सरकार भी अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद करार में प्रवर्तन निदेशालय के हाथों गिरफ्तार हो चुके विवादित रक्षा दलाल सुशेन गुप्ता के दासो एवीयेशंस के साथ रिश्तों के बारे में दस्तावेज की फ्रांसीसी जजों की मांग और सुशेन गुप्ता की कंपनियों और रिलायंस डीफेंस-दासो एवीयेशंस के संयुक्त उपक्रम ‘द्राल’ के मुख्यालय पर प्रस्तावित तलाशी अभियानों में शिरकत की अनुमति देने के उनके अनुरोधों पर सकारात्मक रूख कैसे अपना सकती थी। उसे तो टालमटोल और चुप्पी का ही आसरा था।

अगले गणतंत्र दिवस समारोह में इमैनुएल मैक्रों के आगमन को विदेशों में भारत का डंका बज रहे होने का उदाहरण मान लेने में एक पेंच यह भी है कि अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन इस समारोह में मुख्य अतिथि नहीं होंगे। पहले उन्हें ही न्यौता गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान पिछले 8 सितम्बर को एक द्विपक्षीय बैठक में बाइडेन से मुख्य अतिथि होने का आग्रह किया था और उसी महीने भारत में अमरीका के राजदूत एरिक गारसेटी ने समारोह में बाइडेन को निमंत्रण दिये जाने की पुष्टि भी की थी, पर वह आ नहीं रहे।

गो वह अमरीकी नागरिक, पृथकतावादी गुरपतवंत सिंह पन्नूं पर हमले में भारत की एक खुफिया एजेंसी के अधिकारी की संलिप्तता के चालू विवाद के कारण नहीं, बल्कि अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले 30 जनवरी को होने जा रहे अपने आखिरी ‘स्टेट आफ द यूनियन एड्रेस’ कार्यक्रम में व्यस्तता के चलते भारत नहीं आ रहे हैं। लेकिन विवाद तो है। बल्कि पृथकतावादी सिख नेता हरदीप सिंह निझ्झर की हत्या में भारत के सरकारी एजेंटों की संलिप्तता के कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के आरोपों पर उठे विवाद से अधिक गंभीर है।

ब्रिटिश कोलम्बिया में सर्रे में एक गुरूद्वारे के बाहर निझ्झर पर जानलेवा हमले की पिछले जून की घटना के संदर्भ में 18 सितम्बर को पार्लियामेंट में ट्रुडो ने बस इतना कहा था कि उनकी गुप्तचर एजेंसियां इस हमले में भारत की संलिप्तता के विश्वसनीय आरोपों की जांच कर रही है, पर अमरीका ने तो न केवल एक भारतीय अधिकारी के निर्देश पर निखिल गुप्ता पर पन्नूं की हत्या के लिए एक हत्यारे को नकद 1 लाख डालर देने का आरोप लगाया है, बल्कि चेक गणराज्य के न्याय मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने तो यहां तक कहा है कि अमरीका के ही अनुरोध पर पिछले जून में निखिल को गिरफ्तार किया जा चुका है और अगस्त में ही अमरीका निखिल के प्रत्यर्पण का अनुरोध दायर कर चुका है।

भला हो कि पन्नूं मामले पर अमरीकी कार्रवाइयों के बीच अभी पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ से कहा कि ऐसी छोटी-मोटी बातों से दोनों देशों के सम्बन्धों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पडेगा। उन्होंने जोड़ा, “मैं नहीं मानता कि दो देशों के राजनयिक सम्बन्धों को ऐसे चन्द मामलों से जोड़ना उचित है।”

वरना निझ्झर की हत्या में भारत के सरकारी एजेंटों की संलिप्तता के जस्टिन ट्रुडो के आरोपों और द्विपक्षीय व्यापार वार्ता स्थगित कर देने की कनाडा की कार्रवाई के बाद नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था। फिर कनाडा में तैनात भारतीय राजनयिक पवन कुमार राय के निष्कासन, कनाडा के कई राजनयिकों को भारत से वापस भेजे जाने से लेकर कनाडा में भारत की वीजा सेवाएं अगले आदेश तक रोक दिये जाने तक द्विपक्षीय सम्बन्धों में क्या-क्या हुआ, यह इतिहास है।

भला यह भी कि बाइडेन भले न आ रहे हों, इमैनुएल मैक्रों आ रहे हैं। वह आगामी गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे।

बाइडेन के आने का एक सबब तो ‘क्वाड’ की शिखर बैठक भी थी। और यह तो सर्वज्ञात है कि फंडिंग घोटाले में संलिप्तता के आरोपों के बीच जापानी संसद -डायट – के प्रस्तावित सत्र में जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और 26 जनवरी 2024 को ही ऑस्ट्रेलिया के ‘नेशनल डे’ में वहां के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानेज की व्यस्तताओं के कारण चार देशों की ‘क्वाड शिखर बैठक’ भी तो स्थगित कर दी गयी है।

अब यह शिखर बैठक बाद में कभी होगी। 2024 में ही। शायद बाइडेन तब आ जाएं। आखिर अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव तो 2025 में है और बाइडेन के पास चुनाव से पहले करीब 1 साल तो है ही।

(राजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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