बलात्कारियों के साथ बीजेपी का स्थाई पक्ष!

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बिलकिस बानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि न्याय अभी जिंदा है। वह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जिस तरह से फैसले दर फैसले लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरते दिख रहे थे और एक के बाद दूसरे फैसले से सरकार की तानाशाही और मजबूत होती जा रही थी उससे लोग नाउम्मीद हो गए थे। और देश के सीजेआई ने जब धर्म ध्वजा उठा ली तभी लगा कि न्याय ध्वजा के साथ कहीं वह 22 जनवरी को मंदिर उद्घाटन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या न कूच कर जाएं।

लेकिन इसी बीच रेगिस्तान की गर्मी में पानी के इस नये फव्वारे ने लोगों को जो ठंडक दी है उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया बल्कि उसे पूरी तरह से गैरकानूनी करार दिया। और इससे भी आगे बढ़कर गुजरात सरकार ने निर्लज्जता की जो चादर तन से उतार कर फेंक दी थी इस फैसले के जरिये उसको कोर्ट ने फिर से पहनाने का काम किया है। 

जघन्य अपराध के दोषी जिसमें न केवल सामूहिक बलात्कार शामिल था बल्कि सामूहिक हत्या के भी सभी दोषी थे, उन सभी को बाइज्जत बरी कर दिया गया था और फिर छूटने के बाद उनका जिस तरह से माला पहनाकर स्वागत किया गया उसने बलात्कारियों और हत्यारों को एक नई ऊंचाई मिल गयी थी। इस घटना से इसके बड़े हिस्से में यह संदेश गया कि बड़ा से बड़ा अपराध भी करके आप बाइज्जत बरी हो सकते हैं। बस शर्त यह है कि सत्ता आपके साथ हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न केवल न्याय का सत्व बहाल हुआ है बल्कि सारी उम्मीदें खो चुके अल्पसंख्यकों के दिलों में यह आस जगी है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।

बिलकिस ने इसे नया साल करार देकर और उनके परिजनों ने पटाखे फोड़कर जिस तरह से इसका स्वागत किया है। वह इसी बात पर मुहर लगाती है। हालांकि यह खुशी कितने दिनों तक टिकने वाली है कुछ कहा नहीं जा सकता है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने केवल प्रक्रिया पर सवाल उठाया है। उसने कहा है कि गुजरात सरकार को इस पर फैसला लेने का कोई हक नहीं था। क्योंकि यह मामला महाराष्ट्र ट्रांसफर हो गया था लिहाजा इस पर किसी तरह का फैसला महाराष्ट्र सरकार ही कर सकती है। अब किसको नहीं पता है कि महाराष्ट्र में किसकी सरकार है और गुजरात में भी यह फैसला कोई गुजरात की स्थानीय सरकार ने नहीं लिया था बल्कि यह सब कुछ केंद्र के इशारे पर हुआ था जिसकी गुजरात ‘जेबी’ सरकार है। 

ऐसे में अगर केंद्र चाहा तो कल वह महाराष्ट्र सरकार से भी इसी तरह का फैसला करवा लेगी। यह बात अलग है कि अभी चूंकि लोकसभा के चुनाव होने हैं लिहाजा इस मामले से जुड़े वोटों की गणित के हिसाब से ही वह फैसला लेगी। अगर उसे लगता है कि उसके वोट को नुकसान पहुंच सकता है तो वह ऐसा नहीं करेगी लेकिन अगर लगता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को यह नया बल दे सकती है तो फिर उसे करवाने में उसे चंद मिनट भी नहीं लगेंगे।

बिलकिस को सुप्रीम कोर्ट से भले न्याय मिल गया हो। लेकिन बीजेपी सरकारें गुजरात से लेकर यूपी और हरियाणा से लेकर मणिपुर तक बलात्कारियों के ही पक्ष में रही हैं। सबसे ताजा और बड़ा उदाहरण हरियाणा के राम रहीम का है। यह शख्स एक बच्ची से बलात्कार के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। लेकिन यह जेल में कम रहता है और बाहर की सैर ज्यादा करता है। जेल इसके लिए सिर्फ और सिर्फ एक पर्यटन स्थल भर रह गया है। जब चाहता है आता है और कैदियों से मसाज कराता है और जब चाहता है बाहर हो जाता है। अगर हिसाब लगाया जाएगा तो अभी तक के इतिहास में पैरोल मिलने का रिकार्ड राम रहीम के ही खाते में दर्ज होगा।

हरियाणा के मुख्यमंत्री खुद खट्टर और कई बार उनके मंत्री जेल के बाहर इस बाबा के साथ मंच साझा करते हुए पाए गए हैं। और सूबे का कोई चुनाव हो या फिर हरियाणा के आस-पास के इलाके में कहीं चुनाव होने जा रहा हो तो राम रहीम का पैरोल पर बाहर आना निश्चित है। सिरसा का यह बलात्कारी बाबा बीजेपी के लिए स्टार प्रचारक हो गया है। जब भी कोई चुनाव हो बाबा का सत्संग चुनावी क्षेत्रों में शुरू हो जाता है। अब अगर कोई सरकार बलात्कार और हत्या के दोषियों के साथ इस तरह का व्यवहार करेगी तो उसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसका अंदाजा लगाना किसी के लिए कठिन नहीं है।

आखिर आप कैसा समाज बनाने जा रहे हैं? क्या कोई सभ्य समाज कभी बलात्कारियों और हत्यारों को सम्मानित कर सकता है? इससे न केवल आप अपराध और अपराधियों को बढ़ावा देते हैं बल्कि समाज में महिलाओं को और ज्यादा असुरक्षित कर देते हैं। क्या किसी को पता था कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली यह सरकार एक ऐसा जंगल पैदा कर देगी जिसमें बेटियों के लिए हर समय इन जैसे खूंखार जानवरों से अपनी इज्जत बचानी मुश्किल हो जाएगी। 

देश के पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद की कहानी से भला कौन नहीं परिचित होगा। पीड़िता को डरा-धमका कर आखिर चुप ही करा दिया गया। और वह अब डर के चलते अपना केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है। और चिन्मयानंद अपने साम्राज्य के साथ आनंदित जीवन जी रहे हैं। बीजेपी के पूर्व विधायक सेंगर को सजा तब मिली जब उन्होंने पीड़िता के परिजनों के बड़े हिस्से का लगभग सफाया ही कर दिया।

इस घोर अन्याय के बाद समाज से पड़े दबाव का नतीजा रहा कि सेंगर इस समय जेल में है। हालांकि उसके लिए भी मुकदमे को यूपी से दिल्ली ट्रांसफर करना पड़ा। वरना वहां इसके बाद भी न्याय पाने की कोई उम्मीद नहीं थी। आखिर ऐसा क्यों होता है कि बीजेपी शासित राज्यों से इस तरह के मुकदमों का दूसरे सूबों में ट्रांसफर करना पड़ता है? यह एक बड़ा सवाल है और इसका जवाब ही बीजेपी के साथ इस तरह के अपराधियों के नाभि-नाल के रिश्तों को उजागर करेगा।

बीजेपी के दबंग एमपी ब्रजभूषण शरण सिंह की कहानी अभी ताजी है। यौन शोषण के इस आरोपी के खिलाफ महिला पहलवानों ने आंदोलन का कोई रास्ता नहीं छोड़ा। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर हरियाणा की जमीन तक उन्होंने रौंद डाला लेकिन केंद्र की सत्ता में बैठी सरकार के माथे पर शिकन तक नहीं आयी। अंत में हालात यहां तक पहुंच गए कि कुश्ती फेडरेशन के चुनाव में ब्रज भूषण का चहेता अध्यक्ष बन गया और जब यह साबित हो गया कि फेडरेशन फिर से ब्रजभूषण के घर से ही संचालित होगा।

तब महिला पहलवानों को लग गया कि अब उन्हें न्याय नहीं मिलने वाला है और आगे बने रहने पर उनका उत्पीड़न और तेज हो जाएगा। तब हारकर वो सभी अपने सारे मेडल पीएम आवास के सामने सड़क पर रखने के लिए बाध्य हो गए। यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई। और इससे देश की साख का दुनिया में जो बट्टा लगा है शायद ही उसकी कोई भरपायी हो पाए। लेकिन बलात्कारियों और हत्यारों के प्रति सरकार के नरम रवैये कहिए या फिर आगामी चुनाव में गोंडा और उसके आस-पास ब्रजभूषण से जुड़े वोटों की गणित बीजेपी ने पहलवानों की एक न सुनी। और वह पूरी मजबूती के साथ ब्रजभूषण शरण सिंह के पक्ष में खड़ी रही। और सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान बीजेपी की महिला नेताओं का एक भी बयान महिला पहलवानों के पक्ष में नहीं आया।

और यही कहानी मणिपुर में दोहरायी गयी। वहां महिलाओं को नंगा घुमाया गया। और कितनी महिलाओं के साथ बलात्कार और कितनों की उत्पीड़न के बाद हत्याएं कर दी गयीं उनकी ठीक से गिनती तक नहीं हो पायी है। मैतेई और कुकी एक स्वर में स्थानीय बीजेपी सरकार के खिलाफ हैं लेकिन केंद्र की बीजेपी मणिपुर के अपने मुख्यमंत्री को हटाने के लिए तैयार नहीं हुई। और इतने दिन बीत जाने के बाद भी अगर तीन सेकेंड के पीएम मोदी के बयान को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने कभी उस पर सोचने की जरूरत नहीं समझी। और सूबे के दोनों समुदायों मैतेइयों और कुकियों को एक दूसरे का खून लेने के लिए सड़क पर छोड़ दिया गया है। अगर इसमें निष्पक्ष तरीके से पूरे मामले की जांच हो तो इस बात की पूरी आशंका है कि केंद्र इस पूरी लड़ाई में आग में पेट्रोल डालता दिखेगा।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडर एडिटर हैं।)

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