‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार त्याग देना चाहिए: खड़गे

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नई दिल्ली। “वन नेशन वन इलेक्शन” पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़ने ने कहा है कि इस पर विचार करने वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति को स्वयं ही भंग कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसके जरिये लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति का दुरुपयोग किया जा रहा है।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर विचार करने के लिए बनी समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। समिति ने पिछले साल 18 अक्टूबर को कांग्रेस के विचार मांगे थे। जिसके जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि, “एक संपन्न और मजबूत लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए, यह जरूरी है कि इस पूरे विचार को छोड़ दिया जाए और समिति को भंग कर दिया जाए।”

कांग्रेस ने परामर्श की कवायद को एक “दिखावा” बताया और कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार पहले ही अपना मन बना चुकी है। खड़गे ने समिति सचिव को पत्र लिख कर कहा है कि, “ऐसे देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई जगह नहीं है जिसने सरकार की संसदीय प्रणाली अपनाई है।”

उन्होंने कहा कि “सरकार और इस समिति को शुरू में ही ईमानदार होना चाहिए था कि वे जो करना चाहते हैं वह संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है।“

खड़गे ने पूर्व राष्ट्रपति के पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि “कांग्रेस पार्टी और देश के लोगों की ओर से मैं उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि वे संविधान और संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से उनके व्यक्तित्व और पूर्व राष्ट्रपति के पद का दुरुपयोग न होने दें।“

उन्होंने कहा कि समिति पक्षपात कर रही है और सरकार के प्रति सहानुभूति रखती है। इस तर्क पर आपत्ति जताते हुए कि बार-बार चुनाव शासन को प्रभावित करते हैं, उन्होंने कहा कि “विकास प्रक्रिया और शासन को बार-बार ठप किया जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री शासन के बजाय चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से शामिल हैं।”

उन्होंने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर वित्तीय बचत के तर्क को भी खारिज कर दिया और कहा कि “खर्च पांच वर्षों के लिए कुल केंद्रीय बजट का 0.02 प्रतिशत से भी कम है। हमें लगता है कि लोग लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की लागत के रूप में इस छोटी राशि पर विचार करने को तैयार होंगे।“

चुनावी फंडिंग का सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, ‘2014 के चुनाव में 3,870 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था, जिसके बारे में समिति का दावा है कि यह बहुत ज्यादा है। भाजपा को 2016-2022 के दौरान 10,122 करोड़ रुपये का चंदा मिला है, जिसमें से 5,271.97 करोड़ रुपये गुमनाम चुनावी बांड के जरिये मिला है। यदि समिति, सरकार और भारत का चुनाव आयोग चुनावों पर होने वाले खर्च को लेकर गंभीर है, तो यह अधिक उचित होगा यदि वे फंडिंग प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बना सकें।”

उन्होंने तर्क दिया कि वीवीपैट मशीनों के इस्तेमाल के कारण चुनावी खर्चों में बढ़ोतरी हुई है। खड़गे ने कहा कि “आपातकालीन धाराओं को छोड़कर, संविधान कहीं भी केंद्र सरकार को विधानसभाओं को भंग करने या राज्य सरकारों को निलंबित करने का अधिकार नहीं देता है। एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधान सभाओं को भंग करने की जरुरत होगी जो अभी भी अपने कार्यकाल के आधे (या उससे कम) समय पर हैं। यह उन राज्यों के मतदाताओं के साथ विश्वासघात होगा।”

उन्होंने कहा “यदि कोई मुख्यमंत्री सदन का विश्वास खो देता है और कोई दूसरी पार्टी सरकार नहीं बना पाती है, तो नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि राज्य को तब तक राष्ट्रपति शासन के तहत रखा जाना चाहिए जब तक कि नए चुनाव नहीं हो जाते। यह लोकतंत्र का मजाक होगा। मान लीजिए कि 2024 में एक साथ चुनाव होते हैं और फरवरी 2025 में केंद्र सरकार हार जाती है, और प्रधानमंत्री नए चुनाव का आह्वान करते हैं। क्या सभी विधानसभाएं भी भंग कर दी जाएंगी और पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाएंगे?”

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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