पेड़ में चमत्कार पर भरोसे का एक दृश्य।

जब तक सच जूता पहनता है, झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा आता है

कोरोना अपने साथ अंधविश्वासों का भी पैकेज लेकर आया है। भारत के लगभग सभी हिस्सों में इन दिनों इन्हीं का बोलबाला है। फर्रुखाबाद से लेकर बालोद तक में महिलाएं सिल पर चावल या आटा डालकर बेलन या बट्टा खड़ा कर रही हैं। जिसका बट्टा-बेलन सिल पर खड़ा हो गया, वह मान रहा है कि वह कोरोना से बच गया और जिसका नहीं खड़ा हुआ, वह कोरोना देवी से मनौती मांग कर दोबारा इन्हें खड़ा करने में लगा है। वैज्ञानिक सोच वाले सिल-बट्टा-बेलन के इस खेल पर हंस सकते हैं, लेकिन इसे खेलने वाले किसी की भी हंसी से बेपरवाह अपनी अक्ल पर बट्टा-बेलन फेरने में लगे हुए हैं। 

कोरोना की अभी तक कोई श्योर शॉट दवा नहीं आई है। फिजिकल डिस्टेंसिंग और मास्क ही अभी इससे बचने के सबसे भरोसेमंद रास्ते बने हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और खुद भारत सरकार की भी यही राय है। लेकिन लोग मास्क की जगह रिश्तेदारों के घर जाकर उनके बाएं पैर के अंगूठे में हल्दी या मेहंदी लगा रहे हैं। जिसकी मेहंदी गाढ़ी चढ़ी, उसे लग रहा है कि कोरोना देवी मान गईं।

प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और अयोध्या के कई गावों से खबर है कि लोग अपने दरवाजे से लेकर पुरुषों की पीठ पर हल्दी, मेहंदी या गोबर की छाप दे रहे हैं और काली माई की थान पर जल चढ़ाने में जमघट लगा रहे हैं। उन्हें लगता है कि ऐसे जमघट से कोरोना देवी चली जाएंगी। वहीं गुजरात में तो पिछले एक पखवाड़े में छह हजार लीटर गोमूत्र बिक चुका है। अगर गोमूत्र से कोई भी इलाज हो सकता तो भारत सरकार सबसे पहले बताती, जिसने कि गाय पर वैज्ञानिक शोध के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग बना रखा है। 

पहले कभी गणेश ने दूध पिया था, अब बिहार के समस्तीपुर में कई मंदिरों में नंदी पी रहे हैं। वहां नंदी को दूध पिलाने मंदिरों में इतनी भीड़ लग गई कि उन्हें भगाने के लिए पुलिस को लगना पड़ा। फिर शिव ही क्यों, लोग रामचरितमानस से लेकर गीता तक में पहले कभी का गिरा हुआ पुराना बाल भी खूब खोज रहे हैं। जिसे मिल रहा है, वह उसे एक गिलास पानी में डुबोकर फेंक दे रहा है और पानी यूं पी जा रहा है, जैसे कि वही कोरोनामाइसिन हो। ऐसा असम से लेकर अहमदाबाद तक में हो रहा है।

अंधविश्वास कोरोना से बचने के जतन को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, इसका एक और नमूना देखिए। बरेली के कई गावों में औरतें समूह में इकट्ठी होकर बाल्टी में पानी भरकर कुंओं में उलीच रही हैं तो पुरुष कुंए में सिक्का डाल रहे हैं। जनता कर्फ्यू के दिन प्रधानमंत्री ने हेल्थ वर्कर्स के सम्मान में ताली-थाली बजाने को बोला था, मगर राजस्थान से लेकर गुजरात के कई गावों से खबरें हैं कि वहां अभी तक लोग हर शाम ताली-थाली जुलूस निकाल रहे हैं।

जयपुर के आसपास के कुछ गावों में औरतें समूह में सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार मांग भर रही हैं तो कुछ में सात घरों से पैसे मांगकर चूड़ी खरीद रही हैं। मध्य प्रदेश के भिंड-मुरैना में अभी तक यमदीप जलाए जा रहे हैं, ताकि यमराज इसे देखें और कहीं और की राह पकड़ें। ऐसा संभव होता तो अब तक दुनिया भर में जितने लोग कोरोना से मरे, क्या वे महज दो-चार दिए जलाकर बच न जाते!

कहते हैं कि जितनी देर में सच अपने जूते पहनता है, उतने में झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा आता है। कुछ ऐसा ही उत्तराखंड में भी दिखा। नेपाल से एक अफवाह चली कि जिसकी चौखट के नीचे काला पत्थर मिलेगा और वह उससे तिलक लगा लेगा, उसे कोरोना नहीं होगा। वहां से यह अफवाह अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ पहुंची तो कइयों ने अपनी चौखट खोद डाली। बाद में पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा तो मामला थमा।

ऐसे ही कर्नाटक में कोरटागेरे के मुद्देनाहल्ली गांव में एक औरत कोरोना देवी बनकर बोली कि गांव छोड़ दो, बच जाओगे, तो पूरे साठ परिवार गांव के बाहर तंबू लगाकर रहने लगे। अधिकारी समझाते रहे कि यह अंधविश्वास है, मगर लोगों को तो सच से ज्यादा झूठ पर भरोसा है। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं कि जब शीतला माता की तरह कोरोना माता के भी मंदिर हमें शहर-गांव में दिखने लगेंगे। करुणा माता की आरतियां तो लॉकडाउन के फर्स्ट फेज से ही चालू हैं।

(राहुल पांडेय का लेख नवभारत टाइम्स से साभार।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments