अर्णब गोस्वामी की सेवा में सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट को अर्णब गोस्वामी की रक्षा में सामने आने में एक क्षण नहीं लगा है । उसे उनके अपराधी कृत्यों के लिये तत्काल अभय दे दिया गया है । जबकि अन्य तमाम मामलों में यही सुप्रीम कोर्ट त्रिशंकु की तरह अधर में चमगादड़ों की तरह औंधे लटका हुआ दिखाई देता है । 

कश्मीर से लेकर देश भर में मानव अधिकारों, नागरिक के मूलभूत और ज़िंदा रहने के अधिकारों के विषयों पर विचार को उसने अनंत काल के लिए टाल कर रख दिया है । इनमें शासक दल के नेताओं के अपराधी कृत्यों के मामले भी शामिल हैं ।

उसकी यह अधर में लटकी हुई, शूली पर हवा में लटके आदमी की तस्वीर से लगता है जैसे क़ानून की अपनी आंतरिक ज़रूरतों और उस पर पड़ रहे बेजा बाहरी दबावों से कोई ट्यूमर फटने की अंतिम स्थिति में पहुँच चुका है । यह क़ानून की सीमा और राष्ट्र की लोकतांत्रिक अपेक्षाओं बीच के तनाव से मर रहे एक संस्थान की करुण दशा की तस्वीर  है। 

सुप्रीम कोर्ट के कथित विद्वान न्यायाधीशों को लगता है अभी तक न्याय का यह न्यूनतम बोध हासिल करना बाक़ी है कि शासन के प्रति किसी भी प्रकार का व्यामोह व्यक्ति के खुद के विवेक के क्षरण का ही कारण बनता है । मोदी-शाह की ओर टकटकी लगाए सुप्रीम कोर्ट के जजों की याचकों की तरह की यह दयनीय स्थिति आज सचमुच राष्ट्रीय शर्म का विषय है ।

(अरुण माहेश्वरी लेखक और चिंतक हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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