कार्ल मार्क्स

उदात्तता में ही निहित है इंसान का गौरव और उसकी उच्चता: कार्ल मार्क्स

‘पेशे का चुनाव करने के सम्बन्ध में एक नौजवान के विचार’ नामक लेख से

[ कार्ल मार्क्स (5 मई1818- 14 मार्च-1883) ने जर्मनी के त्रियेर नगर में उच्च माध्यमिक विद्यालय में अपनी आखिरी परीक्षा देते हुए सन् 1835 में 17 वर्ष की उम्र में यह लेख लिखा। इस लेख के बारे में ये. स्तेपनोवा (‘मार्क्स: एक जीवनी’, पृ.101) ने लिखा है, ’‘यह रचना ही तरुण मार्क्स की असाधारण बुद्धि और उच्च नैतिक गुणों का परिचय देती है। अपने जीवन पथ के चयन में वह अहमन्यता, थोथी महत्वाकांक्षा और पदलोलुपता को अस्वीकार करते हैं। सामाजिक कर्तव्य की चेतना रखते हुए वह मानव जाति की सेवा को अपने जीवन का ध्येय मानते हैं।’’

दुनिया में हर अभिभावक अपनी संतानों के लिए सुनहरे सपने देखता है, वह उनके लिए उच्च भौतिक सुखों की प्राप्ति की कामना करता है। हर नौजवान भी ऐसे समय कैरियर को लेकर ज्यादा चिंतित और संजीदा हो जाता है। उसे स्वयं के अस्तित्व को परखना होता है। उसे तय करना होता है कि उसके जीवन की सार्थकता किनके लिए है? उसे एक लक्ष्मण रेखा खींचनी होती है ताकि वह बहुतों के सीने पर चढ़ कर एक बड़ा सरकारी अफसर, डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर या मजदूरों का रक्त पीकर समृद्ध पूंजीपति बन सके। लेकिन कार्ल मार्क्स ने इसके विपरीत मार्ग चुना। वे सम्पूर्ण जगत में मानवता की सेवा के लिए, मानव समाज के दुखों को हरने की आशा लिए कंटीले वनों की यात्रा पर निकल पड़े। 

यह लेख वह प्रस्थान बिंदु है जो आगे चलकर मार्क्सवाद के रूप में दुनिया के सामने आया, अगर उन्होंने यह यात्रा शुरू नहीं की होती तो शायद हम उनके अवदानों से आज वंचित होते-इमानुद्दीन ]

हमारी जीवन-परिस्थितियां यदि हमें अपने मन का पेशा चुनने का अवसर दें तो हम एक ऐसा पेशा अपने लिए चुनेंगे जिससे हमें अधिकतम गौरव प्राप्त हो सकेगा, ऐसा पेशा जिसके विचारों की सच्चाई के सम्बन्ध में हमें पूरा विश्वास है। तब हम ऐसा पेशा चुनेंगे जिसमें मानवजाति की सेवा करने का हमें अधिक से अधिक अवसर प्राप्त होगा और हम स्वयं भी उस सामान्य लक्ष्य के और निकट पहुंच सकेंगे जिससे अधिक से अधिक समीप पहुंचने का प्रत्येक पेशा मात्र एक साधन होता है।

गौरव या उच्चता उसी चीज को कहते हैं जो मनुष्य को सबसे अधिक ऊंचा उठाए, जो उसके काम को और उसकी इच्छा-आकांक्षाओं को सर्वोच्च उदात्तता प्रदान करे, उसे भीड़ से दृढ़ता पूर्वक ऊपर उठने और उसकी मृत चेतना को जागृत करने का सुअवसर प्रदान करे।

किंतु गौरव हमें केवल वही पेशा प्रदान कर सकता है जिसमें हम गुलामों की तरह मात्र औजार नहीं होते बल्कि अपने कार्यक्षेत्र के अंदर स्वतन्त्र रूप से स्वयं सर्जन करते हैं, केवल वही पेशा हमें गौरव प्रदान कर सकता है जो हमसे निंदनीय कार्य करने की मांग नहीं करता- फिर चाहे वे बाहरी तौर से ही निंदनीय क्यों न हों। ऐसा पेशा जिसका श्रेष्ठतम व्यक्ति भी उदात्त अभिमान के साथ अनुशीलन कर सकते हैं। जिस पेशे में इन समस्त चीजों की उच्चतम मात्रा में गुंजाइश रहती है वह सदा उच्चतम ही नहीं होता, किंतु श्रेयस्कर सदा उसी को समझा जाना चाहिए।

कोई व्यक्ति यदि केवल अपने लिए काम करता है तो हो सकता है कि वह एक प्रसिद्ध विज्ञान वेत्ता बन जाए, एक महान सिद्ध पुरूष बन जाए, एक उत्तम कवि बन जाए, किंतु ऐसा मानव वह कभी नहीं बन सकता जो वास्तव में पूर्ण और महान है।

इतिहास उन्हें ही महान मनुष्य मानता है जो सामान्य लक्ष्य के लिए काम करके स्वयं उदात्त बन जाते हैं, ज्ञान एवं अनुभव सर्वाधिक सुखी मनुष्य के रूप में उसी व्यक्ति की स्तुति करता है जिसने लोगों को अधिक से अधिक संख्या के लिए सुख की सृष्टि की है।

अगर हमने ऐसा पेशा चुना है जिसके माध्यम से मानवता की हम अधिक सेवा कर सकते हैं तो हम दबेंगे नहीं क्योंकि यह कार्य सबके हित में है। ऐसी स्थिति में हमें किसी तुच्छ, सीमित अहंवादी उल्लास की अनुभूति नहीं होगी, वरन तब हमारा व्यक्तिगत सुख आम जन का भी सुख होगा, हमारे कार्य तब एक शान्तिमय किंतु सतत रूप से सक्रिय जीवन का रूप धारण कर लेंगे और जिस दिन हमारी अर्थी उठेगी, उस दिन अच्छे एवं भले लोगों की आंखों में हमारे लिए गर्म आंसू होंगे।

( मार्क्स के इस लेख की टिप्पणी एवं संपादन इमानुद्दीन ने किया है। वह स्वतंत्र लेखक और पत्रकार हैं और आजकल गोरखपुर में रहते हैं।) 

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