दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय अपनी अकादमिक स्वतंत्रता के लिए लम्बे समय तक देश भर में प्रसिद्ध रहा है। यहां विविध विषयों पर लगातार सेमिनार,गोष्ठियां और चर्चाएं होती रहती हैं, लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद न केवल इसकी स्वायत्तता पर हमला किया गया, बल्कि इसे देशद्रोही तत्वों का अड्डा बताकर देश भर बदनाम करने की साज़िश की जाती रही है।
पिछले दिनों जेएनयू में फिलिस्तीन और पश्चिमी एशिया के संकट पर होने वाले तीन सेमिनारों को रद्द करने का फ़ैसला इसी दुष्प्रचार की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में तीन सेमिनार आयोजित किए गए थे (JNU Seminar Cancelled)। सेमिनार को संबोधित करने के लिए गेस्ट के तौर पर भारत में ईरानी, फिलिस्तीनी और लेबनानी राजदूतों को बुलाया गया था, हालांकि इवेंट से कुछ घंटे पहले छात्रों को सूचना मिली कि तीनों सेमिनार ‘अपरिहार्य परिस्थितियों’ के चलते रद्द कर दिए गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ये सेमिनार जेएनयू के पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र में होने वाले थे। 24 अक्टूबर को सुबह 11 बजे ईरानी राजदूत डॉ० इराज इलाही जिस सेमिनार को संबोधित करने वाले थे, उसका टाइटल था- ईरान पश्चिम एशिया में हालिया विकास को कैसे देखता है?
सुबह करीब 8 बजे सेमिनार कॉर्डिनेटर सीमा बैद्य ने एक मेल के जरिए छात्रों को इवेंट के रद्द होने की जानकारी दी। उसी मेल में लिखा था, कि 7 नवंबर को फिलिस्तीन में हुई हिंसा मुद्दे पर होने वाला सेमिनार भी रद्द हो गया है।
उस सेमिनार को फिलिस्तीनी राजदूत अदनान अबू अल-हैजा संबोधित करने वाले थे, इसके अलावा 14 नवंबर को लेबनान की स्थिति पर होने वाला सेमिनार लेबनानी राजदूत डॉ० रबी नरश संबोधित करने वाले थे।
अखबार ने ईरानी और लेबनानी दूतावासों से जुड़े सूत्रों के हवाले से लिखा कि कार्यक्रमों को रद्द करने का फैसला यूनिवर्सिटी की तरफ से लिया गया था और इसके पीछे की वजह उन्हें नहीं मालूम है।
जेएनयू से जुड़े सूत्रों का मानना है, कि ध्रुवीकरण के मुद्दों पर इस तरह के सेमिनारों से परिसर में संभावित विरोध प्रदर्शन भड़क सकते हैं, शायद इन्हीं चिंताओं के चलते सेमिनार रद्द किए गए।
इधर जेएनयू के पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र की अध्यक्ष समीना हमीद ने कहा कि ईरानी राजदूत के साथ सेमिनार ‘स्थगित’ किया गया है क्योंकि वो आखिरी वक्त पर ऑर्गेनाइज किया गया था। उन्होंने दावा किया कि संस्थान इतनी जल्दी राजदूत की मेजबानी के लिए जरूरी प्रोटोकॉल का पालन करने की स्थिति में नहीं था।
आगे कहा कि उनके केंद्र ने अन्य दो सेमिनार आधिकारिक तौर पर शेड्यूल ही नहीं किए थे, हो सकता है किसी स्तर पर कुछ गलतफहमी हो गई हो।
इस मामले में जेएनयू से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि लम्बे समय से विश्वविद्यालय में फिलिस्तीन के समर्थन में वामपंथी छात्र संगठन प्रदर्शन करते रहे हैं, इसलिए प्रशासन का यह मानना था कि सेमिनार के दौरान प्रतिद्वंद्वी छात्र संगठन इसके विरोध में प्रदर्शन कर सकते हैं। हालात जो भी हों, यह अकादमिक स्वतंत्रता के हनन का मामला ज़रूर है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)