सीएम फेस सर्वे: नीतीश का इकबाल ख़त्म, पहली पसंद बने तेजस्वी 

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अगर मान भी लिया जाए कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव बिहार एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में ही लड़ेगा तो भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे, इसकी क्या गारंटी है? और बड़ा सवाल यह है कि अगर इस बार के चुनाव में भी बीजेपी की सीटें जदयू से ज्यादा आती हैं तो क्या बीजेपी नीतीश कुमार को फिर से सीएम बनाएगी? और एक बड़ा सवाल तो यह भी है कि क्या इस बार के चुनाव में भी एनडीए भारी पड़ेगा इंडिया पर? या फिर इंडिया के साथ बिहार का जनमानस खड़ा हो गया है और एनडीए के खेल को समझते हुए उसको सबक सिखाएगा बिहार? कुछ और भी बड़े सवाल खड़े होते दिख रहे हैं जो आने वाले बिहार चुनाव में चर्चा में रहेंगे और उन सवालों का असर चुनाव पर पड़ सकता है। 

पिछले चुनाव में तो बीजेपी को जदयू से ज्यादा सीटें मिली थीं बावजूद इसके बीजेपी ने जदयू नेता नीतीश कुमार को ही सीएम बनाया था। संभव था कि बीजेपी ऐसा नहीं भी करती लेकिन बिहार में अपनी स्थिति को भांपते हुए बीजेपी ने ऐसा किया। यह बीजेपी का बड़प्पन कहिये या फिर उसकी मज़बूरी समझिये। ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया था। बीजेपी को पिछले चुनाव में 74 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि जदयू 42 सीटों पर ही सिमट गई थी। 

ये सवाल इसलिए भी काफी महत्व के हैं क्योंकि अभी हाल में ही सी वोटर ने बिहार में सीएम फेस को लेकर एक सर्वे कराया है, जिसके परिणाम चौंकाने वाले हैं। यह सर्वे तब सामने आया है जब बीजेपी बार-बार यह कह रही है कि चुनाव नीतीश कुमार की ही अगुवाई में लड़ा जायेगा लेकिन बीजेपी सीना ठोक कर इस बार यह नहीं कह रही है कि सीएम नीतीश कुमार ही होंगे। बीजेपी का यही खेल जदयू को संशय में डाले हुए है और पार्टी के भीतर कई तरह के मंथन भी चल रहे हैं। यह बीजेपी का ही भय है कि जदयू के लोग पार्टी दफ्तर के बाहर और पटना की सड़कों पर कई बड़े होर्डिंग्स लगा रहे हैं जिसमें लिखा हुआ है -”25 से 30, सीएम रहेंगे नीतीश।”

बीजेपी के लोग भी इस पोस्टर को पढ़ रहे हैं और मुस्कुरा भी रहे हैं। हालांकि कुछ बोलते नहीं। बीजेपी को पता है कि अब नीतीश का चेहरा पुराना हो गया है और वे अब लोगों को आकर्षित नहीं कर रहे हैं। फिर उनकी दिमागी हालत भी ठीक नहीं रहती और वे कहीं भी कुछ बोलने से बाज नहीं आते। लेकिन चूंकि आज भी नीतीश कुमार के साथ हर जाति और समाज के वोट जुड़े हुए हैं और खासकर अति पिछड़े और महा दलित समाज में उनकी गहरी पकड़ है और वोट बैंक है इसलिए बीजेपी को सत्ता तक पहुंचने के लिए नीतीश की वैशाखी की ज़रूरत है। 

बीजेपी यह भी जानती है कि जदयू को वह जब भी चाहेगी पलट देगी, तोड़ देगी और उसके अधिकतर नेताओं को अपने पाले में ले आएगी। मौजूदा लोकसभा में जदयू के 12 सांसद हैं और इनमें से ज्यादातर बीजेपी के करीब चले गए हैं। जो ललन सिंह कभी बीजेपी के बड़े विरोधी थे, वे बीजेपी के खास हो गए हैं। जाहिर है बीजेपी ललन सिंह के जरिए आगामी जदयू की राजनीति में बड़ा दांव खेलने को तैयार है। जदयू के भीतर ही कई लोग कहते सुने जा सकते हैं कि ललन सिंह जो कर रहे हैं और जिस तरह की भाषा बोल रहे हैं उससे नीतीश कुमार भी डरे हुए हैं।

बिहार में लोग यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ललन सिंह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के बाद कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। फिर संजय झा और अशोक चौधरी की अपनी अलग कहानी है। लेकिन अभी ये सभी जदयू नेता बीजेपी के साथ ज्यादा सहज हैं। इनकी सहजता अब नीतीश कुमार के साथ पहले जैसा नहीं रहा। 

लेकिन यह सब होते हुए भी बीजेपी अभी वह सब करने को तैयार नहीं है जिसमें वह पारंगत है। पहले साथ लड़ो, फिर सत्ता शेयर करो और फिर झटका देते हुए साथी पर कब्जा कर लो या उसे दूर फेंक दो। नीतीश सब कुछ समझ रहे हैं लेकिन अब उनकी भी मज़बूरी है। अब पाला बदलने का न तो मौक़ा है और न ही उसका कोई लाभ ही होना है। लेकिन नीतीश कुमार को यह पता है कि उसके नाम पर इस बार भी वोट मिलेंगे।

भले ही वह बीजेपी को मात नहीं दें लेकिन जदयू की लाज तो बचा ही लेंगे। नीतीश अगर चुनाव में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं पाते हैं तो संभव है कि इस बार वे खुद भी सीएम बनने से इंकार कर सकते हैं और ऐसा नहीं हुआ वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनके जीते जी बीजेपी के हवाले बिहार चला जाए। तब नीतीश कुमार कोई अलग तरह का निर्णय भी ले सकते हैं। लेकिन तभी संभव है जब जदयू बची रहेगी। कौन जानता है कि चुनाव के बाद जदयू का क्या होगा और नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा।

लेकिन याद रखिये  बीजेपी चुनाव के बाद ही कोई बड़ा खेल कर सकती है और वह करेगी भी। जदयू और नीतीश इस कहानी को जानते हैं लेकिन उनके सामने कोई चारा भी अब नहीं बचा है। 

तो हम चर्चा कर रहे थे कि हालिया सी वोटर का जो सर्वे आया है वह नीतीश के लोगों और उनके समर्थकों को घायल करने जैसा है। इस सर्वे से बीजेपी काफी खुश है। कई बीजेपी नेता यह कहते सुने जा रहे हैं कि अब बहुत हो गया। सत्ता अब बीजेपी के हाथ जानी चाहिए और नीतीश कुमार को बैठ जाना चाहिए। वे थक भी गए हैं और उन्होंने बिहार के लिए बहुत कुछ किया भी है। 

सी वोटर के सर्वे ने बिहार के सियासी माहौल को गरमा दिया है। सर्वे में सीएम फेस को लेकर बिहारी समाज से बात की गई है। सर्वे के मुताबिक़ सीएम चेहरे के रूप में सबसे बड़े दावेदार राजद नेता तेजस्वी यादव उभर कर सामने आये हैं। उन्हें सर्वे में 36 फीसदी लोगों ने युवा सीएम के रूप में पसंद किया है। हालांकि कुछ महीने पहले हुए सर्वे में उन्हें बिहार के 41 फीसदी लोगों ने सीएम चेहरा के रूप में पसंद किया था। यानी कि इस बार लोगों की पसंद में पांच फीसदी की गिरावट आयी है। फिर भी तेजस्वी आज भी बिहार के लिए पहली पसंद बने हुए हैं। 

ऐसा भी नहीं है कि तेजस्वी ने अब सीएम नीतीश कुमार को पछाड़ दिया है और नीतीश कुमार दूसरे पायदान पर खिसक गए हैं। सच तो यही है कि नीतीश का चेहरा दूसरे नंबर पर भी नहीं है। वे खिसक कर तीसरे नंबर पर चले गए हैं। दूसरे नंबर पर प्रशांत किशोर को लोगों ने पसंद किया है। सीएम के रूप में उन्हें चाहने वाले लोगों का प्रतिशत 17 है। पिछले सर्वे में प्रशांत किशोर को 15 फीसदी लोगों ने सीएम के रूप में पसंद किया था, लेकिन इस बार 17 फीसदी लोगों ने पीके को पसंद किया है। याद रहे प्रशांत किशोर अभी तक कोई न तो चुनाव लड़े हैं और न ही उनकी पार्टी जन सुराज मैदान में ही उतरी है लेकिन सीएम फेस में उनका नाम दूसरे नंबर पर आ गया है। 

लोकप्रियता के मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दूसरे से खिसक कर तीसरे नंबर पर आ गए हैं। 15 प्रतिशत लोगों ने नीतीश को पहली पसंद बताया। इस लिहाज से पिछले सर्वे से उनकी लोकप्रियता में 3 प्रतिशत की गिरावट है। बिहार में बीजेपी ने वैसे तो सीएम फेस के लिए किसी का नाम आगे नहीं बढ़ाया है, मगर सम्राट चौधरी को लेकर अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। उनकी लोकप्रियता 13 प्रतिशत है। ताजा सर्वे में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिख रही है।

राम विलास पासवान के वारिस चिराग पासवान भी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी लोकप्रियता ताजा सर्वे में 6 प्रतिशत रही और इसमें 2 फीसदी का इजाफा है। साफ-साफ कहें तो तेजस्वी यादव (36%), प्रशांत किशोर (17%), नीतीश कुमार (15%), सम्राट चौधरी (13%) और चिराग पासवान (6%) को लेकर लोगों ने अपनी राय जाहिर की है। 

सी वोटर का यह सर्वे भले ही राजद और महा गठबंधन को लुभाता हो और जदयू और नीतीश कुमार को निराश करता हो लेकिन मुख्यमंत्री की लाइन में पहली बार बीजेपी नेता और मौजूदा उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का सीएम उम्मीदवार के रूप में उभरना एक बड़ी बात है। दिवंगत सुशील मोदी पहले बीजेपी के सीएम उम्मीदवार कहलाते थे, नहीं बन सके।

अब जिस तरह से सम्राट का नाम बीजेपी और अमित शाह उछाल रहे हैं क्या यह सब बीजेपी के बाकी नेताओं को अच्छा लगता है? कदापि नहीं। लेकिन ठगिनी राजनीति का सच तो यही है कि जो सबसे बेकार वह सबसे काबिल। बिहार की जनता पांच सेर अनाज पाकर आज भी बमबम है। कुछ नकदी पाकर भी फूले नहीं समा रही। गांव का गांव बेरोजगारों से भरा हुआ है। राहुल की राजनीति से पढ़े लिखे युवाओं का मन डोल गया है। और बिहार के युवा अगर इस बार डोल गए तो नीतीश का इकबाल भी ख़त्म होगा और बीजेपी का सपना भी टूट जाएगा। 

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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