साथियों अब तो इंतहा हो रही है। देश की तमाम स्वायत्त संस्थाओं पर काबिज भाजपा की भारत सरकार इस बार जब चंद माहों के लिए नियुक्त सीजेआई से मनमाने फैसले कराने में असमर्थ रही, तो पारा हाई होना ही था। क्योंकि अब तक रंजन गोगोई से लेकर चंद्रचूड़ तक सीजेआई जिस तरह भारत सरकार के गुलाम रहे उसे वर्तमान सीजेआई जस्टिस माननीय संजीव खन्ना ने अपने अल्प सेवा समय में आईना दिखा दिया है।
इससे बौखलाई भाजपा ने आईटी सेल के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट को कोठा तक कहलवाया। भक्तों ने सुप्रीम कोर्ट को मस्जिद स्वरूप में दिखा दिया। वक्फ़ बोर्ड मामले में जिस तरह खुलकर सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक जो बातें रखीं हैं उससे मोदी-शाह के साथ इस बिल के समर्थकों की धज्जियां उड़ गई हैं। वे मुस्लिमों को समझाने और उनके समर्थन के लिए घर घर गुरु ज्ञान देने का आंदोलन चला रहे हैं। क्योंकि उन्होंने समझ लिया है कि इस मसले पर उन्हें कामयाबी नहीं मिलने वाली। इससे वक्फ़ की संपत्ति के लूट के रास्ते बंद हो जाएंगे। इसलिए सीजेआई आंखों की किरकिरी बन गए हैं।
इसके अलावा राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा एक निश्चित अवधि से अधिक रोके गए बिलों पर भी सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी से हाय-हाय मची है। दुखद यह कि उपराष्ट्रपति धनकड़ जैसे लोग भी सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम संसद बनने के लिए लताड़ रहे हैं।
विदित हो, 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा के बाद 5 राज्यों की भाजपा सरकारों को राष्ट्रपति ने बर्खास्त कर दिया था। मप्र हाईकोर्ट में मामला गया, कोर्ट ने भाजपा सरकार बहाल करने का आदेश दिया। तब भी तो राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती दी गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया था। पूरे देश में भाजपा ने ख़ुशी मनाई थी।
वैसे ज़ब भी संसद से बने कानून को कोर्ट में चुनौती दी गई है तो मामला सुना गया है। यह बताया गया है कि मामला विधि सम्मत है या नहीं। अब ऐसा क्या हो गया है कि पूरी न्याय पालिका को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है?
कोर्ट ही तो बताती है कि संविधान के तहत काम हो रहा है या नहीं। शासन-प्रशासन से असहमत लोग लाखों केस रोजाना कोर्ट में दायर कर रहे हैं। आम आदमी आज भी न्यायालय की ओर उम्मीद से देखता है।
जबकि वे भूल जाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जनता के हितार्थ संसद और विधानसभाओं में पास तमाम बिलों की निगरानी करता है तथा असंवैधानिक मामलों पर पुनर्विचार करने का आदेश दे सकता है। वह न्याय दिलाने के लिए वचनबद्ध है और एक सजग पहरुआ की हैसियत रखता है। इसलिए वहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत जनमानस को न्याय का भरोसा दिलाता है।
लेकिन जब सत्ता के इरादे संविधान विरोधी होते हैं तभी उसे सीजेआई से डर लगता है।उसके आईटी सेल उपराष्ट्रपति और सांसद मंत्री निशिकांत सुप्रीम कोर्ट को अनाप शनाप बोलते हैं। यह सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाना होता है। जब दांव उल्टा पड़ता है तो सरकार सहजता से पल्लू झाड़ लेती है।
आम आदमी आज भी न्यायालय की ओर उम्मीद से देखता है। उस पर विश्वास करता है।
यह तय मानिए जिस दिन न्यायलय पर राजनीति का शिकंजा कसेगा उस दिन देश गर्त में चला जाएगा। इसलिए न्यायपालिका को SDM कोर्ट बनने से रोकिए, जहाँ पार्षद या सरपंच तक के फरमान चलते हैं।
ख़बर है कि सीजेआई की जांच सीबीआई करने वाली है। यह सरकार की बिकाऊ एजेंसी है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने जब यह कहा था कि इसकी नियुक्ति में सीजेआई का क्या काम तो इनके ईमान की कलई खुल जाती है। ठीक वैसे ही जैसे चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से सीजेआई को हटाया गया और चुनाव आयोग मनमानी करता रहा।
सोचिए अभी भी समय है। न्याय, न्याय पालिका और संविधान बचाना हर नागरिक का काम है। एक चेतना सम्पन्न सीजेआई को सरकार घेरे में लेने को आतुर है। वे अगले माह सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं उनके साथ खड़े होना आज की ज़रूरत है इससे आने वाले सीजेआई माननीय न्यायमूर्ति गवई साहब को भी सम्बल मिलेगा।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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