गुजरात से मज़दूर दिवस के पहले एक बहुत ही चिंताजनक खबर मिल रही है कि वहां से विभिन्न फैक्ट्रियों में काम करने वाले यूपी-बिहार के मज़दूरों को बांग्लादेशी आतंकी कहकर ना केवल उनके घर ज़मींदोज़ किए जा रहे हैं बल्कि उन्हें पाकिस्तानी लोगों की तरह अपने देस जाने के लिए खदेड़ा जा रहा है। कोई उनके पहचान पत्र और आधार कार्ड देखने के लिए तैयार नहीं है। गुजरात में चारों ओर मज़दूरों में मातम पसरा है।
बताया ये जा रहा है कि 28 सितंबर को गुजरात के साबरकांठा ज़िले में 14 साल की एक लड़की के साथ रेप हुआ था। इसमें रघुवीर साहू नाम के एक बिहारी मज़दूर को अभियुक्त बनाया गया है।
पुलिस ने साहू को गिरफ़्तार भी कर लिया है। इस घटना के बाद उत्तरी गुजरात में हिन्दी भाषियों पर हमले शुरू हो गए। पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही। मात्र एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना से संपूर्ण बाहरी प्रवासी मज़दूरों पर इस तरह का व्यवहार अनूठा और अजीबोगरीब है।
अगर हम, उद्योग विशेषज्ञों की मानें तो गुजरात में 1 करोड़ से ज्यादा लोग फैक्ट्रियों में काम करते हैं और उनमें से 70 फीसदी यानी 70 लाख लोग गैर-गुजराती हैं और ये सभी हिंदी भाषी क्षेत्रों जैसे यूपी और बिहार से आते हैं। उद्योग के हितधारकों का कहना है कि श्रमिकों की अचानक अनुपस्थिति ने समूचे औद्योगिक गतिविधि और उत्पादनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
एक दौर था जब नरेंद्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने राज्य में बिहार और यूपी के लोगों की सुरक्षा को लेकर अपने एक भाषण में कहा था- कि जब कोई बेटी पटना (बिहार की राजधानी) से किसी ट्रेन में बैठती है तो उसकी मां कहती है कि कहां हो, अगर वो कहती है कि वह गुजरात में है तो उसकी मां चिंतामुक्त हो जाती है कि अब मेरी बेटी सुरक्षित है। लेकिन आज वही बिहार और यूपी के लोग गुजरात में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वहां से जबरन उत्तर भारतीयों को भगाया जा रहा है, उन पर हमले हो रहे हैं, उनके साथ मारपीट की जा रही है।
बताया ये भी जा रहा है कि अहमदाबाद के चंडोला तालाब क्षेत्र और शाह आलम क्षेत्र में बांग्लादेश के आतंकियों का ठिकाना बना हुआ था जिसे मिनी बांग्लादेश कहा जाता है वहां 500 लोगों के मकान बुल्डोज करने की कार्रवाई हुई है। लेकिन जिस तरह मज़दूरों को कारखानों में काम के लिए बंधक बना के प्रताड़ित किया गया। तभी से मौका मिलते ही उन्होंने पलायन किया है। गुजराती समाज का यह व्यवहार अमानुषिक है। यूं ही कोई अपना काम-धंधा छोड़कर नहीं भागता है। लगता है गुजरात सरकार और वहां के लोग पीएम द्वारा पाकिस्तान को दी गई धमकी से चिंतित हैं इसलिए वहां मौजूद गैर गुजराती को वहां से हटाना चाहते हैं। कुछ समय तक बंधुआ कारखानों में दुबके मज़दूर अब सच्चाई जानकर पलायन कर रहे हैं। 2002 नरसंहार के वक्त ठीक इसी तरह एक क़ौम विशेष के मज़दूर यहां से भागे थे।
यदि गुजरात सरकार की नीयत साफ़ है तो उसे इस भागती भीड़ को रोकना होगा।वरना ये सैलाब बिहार को ले डूबेगा।
सानंद में स्थित औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। पिछले दशक में सानंद ने 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है और यही वजह है कि अलग-अलग राज्यों से मजदूर आकर यहां काम कर रहे हैं। लेकिन हमलों के डर से पिछले 3-4 दिनों में करीब 4,000 प्रवासी मजदूर अपने-अपने राज्यों को पलायन कर चुके हैं। श्रमिकों की भारी कमी की वजह से राज्य की कई फैक्ट्रियों का काम ठप हो गया है। डर के मारे लोग या तो अपने-अपने राज्यों को पलायन कर चुके हैं या कहीं छुपे हुए हैं। मेहसाणा, कड़ी, कलोल और हिम्मतनगर में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। यहां भी प्लास्टिक, वस्त्र और इंजीनियरिंग जैसे उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों ने गुजरात छोड़ना शुरू कर दिया है। कई फैक्ट्रियों के मालिकों ने इस समस्या से जल्द निजात पाने के लिए सरकार से गुहार लगाई है। किंतु यदि यह कार्य सरकार के संरक्षण में हो रहा है तो लगता नहीं कि इस पलायन पर विराम लगेगा। इस पलायन के लिए भाजपा ने कांग्रेस को कोसना शुरू कर दिया है जबकि सच पलायन करने वाले बता रहे हैं।
एक तरफ़ मज़दूरों का पलायन और दूसरी तरफ बिहार में मज़दूर दिवस मनाने की दो दिवसीय तैयारियां जोर-शोर से मज़दूरों को लुभाने की चल रही है। यदि मज़दूरों ने इस पर यकीन कर लिया तो गुजरात के कारखाने मज़दूरों के लिए तरस जाएंगे। इस बीच सवाल ये पैदा होना स्वाभाविक है कि जाति और धर्म के तांडव के बाद अब प्रदेशवाद की बारी देश को बर्बादी की ओर ले जाने वाली है। आतंक का यह भय देश की समन्वय वादी संस्कृति पर कठोर तमाचा होगा।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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