कार्ल मार्क्स कह कर चले गए कि ‘दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।’ बात अच्छी थी। पर भारत के संदर्भ में एक बात अलग भी थी कि यहां मजदूरों का भी वर्ग और जाति में विभाजन रहा है। यहां सामान्य वर्ग के मजदूरों को समाज एक नजर से देखता है तो दलित वर्ग के मजदूरों को जाति में उच्च-निम्म क्रम होने से अलग नजर से। हालांकि पूंजीवादी व्यवस्था दोनों का ही शोषण करती है। पर जातीय विभेद के कारण इन मेहनतकश मजदूरों का एक होना मुश्किल होता है।
जब हमारे सीवर मजदूर सीवर या सेप्टिक टैंकों में घुसने को बाध्य होते हैं या किए जाते हैं और अंदर जहरीली गैस से दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है तो सामान्य वर्ग के मजदूर एकजुटता दिखाते हुए विरोध प्रदर्शन नहीं करते। सीवर वर्करों को ही आवाज उठानी होती है कि ‘हमें मारना बंद करो।’
पूंजीवादी व्यवस्था और अघोषित फासीवादी सत्ता को जातिवादी मानसिकता के कारण इन सीवर मजदूरों के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
पिछले महीने यानी अप्रैल 2025 में ही एक हफ्ते में 6 सीवर मजदूरों की मौत हो गई।
बता दें कि 19 अप्रैल 2025 को गुजरात के अहमदाबाद में दो मजदूर सीवर सफाई करते हुए मारे गए।
19 अप्रैल को ही राजस्थान के अलवर जिले में दो मजदूरों की इसी प्रकार मौत हुई।
26 अर्पेल को हरियाणा के नारनौल में दा सफाई मजदूर अनूप और जोगेंद्र सीवर सफाई करते हुए मारे गए। ये लोग हरियाणा सरकार के ही जनस्वास्थ्य विभाग में काम करते थे।
इससे पहले 18 मार्च 2025 को देश की राजधानी दिल्ली के फ्रेंडस कॉलोनी में एक सफाई मजदूर की मौत सीवर सफाई के दौरान हो गई।
सरकार इन्हें हादसों का नाम देती है पर असल में सरकार द्वारा हमारे सीवर सफाई कर्मचारियों की ये हत्याएं हैं। क्योंकि कानूनन मैनुअली सफाई प्रतिबंधित है तो फिर उन्हें सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए क्यों उतारा जाता है? वह भी बिना सुरक्षा उपकरणों के। यह अपराध है। पर इसमें सजा किसी को नहीं मलती। आखिर क्यों?
दरअसल ये जातिवादी प्रशासनिक अधिकारियों की मानसिकता होती है कि कानून का पालन नहीं किया जाता।
हमारे देश में मजदूर दो भागों में विभाजित हैं। एक सामान्य वर्ग के और दूसरे अनुसूचित जाति के यानी दलित। उनकी जाति के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसलिए वर्ग विहीन और जाति विहीन समाज Classless and Casteless Society की स्थापना की बात कही थी।
1942 में जब बाबा साहेब कानून मंत्री थे तब उन्होंने सफाई के मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने हफ्ते में 48 घंटे काम की सिफारिश की। वे जानते थे कि मजदूरों का गरीबी के साथ-साथ जाति के नाम पर भी शोषण किया जाता है। इसके लिए उन्होंने जाति के विनाश की बात की।
बताते चलें कि मैनुअली यानी हाथ से मैला साफ करने का कार्य कानूनों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है पर जमीनी स्तर पर अभी भी जारी है। हमारी मां-बहने शुष्क शौचालय साफ करने में लगी हैं तो पुरुष अन्य सफाई कार्यों के साथ सीवर या सेप्टिक टैंकों की सफाई कर रहे हैं। ठेकेदार इन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर या सेप्टिक टैंक में उतार देते हैं और परिणाम होता है जहरीली गैसों से दम घुटने से इनकी मौत।
इन मौतों के लिए किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जाता। इसी तरह हमारे भाईयों की जान जा रही है और उनके परिवार अनाथ हो रहे हैं। सरकार की उदासीनता और सफाई कर्मचारियों के परिवार की अज्ञानता के कारण सीवर-सेप्टिक में मृत सफाई कर्मचारियों के परिवारों को मुआवजा भी नहीं मिलता। उन्हें समय से उचित मजदूरी भी नहीं मिलती।
हमारे सफाई कर्मचारी भाई बहुत ही दयनीय स्थिति में जी रहे हैं। ठेकेदारी प्रथा के कारण न तो उनका रोजगार सुरक्षित होता है। न उन्हें न्यूनतम मजदूरी मिलती है और न उन्हें ग्रेच्युटी, पेंशन, मुफ्त इलाज की सुविधाएं। ऐसे में लेबर डे के मौके पर इन पर विचार करना, और अपने मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेना जरूरी है।
श्रम दिवस, जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस या मई दिवस के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया भर के श्रमिकों और मजदूर वर्ग के सम्मान और उनके अधिकारों के समर्थन में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन उन ऐतिहासिक संघर्षों और बलिदानों को याद दिलाता है जो श्रमिकों ने बेहतर काम करने की परिस्थितियों, उचित वेतन और सम्मानजनक जीवन के लिए किए थे। भारत में भी श्रम दिवस का विशेष महत्व है, जहां यह देश के विकास में श्रमिकों के अमूल्य योगदान को स्वीकार करने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
मेहनतकशों में पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण से मुक्ति और सामाजिक न्याय के लिए आपस में एकता, जागरूकता और सक्रियता का होना जरूरी है।
आज लोकतंत्र की आड़ में पूंजीवादी बाजारवादी ताकतें फिर हमें 12 और 16 घंटे की ड़यूटी की ओर ढकेल रही हैं। इससे सतर्क रहना होगा। सावधान रहना होगा। और एकजुट होकर इन ताकतों क खिलाफ संघर्ष करना होगा। इस दमन के खिलाफ एक नई क्रांति का बिगुल फूंकना होगा। तभी सामान्य मजदूर हों या सीवर सफाई मजदूर अपना हक पा सकेंगे और शोषण मुक्त होकर सम्मानित जीवन जी सकेंगे।
(राज वाल्मिकी स्वतंत्र पत्रकार हैं। सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)
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