देर रात हमने सज्जाद अहमद भट्ट को फोन किया, दूसरी तरफ से बहुत ही धीमी आवाज़ थी, जिसमें एक दर्द अभी भी महसूस किया जा सकता था, सज्जाद पूरा दिन मीडिया से बात करते और तमाम भाग-दौड़ से कुछ थक गए थे इसलिए उन्होंने सुबह बात करने के लिए कहा।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बाइसरन वैली में आतंकी हमला हुआ, उस दिन के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, इन्हीं वीडियो में से 11-12 सेकेंड का एक वीडियो सज्जाद अहमद भट्ट का भी है। इस वीडियो में वो पीठ पर एक डरे सहमे बच्चे को लिए बेतहाशा दौड़े चले जा रहे हैं, चारों तरफ देखते हुए पसीने से तर उनका चेहरा बिल्कुल लाल हो गया था। सज्जाद हमले के बाद मदद के लिए बाइसरन वैली पहुंचे थे।
इस वीडियो को देखकर सज्जाद को कश्मीर का हीरो बुलाया जा रहा है, हमने सज्जाद से फोन पर उस दिन और उसके बाद के हालात पर बात की।
सवाल- बाइसरन से नीचे उतरते हुए एक बच्चे को पीठ पर लिए एक शख्स दौड़ रहा है, ऐसा एक वीडियो वायरल हुआ है, क्या उस वायरल वीडियो में आप हैं? और क्या आप जानते हैं वो वीडियो किसने बनाया था?
सज्जाद अहमद भट्ट– जी, जो कंधे पर बच्चा दिखाई दे रहा है? हां, उस वीडियो में मैं ही हूं, लेकिन मुझे नहीं पता वो वीडियो किसने बनाया और किसने वायरल किया, जब हम ऊपर से नीचे जा रहे थे लोगों की मदद के लिए, पता नहीं तभी किसी ने वो वीडियो बनाया, लेकिन मैं अकेला नहीं था मदद करने वालों में मेरे जैसे बहुत सारे लोग थे जिनके कंधों पर लोग थे। लेकिन,मेरा वीडियो वायरल हो गया।

22 अप्रैल को ज़मी पर जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के पहलगाम की बाइसरन वैली को आतंकियों ने ख़ून से नहला दिया, मीडिया पर आ रही ख़बरों से तस्वीर साफ नहीं हो पा रही थी कि नुकसान कितना बड़ा है? जब तक हालात का सही अंदाज़ा लगता, बहुत बड़ा धक्का लग चुका था। सेना के साथ ही लोकल लोग ने मोर्चा संभाला और मदद के लिए मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाली बाइसरन वैली का रुख़ किया इनमें सबसे अहम थे, टूरिस्ट गाइड, खच्चर वाले (पोनी), ATV गाड़ियां चलाने वाले, और साथ ही पहलगाम के होटल वाले।
हमने सज्जाद से उनके बाइसरन वैली पहुंचने से जुड़ा सवाल पूछा –
सवाल- 22 अप्रैल को आप बाइसरन में क्या कोई काम कर रहे थे ( मतलब शॉल बेच रहे थे ) या फिर बाद में आए थे, उस दिन के बारे में अगर कुछ बता सकते हैं तो बताएं।
सज्जाद अहमद भट्ट– 22 तारीख़ को मैं घर पर ही था। मेरी चाची जो रिश्तें में मेरी मौसी भी लगती थी, उनकी डेथ हो गई थी तो हम उसी के दुख में उनके घर पर थे, बहुत सारे लोग जो घर पर ताज़ियत (दुख व्यक्त) करने के लिए आए हुए थे, उसमें पोनी (खच्चर) एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी आए हुए थे, जैसे ही बाइसरन में हादसा हुआ तो उनके व्हाट्सएप ग्रुप जिसमें पोनी वाले जुड़े होते हैं, उसपर उनको मैसेज आया था शायद पुलिस की तरफ से भी मैसेज आया था कि बाइसरन में हादसा हुआ है आप लोग चलें क्योंकि वहां ऊपर गाड़ी नहीं जा सकती, वहां से लोगों को पहलगाम हॉस्पिटल लाना है, तो हम लोग घर से निकले, प्रेजिडेंट साहब के साथ ही निकले हम, 40 मिनट में वहां पहुंचे, तब 3 बजकर 10 मिनट या 15 मिनट था, जब वहां हम पहुंचे तो हमने देखा हमारी बहनें चिल्ला रही थीं, मदद के लिए चिल्ला रही थीं, बच्चे रो रहे थे, हम भी डरे-सहमे हुए थे कि क्या करें, लाशों को उठाएं, ज़ख्मियों को हॉस्पिटल पहुंचाएं? हमने वहां जो बहनें थी पहले उन्हें पानी-वानी पिलाया, जो जख़्मी थे उन्हें घोड़े पर रवाना किया पहलगाम की तरफ और लोगों को कंधे पर उठाकर आधे रास्ते तक छोड़ कर आए, फिर वापस आए जो बच्चे चल नहीं पा रहे थे, ज़ख्मी थे उन्हें मैंने कंधे पर उठाया और पहलगाम की तरफ लेकर जा रहा था, उसी दौरान रास्ते में किसी ने वीडियो बनाया होगा, जो वायरल हो गया। फिर मैंने बच्चे को एंबुलेंस में बैठाया, पानी-वानी उनको पिलाया और अपने घर को लौट आया। जिस बच्चे को मैंने उठाया था उनकी मां को भी एक गाइड जो शॉल का भी काम करता है उसने कंधे पर उठाया हुआ था।
जिनके साथ ये घटना हुई वो ताउम्र उसे नहीं भूल सकते, बहुत से पीड़ितों को इससे उबरने में लंबा वक़्त लगने वाला है। सज्जाद और वो तमाम लोग जो मदद के लिए वहां पहुंचे या जिन्होंने भी वो मंजर देखा उनकी भी स्थिति शायद ज़्यादा बेहतर नहीं होगी। हमने सज्जाद से इसी से जुड़ा एक सवाल पूछा।
सवाल- सज्जाद उस वक़्त जो मंजर आपने देखा, और अब जो ये माहौल है आपको क्या लगता है आपकी जिन्दगी 22 अप्रैल के बाद कितनी बदल गई ?
सज्जाद अहमद भट्ट– मैं बहुत ही मानसिक तनाव में हूं, मैंने जो मंजर वहां देखा था उसके बाद से मेरे अंदर बेचैनी चल रही है। दूसरा हमारे दिलों में एक चोट लगी है, ये पूरे कश्मीर के माथे पर दाग़ लगा है, किसी भी मज़हब में नहीं लिखा है कि बेगुनाहों को मारो, ये एक कायराना हमला है, हमारे भाइयों को मारा, बहनों का सुहाग उजड़ गया, वो भी हमारे अपने ही लोग थे, ये इंसानियत का क़त्ल हुआ है, इससे अच्छा था हमारे घरों के दरवाज़े खोलकर हमें मार देते वो हम बर्दाश्त कर लेते लेकिन ऐसी जो हरकत हुई है वो हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।
सज्जाद ही नहीं तमाम दुनिया यही कह रही है कि ये इंसानियत का क़त्ल है, लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि घटना के बाद जिस तरह से गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर कश्मीरी लोगों और एक समुदाय के प्रति नफ़रत भड़काने की कोशिश की गई वो कहां तक जायज़ है? पूरे देश में कश्मीरी छात्रों और शॉल बेचने गए कश्मीरियों के साथ मारपीट के वीडियो सामने आ रहे हैं।
ऐसा ही एक वीडियो मसूरी से भी सामने आया जहां दो शॉल वालों को कुछ लोग गंदी, भद्दी गालियों से साथ पीट रहे हैं और उन्हें तुरंत मसूरी छोड़ने के लिए धमका रहे हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि कश्मीरियों को परेशान करने वालों को पुलिस ने पकड़ लिया (लेकिन आगे की कार्रवाई क्या हुई क्या पता) सज्जाद अहमद भट्ट भी शॉल बेचते हैं लेकिन कश्मीर में हुए आतंकी हमले में उन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगा दी लेकिन मसूरी में उन्हीं जैसे शॉल बेचने वालों को नफ़रत का शिकार होना पड़ा हमने सज्जाद से इस बारे में एक सवाल पूछा-
https://x.com/MuslimSpaces/status/1917238802634227842
सवाल- सज्जाद, देश के दूसरे हिस्सों में कश्मीरियों के साथ जो हो रहा है आपने भी वायरल वीडियो में देखा होगा, अभी एक मसूरी का वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें शॉल बेचने गए कश्मीरियों के साथ मारपीट की गई, जिसके बाद 16 शॉल वालों ने मसूरी छोड़ दिया तो जो इस तरह से कश्मीर के लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं क्या आप उनको कुछ कहना चाहते हैं?
सज्जाद अहमद भट्ट – जो लोग ये कर रहे हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि आप बंद कमरे में मत बैठो, न्यूज़ में जो कश्मीर को लेकर ग़लत दिखाया जा रहा है वो मत सुनो, आप कमरे से बाहर निकलो, कश्मीर आओ आपको पता चलेगा कश्मीर की सच्चाई क्या है, कश्मीर के लोगों के दिलों में क्या है, आप प्रोपगैंडा में ना फंसे, आप बिला वजह किसी को ना सताएं, हम सब भाई-भाई हैं, कोई मज़हब नहीं सिखाता कि दूसरे मज़हब के लिए नफ़रत रखो, मैं यही बोलता हूं, हम सब भाई हैं हमें आपस में भाईचारा रखना चाहिए, किसी को सताने से कुछ नहीं मिलता, आख़िर तो सब इंसान हैं।
”आख़िर तो सब इंसान है” और यही सोचकर वो मदद के लिए दौड़े चले गए, लेकिन मसूरी से मारपीट कर भगाए गए कश्मीरी शॉल वालों का कहना है कि जब हमारे साथ मारपीट हो रही थी तो कोई हमारे लिए नहीं खड़ा हुआ।
(नजमा खान स्वतंत्र पत्रकार हैं)