फिलिस्तीनी नागरिकों पर लगातार होते हमलों से जो इज़राइली कभी लेशमात्र दुखी नहीं हुए ऐसे लोग जब आज खुद मुसीबतों से घिरे हुए हैं तब युद्ध बंद करने का आह्वान और माफ़ी मांग रहे हैं। यदि यह वहां की अवाम का निर्णय स्वयं का है नेतान्याहू सरकार से प्रेरित नहीं है तो स्वागतेय है।
ख़ून के पिपासु सत्ता लोलुप देशों के लिए इज़राइल के नागरिकों की इस अपील से सबक लेने की ज़रूरत है। इसके साथ ही उन्हें अपने देश के नेताओं के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठानी चाहिए और उनकी गलतियों के लिए उन्हें सत्ता से हटाने का अभियान चलाया जाना चाहिए। तब बात बनेगी।
यही कदम अमेरिका के नागरिकों को उठाना चाहिए यदि इज़राइल की तरह ऐसे कदम बहुत पहले उठा लिये गये होते तो वियतनाम, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान इराक की आज यह हालत ना होती।
इन नागरिकों को यह समझना होगा कि फासिस्ट देश अमरीका की अंधभक्ति में पागल इज़राइल ने फिलीस्तीन के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया जिस देश ने यहूदियों के यूरोप से खदेड़े जाने पर उन्हें शरण दी। उसके देश में रहकर इंग्लैंड ने 1948 में अपने आधिपत्य से फिलीस्तीन को तब आज़ादी दी जब यहूदियों के लिए अलग राष्ट्र इज़राइल बना दिया। ठीक वैसे ही जैसे भारत को टुकड़े कर इसी दौरान पाकिस्तान बनाया।
इससे पहले जब प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) मुख्य रूप से मित्र राष्ट्रों (फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, इटली, जापान और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका) और केंद्रीय शक्तियों (जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया) के बीच लड़ा गया था तो ऑटोमान साम्राज्य से बड़ी तादाद में अरब के लोग फिलीस्तीन पहुंचे इसी समय यहूदियों ने भी इस देश में शरण ली। बाद के वर्षों में स्थिति बेहतरीन रही यहां ईसाई, यहूदी और अरबी मेल जोल से रहते रहे। येरुशलम यहीं था और दुनिया में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल था। हज़ारों हज़ार लोग यहां आते रहे।
दूसरे विश्व युद्ध के समय भी यहूदियों ने फिलीस्तीन में शरण ली इससे वहां इनकी संख्या में बहुत वृद्धि होती गई। इसमें इंग्लैंड का हाथ था।
स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसे अपने मुताबिक चलाकर भरपूर हथियारों से लैस कर दिया। फिलीस्तीन एक ऐसा देश है जो 1949 से इज़राइल से लड़ रहा है इन युद्धों की वजह से पिटते फिलीस्तीन से अरब के लोग लगातार पलायन कर रहे हैं उनकी संख्या कम हो गई है। उनके वेस्ट लैंड और गाज़ा पर वीभत्स हमलों में लगातार नागरिकों जिनमें महिलाएं बच्चे बड़ी तादाद में हैं, मारे जा रहे हैं। लेकिन फिलीस्तीन मुक्ति मोर्चा के लड़ाका आज भी लड़ रहे हैं अपनी खोई ज़मीन वापसी के लिए।
इतिहास बताता है कि हमेशा से फिलीस्तीन पर हावी इज़राइल अपने आप को बाहुबली समझने लगा था। इराक के बाद परमाणु बम विरोधी अभियान में ईरान ने आज ना केवल इज़राइल को बल्कि वहां से प्रक्षेपित अमेरिकी हथियारों को जिस तरह धराशाई किया है और ईंट का जवाब पत्थर से दे रहा है।
उससे दुनिया भर में अमेरिकी दादागिरी और हथियारों का जखीरा भेजने वाले का हौवा समाप्त होगा।तथा पूर्वी देशों की ताकत बढ़ेगी। जबकि भारत की ढुलमुल नीति का अंजाम अच्छा नहीं होगा। अमेरिकी अत्याचार से पीड़ित तमाम देश अपने को मुक्त महसूस कर रहे हैं लेबनान जैसा छोटा मुल्क भी इज़राइल पर मिसाइल बरसा रहा है। आगे आगे देखिए होता है क्या? लगता है इस बार ईरान पीछे हटने वाला नहीं है। युद्ध बंद की मांग और माफ़ी मांगने का समय शायद अब नहीं रहा। टैरिफ के नाम पर धमकाने वाला देश आज बुरी तरह परास्त नज़र आ रहा है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)