कई सालों तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अमेरिकी प्रभुत्व को ऐसा समझा गया मानो भविष्य की दिशा वही तय करेगा। लेकिन अब दुनिया की निगाहें तेजी से दूसरी ओर घूम रही हैं-चीन की ओर। ऐसा लग रहा है कि तकनीक के इस नए शीत युद्ध की जमीन तैयार हो चुकी है, जहाँ दो महाशक्तियाँ न केवल एक-दूसरे को चुनौती दे रही हैं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था की धुरी को पुनर्परिभाषित भी कर रही हैं।
DeepSeek, Zhipu, Qwen-ये अब केवल नाम नहीं रहे बल्कि ऐसे उपकरण बन गए हैं जिनसे HSBC, स्टैंडर्ड चार्टर्ड, सऊदी अरामको जैसी वैश्विक कंपनियाँ काम ले रही हैं। भारत, अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे इलाके, जहाँ अमेरिकी मॉडल पहले बिना प्रतिद्वंद्वी के थे, अब चीनी तकनीकों के प्रयोगशाला बनते जा रहे हैं। और यह केवल तकनीकी क्षमता के कारण नहीं हो रहा, बल्कि सस्ता मूल्य, खुला स्रोत और स्थानीय जरूरतों के अनुसार अनुकूलन की सुविधा-ये सब इसे आकर्षक बनाते हैं।
जब अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियाँ भी DeepSeek को अपनी सेवाओं में शामिल करती हैं, तब यह संकेत सिर्फ व्यापारिक व्यावहारिकता का नहीं, बल्कि शक्ति-संतुलन के पुनर्संरचना का है। जबकि व्हाइट हाउस डेटा-सुरक्षा की चिंता में चीनी ऐप्स पर रोक लगाता है, अमेरिकी कंपनियाँ उन्हें अपने ग्राहक अनुभव का हिस्सा बना रही हैं-यह विरोधाभास कुछ तो कहता है।
चीन की ताकत केवल मशीनों तक सीमित नहीं है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दो सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ-डेटा और मानव संसाधन-में चीन को बढ़त हासिल है। और यही वह आधार है जिस पर चीन अपने एआई साम्राज्य की नींव रख रहा है। जहाँ अमेरिका सुपरइंटेलिजेंस की खोज में है, चीन जमीन पर उतरे उपयोगों को प्राथमिकता दे रहा है। यही व्यावहारिकता उसे विकासशील देशों के करीब ला रही है।
Tencent, Baidu और Alibaba जैसी कंपनियाँ अपने मॉडल ओपन-सोर्स बनाकर दुनिया भर के डेवलपर्स को आमंत्रित कर रही हैं-आओ, इसे अपनी ज़रूरत के मुताबिक ढाल लो। जब जापान के उद्योग मंत्रालय के लिए Abeja ने Qwen को Google और Meta के ऊपर प्राथमिकता दी, या जब दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटर्सरैंड ने डेटा सुरक्षा के लिए DeepSeek को चुना-तब यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिका की पकड़ ढीली हो रही है।
OpenAI के सैम ऑल्टमैन कह रहे हैं कि लोकतांत्रिक एआई को तानाशाही एआई पर जीत दिलानी है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पश्चिमी मीडिया में जिसे तानाशाही बताया जा रहा है वहीं तानाशाही एआई बहुत ही लोकतांत्रिक तरीके से दुनिया भर में फैल रहा है-खुला, सस्ता और व्यावहारिक बनकर। पिछले दिनों जब अमेरिका ने Nvidia की H20 चिप की बिक्री चीन में बंद की, तो Nvidia को ही 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। यह तो महज़ शुरुआत है। Meta, Google, और Anthropic जैसी कंपनियाँ भी दबाव में हैं-उन्हें यह साबित करना होगा कि उनका महँगा, बंद मॉडल क्यों DeepSeek जैसे सस्ते और खुले मॉडल से बेहतर है।
एक दौर था जब चीनी छात्र सिलिकॉन वैली की रगों में दौड़ते थे, जब अमेरिकी पूँजी चीन की एआई कंपनियों में 30% तक लगी होती थी। आज, पूँजी का प्रवाह रुक गया है, वीज़ा की दीवारें ऊँची हो गई हैं, और चीनी कंपनियाँ अमेरिका-मुक्त सप्लाई चेन बना रही हैं।
लेकिन यह द्वंद्व केवल आर्थिक या तकनीकी नहीं है-यह विचारधारा का भी संघर्ष है। तथाकथित दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और तथाकथित तानाशाही के बीच, और जैसे-जैसे चीनी मॉडल वैश्विक मानक बनते जाएंगे, अमेरिका के पास वैश्विक तकनीकी दिशा तय करने की शक्ति घटती जाएगी।
यह दौड़ किसके नाम होगी, यह शायद कोई सटीक नहीं कह सकता-लेकिन इतना तय है कि अब यह दौड़ केवल अमेरिकी कंपनियों के बीच नहीं है। यह दौड़ अब उस दुनिया की कल्पना पर भी है जिसमें हम आने वाले वर्षों में जीने वाले हैं-ऐसी दुनिया जहाँ डेटा ही हथियार है, और एल्गोरिद्म ही सत्ता।
(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)