नवजोत सिंह सिद्धू।

नवजोत सिंह सिद्धू का अगला ठिकाना ‘आप’?

पंजाब के सियासी गलियारों में जबरदस्त सरगोशियां हैं कि भाजपाई से कांग्रेसी बने नवजोत सिंह सिद्धू अब ‘आप’ के हो सकते हैं। कभी भाजपा आलाकमान के बेहद चहेते रहे पूर्व सांसद और वर्तमान में विधायक सिद्धू एकाएक चर्चा में आ गए हैं। भाजपा उन्हें लगातार अमृतसर से सांसद बनाती रही तो कांग्रेस ने उन्हें विधायक बना कर कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में मंत्री पद दिया। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के हाईकमान के वह प्रिय रहे। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए भी वाया सरकार नामजद किया था। इसी से उनकी ‘पहुंच’ का अंदाजा भी लगाया जा सकता है लेकिन महत्वाकांक्षा का अंदाजा कौन लगाए?    

अति महत्वाकांक्षा ने ही नवजोत सिंह सिद्धू को डेढ़ साल से ‘राजनीतिक वनवास’ दिया हुआ है। सूबे में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो सिद्धू उसमें आला स्तर के वजीर थे। वजीरी इसलिए रास नहीं आई कि उनकी निगाह सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी थी। इसलिए भी कि जब वह ‘कमल’ का मोह छोड़कर ‘हाथ’ थामने गए थे तो उन्हें (ऐसा बताया जाता है) राहुल और प्रियंका गांधी ने पंजाब में सरकार आने पर उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। मुख्यमंत्री का चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह थे। वह और नवजोत एक ही जिले पटियाला के मूल बाशिंदे हैं। अमरिंदर राजशाही घराने से हैं। वहां की रवायत रही है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं होतीं! सो समझिए कि नवजोत सिंह सिद्धू क्यों उपमुख्यमंत्री नहीं बन पाए। ऐसा नहीं हुआ तो असंतोष पहले दिन से ही उनका साथी हो गया। 

कई मुद्दों-मसलों को लेकर वह मुख्यमंत्री से भिड़े और अंततः यह भिड़ंत अदावत में बदल गई। नतीजतन सिद्धू को मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा। भाजपा के स्टार चुनाव प्रचारक रहे सिद्धू कांग्रेस के भी स्टार प्रचारक थे लेकिन रफ्ता-रफ्ता उन्होंने कांग्रेस से किनारा ही कर लिया। साफ तौर पर कुछ नहीं कहा लेकिन ‘वाहनों’ के पीछे सबको साफ नजर आता था कि ‘गुरु’ की असली मंशा क्या है। कोरोना वायरस से ठीक पहले वह अपना यूट्यूब चैनल लेकर हाजिर हुए और लॉकडाउन तथा कर्फ्यू के बीच अमृतसर  (जो उनकी अतीत और वर्तमान की सियासी कर्मभूमि है) में विचरते नजर आए।

कोरोना के लॉकडाउन में उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की धज्जियां उड़ाईं तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कवायद का ‘रिस्क’ भी लिया। तभी साफ हो गया था कि ‘गुरु’ न घर वापसी करेंगे यानी भाजपा में लौटेंगे और न अपना राजनीतिक कोपभवन छोड़कर हाल ही में छोड़े गए महल-घर कांग्रेस में। कांग्रेस के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल बड़ा दल है। उसमें जाने का सवाल ही नहीं क्योंकि बादल घराना उनका विरोध ही नहीं करता बल्कि नफरत भी करता है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने एक वैकल्पिक दल के तौर पर पहचान बनाई है। स्वाभाविक था कि सिद्धू उधर की तरफ जाएंगे।  

गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए अरविंद केजरीवाल के साथ कई बैठकें की थीं। सत्ता हासिल होने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर केजरीवाल के साथ पैदा हुए मतभेदों के बाद सिद्धू कांग्रेस में शामिल हुए थे। सिद्धू ने इसे घर वापसी कहा था क्योंकि उनके पिता खांटी कांग्रेसी रहे। कांग्रेस की बदौलत वह पीपीएससी के चेयरमैन रहे। सिद्धू का राजनीतिक संक्रमण वहीं से है। कैप्टन अमरिंदर सिंह शुरू से ही नवजोत के खिलाफ रहे हैं।

कैप्टन ने कभी भी सिद्धू को एक सीमा से ज्यादा तरजीह नहीं दी। बावजूद इसके सिद्धू को उम्मीद थी कि राहुल और प्रियंका गांधी उन्हें पंजाब की राजनीति में कैप्टन के विरुद्ध स्थापित होने में मदद करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कभी राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाया था लेकिन उनका वर्चस्व कायम रहा। पंजाब कांग्रेस में कैप्टन आखिरकार ‘कैप्टन’ ही हैं और सिद्धू फिलवक्त हाशिए पर।                          

नवजोत भाजपा छोड़ आए और कांग्रेस में कोई ठिकाना नहीं तो ऐसे में मुद्दत से आलम ‘जाएं तो जाएं कहां’ का है। पंजाब में विकल्प सिर्फ और सिर्फ आम आदमी पार्टी है। प्रशांत किशोर इस बाबत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। हासिल जानकारी के मुताबिक सिद्धू और प्रशांत के बीच ‘आप’ में शामिल होने को लेकर बदस्तूर फोन-वार्ता हो रही है। सूत्रों के अनुसार मामला ‘भूमिका’ को लेकर अटका हुआ है। बताया जाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू सीधे-सीधे ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से आश्वासन चाहते हैं कि पंजाब में अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में वह परंपरागत पार्टियों को हराकर आप को जीत के करीब ले जाते हैं तो मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जाए। सियासी जानकारों के मुताबिक सिद्धू और ‘आप’ का रिश्ता इस बिंदु पर अटका हुआ है। वरना कोई देर नहीं!

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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