इलाहाबाद हाईकोर्ट।

सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल न करने वालों को जेल न भेजे यूपी सरकार, कोर्ट ने दी जागरूकता फ़ैलाने की सलाह

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सलाह दी है कि सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल न करने के मामले में जेल भेजने के बजाय जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश की जाए। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश की जेलों में पहले से काफी भीड़ है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर जेल भेजने से कोरोना संक्रमण को बढ़ावा ही मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह कोरोना वायरस से निपटने के लिए केंद्र सरकार की गाइड लाइन का पालन करे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 याचिकाकर्ताओं ने याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से बचाव के लिए शासन उन लोगों पर सख्त कार्रवाई कर रहा है, जो इससे जुड़े कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने ताजगंज आगरा के मिसलेनियस याचिका संख्या 5602 /2020, मुन्ना एवं 6 अन्य बनाम यूपी राज्य एवं तीन अन्य की याचिका पर अधिवक्ता दिनेश कुमार मिश्र को सुन कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर दर्ज एफआईआर से अपराध बनता है लेकिन याचियों को एक अवसर दिया जाए कि वे एसएसपी आगरा के समक्ष कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन और भविष्य में उल्लंघन न करने का आश्वासन दाखिल करें तो एसएसपी विचार कर उस पर निर्णय लें। कोर्ट ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर दर्ज मुकदमे की विवेचना में सहयोग करने की शर्त पर पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने तक याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 188, 269 आईपीसी के तहत पुलिस स्टेशन ताजगंज, आगरा में एफआईआर दर्ज किया गया था और वे उस एफआईआर को रद्द करने की हाईकोर्ट से मांग कर रहे थे। इस मामले के निर्णय में खंडपीठ ने कहा कि एफआईआर के मुताबिक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ केवल यह आरोप है कि सामाजिक दूरी के प्रोटोकॉल का पालन 8 से 10 लोगों की भीड़ के द्वारा नहीं किया गया, जो कि मल्को गली, ताजगंज आगरा के एक सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित हुए थे और सभी याचिकाकर्ता इस भीड़ के सदस्य थे।आदेश में कहा गया है कि उस स्थान (मल्को गली, ताजगंज आगरा) पर कोई भी अनैच्छिक/प्रतिकूल घटना घटित होने का आरोप नहीं है।

खंडपीठ ने कहा कि इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि शहर के लोग, एक दायित्व के तहत हैं कि वे कोविड -19 महामारी के साथ देश की सामूहिक लड़ाई में सामाजिक दूरी के प्रोटोकॉल का पालन करें। यह प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह प्रोटोकॉल के बारे में जागरूक हो और यह देखे कि दूसरे भी उसका सख्ती से पालन कर रहे हों। हालाँकि, हमारी राय में इन लोगों पर लगाम कसना, जिन्होंने किसी कारण से सामाजिक दूरी के प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है, कोरोना संकट को और बढ़ा सकता है। हमारी राय में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना अधिक उचित होगा, बजाय इसके कि लोगों को जेल या लॉक अप में डाला जाए, जो कि पहले से ही ओवर-क्राउडेड हैं।

खंडपीठ ने अपने आदेश में याचिकाकर्ताओं को स्वयं में सुधार लाने का अवसर प्रदान करते हुए कहा कि एफआईआर एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है, लेकिन याचिकाकर्ताओं को स्वयं में सुधार लाने का एक अवसर प्रदान करने के लिए, यह आदेश  किया जाता है कि वे (प्रत्येक) आगरा पुलिस अधीक्षक के समक्ष एक अंडरटेकिंग दायर करेंगे, जिसमें कहा जायेगा कि वे कोविड-19 के सभी मानदंडों और प्रोटोकॉल का पालन करेंगे और भविष्य में इसका उल्लंघन नहीं करेंगे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, आगरा याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए अंडरटेकिंग पर विचार करते हुए जरूरत के मुताबिक कार्य करेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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