Sunday, April 28, 2024

अडानी ग्रुप और चीनी कंपनी के बीच एमओयू को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के बाद भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ डटी हैं और युद्ध का माहौल बन गया है। ऐसे में भारतीय जनमानस में चीन के प्रति नफरत का माहौल है। देश की जनता चाहती है कि चीन से सभी व्यापारिक सम्बन्ध भारत तोड़ ले। इसे देखते हुए मोदी सरकार चीन को झटका दे रही है और जहाँ प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने ने चीनी सोशल मीडिया ऐप वीबो से अपना अकाउंट डिलीट कर दिया है वहीं टिक-टॉक समेत 59 चीनी ऐप को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया हैं। जिन 59 ऐप पर बैन लगाया गया था, उनमें वीबो भी शामिल है।

यही नहीं रेलवे ,राष्ट्रीय राजमार्ग सहित टेलीकॉम क्षेत्रों के कामों में भी चीनी कम्पनियों को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया शुरू की गयी है। पर पिछले छह सप्ताह के दौरान पीएम के कारोबारी मित्र गौतम अडानी और एनी कार्पोरेट्स के साथ चीनी पूंजी का जो गठजोड़ हुआ है उस पर मोदी सरकार ने रहस्यमय चुप्पी ओढ़ रखी है। नतीजतन मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया है और याचिका दाखिल करके अडानी ग्रुप और चीनी कंपनी के बीच एमओयू  को रद्द करने तथा चीन और भारत के बीच व्यापार की नीतियों के बारे में जानकारी के खुलासे की मांग की गई है।

जम्मू-कश्मीर की महिला एडवोकेट सुप्रिया पंडित ने यह याचिका दायर की है, जिसमें अडानी समूह, केंद्र सरकार, गुजरात सरकार व महाराष्ट्र सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में उच्चतम न्यायालय  से मांग की गई है कि चीनी कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द करने का आदेश जारी किया जाए। हाल में ही भारत-चीन सीमा पर 20 सैनिकों के बलिदान के मद्देनजर केंद्र सरकार ने चीन के 59 मोबाइल ऐप पर भारत सरकार ने रोक लगा दी है।

अडानी समूह ने एक भारतीय बंदरगाह की निर्माण इकाई में 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने के लिए चीन की दिग्गज कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें गुजरात के मुंद्रा विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसमें प्रतिवादी अडानी समूह, केंद्र सरकार, गुजरात सरकार और महाराष्ट्र सरकार को बनाया गया है। याचिका में उच्चतम न्यायालय से मांग की गई है कि वह चीन के साथ हुए इस बिजनेस डील को रद करने का आदेश जारी करे।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार कुछ खास बिजनेस समूह और कुछ राज्य सरकार को चीन की कंपनियों के साथ बिजनेस डील करने की मंजूरी दे रही है। याचिका में कहा गया है कि जो कुछ राज्य सरकारों को चीन की कंपनियों के साथ बिजनेस करने की मंजूरी देने से देश में गलत संदेश जाएगा और देश की जनता की भावनाओं के साथ मजाक होगा।

गौतम अडानी की कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड ने दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट बनाने की बोली जीत ली है। इसके तहत उनकी कंपनी 8000 मेगावॉट का फोटो वोल्टैक पावर प्लांट बनाएगी। साथ ही 2000 मेगवॉट का डोमेस्टिक सोलर पैनल भी उनकी ही कंपनी तैयार करेगी। अडानी ग्रीन एनर्जी ने ये टेंडर 6 अरब डॉलर यानी करीब 45,300 करोड़ रुपए की बोली लगाकर हासिल किया है। दरअसल अडानी सोलर पावर के क्षेत्र के वैश्विक सुपर पावर बनना चाहते हैं लेकिन भारत चीन तनाव के बीच इनका यह प्रोजेक्ट फंसता नजर आ रहा है क्योंकि चीन से ही 95 फीसद सोलर पैनल का निर्यात भारत सहित पूरे विश्व में होता है ।

गौरतलब है कि भारत के अडानी समूह ने 2017 में चीन की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ईस्ट होप समूह के साथ एक समझौता किया था, जो गुजरात में सौर ऊर्जा उत्पादन उपकरण के लिए एक विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिए $ 300 मिलियन से अधिक का निवेश करेगी। मुंद्रा एसईजेड में उत्पाद लागत को रीसायकल करने और उसे कम करने के लिए श्रृंखला बनाई गई है।

भारत और चीन की दो प्रमुख कंपनियों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसमें मुंद्रा एसईजेड, गुजरात में सौर ऊर्जा उत्पादन उपकरण, रसायन, एल्यूमिनियम और पशु चारा बनाने के लिए विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने और पूर्वी होप समूह के इंजीनियरिंग और औद्योगिक एकीकरण को लागू करने का प्रस्ताव है। ईस्ट होप ग्रुप, एक 70 बिलियन युआन कंपनी, चीन के सबसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों में से एक है। इसका शंघाई में मुख्यालय है और यह दुनिया के शीर्ष 10 एल्यूमिनियम उत्पादक कंपनियों में से है, जिसके 150 सहायक हैं।

59 चीनी ऐप्स पर बैन लगाने के बाद भारत सरकार ने चीन के खिलाफ एक और बड़ा फैसला लिया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (ने एक बयान में कहा कि भारत चीनी कंपनियों को राजमार्ग परियोजनाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं देगा। ऐसे में कोई भी चीन की कंपनी हाईवे प्रोजेक्ट के लिए आवेदन नहीं कर सकती है। अगर चीन की कोई कम्पनी किसी भारतीय या फिर अन्य कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाकर भी बोली लगाती है तो भी उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी। भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि चीनी निवेशकों को भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों समेत अन्य क्षेत्रों में निवेश से रोका जा सके।

इसके बाद गुरुवार को ही रेलवे ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि चीन को दिया 471 करोड़ रुपए का एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया है। ये कॉन्ट्रैक्ट जून 2016 में बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन ग्रुप को.लिमि. को दिया गया था। इसके तहत 417 किलोमीटर लंबे कानपुर-दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) सेक्शन में सिग्नलिंग और टेलिकम्यूनिकेशन का काम किया जाना था। भारतीय रेलवे के डेडिकेटेड फ्रेट कोरीडोर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने यह कहते हुए इस कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया है कि चीनी संस्था ने बीते चार साल में अब तक सिर्फ़ 20 प्रतिशत ही काम पूरा किया है और उसके काम के तरीक़े में बहुत सारी ख़ामियां हैं।

हालांकि मेट्रो कोच और पुर्ज़े: इनवेस्ट इंडिया की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक़ रेल ट्रांजिट इक्विपमेंट सप्लाई करने वाली चीनी कंपनी सीआरआरसी को भारत में मेट्रो कोच और पुर्ज़े सप्लाई करने के सात से ज़्यादा ऑर्डर मिले हुए हैं। कोलकाता, नोएडा और नागपुर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए कंपनी को 112, 76, 69 मेट्रो कोच सप्लाई करने का ऑर्डर मिला था। 

इसी कंपनी के साथ मई 2019 में रेलवे ट्रैक के काम में इस्तेमाल होने वाली मशीन के 129 उपकरण खरीदने को लेकर 487,300 अमरीकी डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट, 29 प्वाइंट्स क्रॉसिंग एंड टैम्पिंग मशीन खरीदने के लिए करीब पांच करोड़ डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट, ट्रेक के लिए 19 मल्टी पर्पज टैम्पर खरीदने का एक अरब डॉलर से ज़्यादा का कॉन्ट्रैक्ट हुआ था। अप्रैल 2019 में रेलवे ट्रेक के लिए इस्तेमाल होने वाली प्वाइंट्स क्रॉसिंग एंड टैम्पिंग मशीन की खरीद दारी का कॉन्ट्रैक्ट चीन की जेमैक इंजीनियरिंग मशीनरी कंपनी को दिया था।

ये कॉन्ट्रैक्ट एक करोड़ डॉलर से ज़्यादा का था। रेलवे ट्रैक की मरम्मत और ट्रैक की गिट्टी को सेट करने का काम करने वाली ब्लास्ट रेगुलेटिंग मशीन का कॉन्ट्रैक्ट हेवी ड्यूटी मशीनरी कंपनी हुबेई को दिया हुआ है, जो करीब छह लाख डॉलर की कीमत का है। इसके अलावा यात्री ट्रेनों के टायर भी चीन की कंपनियों से खरीदे जाते हैं। जैसे 2017 में पैसेंजर ट्रेन के करीब साढ़े 27 हज़ार टायर खरीदने के लिए चीन की ताइयुआन हैवी इंडस्ट्री रेलवे ट्रांजिट इक्विपमेंट को. लिमि. के साथ करीब 96 लाख डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट हुआ था।

भारतीय टेलिकॉम सेक्टर की बात करें तो ख्वावे, ज़ेडटीई और ज़ेडटीटी जैसी चीनी कंपनियां भारतीय टेलिकॉम इंडस्ट्री के लिए बड़े पैमाने पर उपकरण सप्लाई करती हैं।ख़बर है कि भारत ज़ेडटीई जैसी चीनी कंपनियों से टेलिकॉम सप्लाई लेना बंद कर सकता है। भारतीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बर चलाई गई कि दूरसंचार विभाग सरकारी टेलिकॉम बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए चीनी कंपनियों से टेलिकॉम सप्लाई पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा सकता है। बीएसएलएल बोर्ड ने 49,300 2जी और 3जी साइट्स को 4जी तकनीक में बदलने के लिए चीनी ज़ेडटीई और फिनिश नोकिया को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन दूरसंचार विभाग ने इस पर मुहर नहीं लगाई।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...

Related Articles

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...