दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को बताया पाखंडी

‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ भी लगता है मोदी सरकार का जुमला है, वरना दिल्ली हाई कोर्ट को यह नहीं कहना पड़ता कि मोदी सरकार जो कहती है और जो करती है उसमें भारी विषमता है तो फिर मेक इन इंडिया का ढिंढोरा क्यों पीटती है?

दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर तीखा कटाक्ष करते हुए मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के नारों को उसका ढोंग करार दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार स्थानीय उद्यमियों को बढ़ावा देने को लेकर पाखंडी साबित हुई है। हाई कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी विभिन्न क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सर्विस उपलब्ध कराने के लिए निकले टेंडरों में कंपनियों की योग्यता के पैमाने में बदलाव को लेकर की थी।

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ सेंटर फॉर एविएशन पॉलिसी, सेफ्टी एंड रिसर्च की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने केंद्र और एएआई को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है और साथ ही निर्देश दिया कि टेंडरों के आवंटन की वैधता याचिका के निस्तारण पर आने वाले फैसले पर निर्भर होगी।

पीठ ने इस मुद्दे पर राजनीतिक नेतृत्व पर सख्त रुख दिखाया और कहा, यह बेहद दुख कि बात है कि एकतरफ सरकार ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर’ बनने की बात कर रही है तथा दूसरी तरफ ऐसे टेंडर निकालती है, जो छोटी कंपनियों को क्षेत्रीय हवाईअड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सर्विस के लिए हिस्सेदारी करने से रोकते हैं।

पीठ ने कहा, असल में यह दिखाता है कि यदि आप वास्तव इन लोगों (छोटी कंपनियों) को हटाना चाहते हैं तो ऐसा ही कहिए। अपने भाषणों में आप बड़ी बड़ी बातें करते हैं। आपका राजनीतिक नेतृत्व मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत की बात करता है, वे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने की बात कहते हैं, लेकिन आपकी कार्रवाई आपके शब्दों से मेल नहीं खाती। आप पूरी तरह पाखंडी हैं।

पीठ ने एडिशन सॉलिसिटर जनरल संजय जैन से अपने राजनीतिक नेतृत्व से यह बोलने के लिए कहा कि यदि आप इस तरह से चलना चाहते हैं तो मेक इन इंडिया पर भाषण क्यों देते हैं। संजय जैन केंद्र सरकार और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) की तरफ से उपस्थित हुए थे। पीठ ने उनसे सवाल किया, क्या वे (राजनीतिक नेतृत्व) को इसके बारे में पता भी है। पीठ ने कहा, हम कहते हैं कि इस देश या उस देश से आयात बंद करो और दूसरी तरफ हम हमारे अपने उद्यमियों को भी विफल कर रहे हैं।

टेंडर में भाग लेने के लिए 35 करोड़ रुपये से ज्यादा की उपलब्धता और शेड्यूल्ड एयरलाइंस के साथ काम करने की योग्यता का पैमाना बनाया गया है। इसका हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा, आप बड़ी जेब और शायद विदेशी टाइप वाले बड़े खिलाड़ी (कंपनियां) को ही अंदर आने देना चाहते हैं।

क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर जहां आने वाली फ्लाइटों की संख्या कुछ ही होती हैं, वहां काम कर रहे छोटे खिलाड़ियों के चार्टर्ड एयरलाइंस को संभालने के अनुभव की आपने अनदेखी कर दी है। हाई कोर्ट ने कहा, यदि छोटे खिलाड़ियों को विकसित नहीं होने दिया जाएगा, तब कुछ ही स्थापित बड़े खिलाड़ी बचेंगे, जो अपने मार्केट प्रभुत्व के कारण सरकार पर अपनी शर्तें थोपना शुरू कर देंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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