शकूर बस्ती।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जद में आए लोगों ने अपनी झुग्गियों को बचाने के लिए कमर कसी, जारी किया पर्चा

(सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा के फैसले की जद में आने वाली झुग्गियों के लोगों में खलबली मच गयी है। कोर्ट ने आदेश लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। लिहाजा इनके बाशिंदों ने भी अपने घरों को बचाने के लिए कमर कस ली है। और इसके लिए उन लोगों ने मुहिम शुरू कर दी है। इसके तहत रणनीति बनाने के लिए बैठकें हो रही हैं। पर्चे जारी करने से लेकर सड़क पर उतरने की योजनाएं बन रही हैं। और उसमें कैसे दूसरे दलों, संगठनों और लोगों को शामिल कराया जाए इस पर विचार-विमर्श चल रहा है। इस मामले में शकूरबस्ती में स्थित झुग्गी के लोग सबसे आगे आए हैं। यहां के लोगों ने एक पर्चा जारी किया है। बस्ती सुरक्षा मंच की सचिव ज्योति पासवान की ओर से जारी इस पर्चे को नीचे दिया जा रहा है-संपादक)

पहले हमें रहने को नया घर दो,

फिर हम अपना पुराना घर छोड़ेंगे। 

हमारी तरह ही झुग्गियों में रहने वाले मेरे भाई-बहनों और बुजुर्ग माई-बाप शायद अभी तक आप सभी को पता भी न हो कि हम सबको अपने-अपने घरों/ झुग्गियों से 3 महीने के अंदर उजाड़ने का आदेश जारी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने मिलकर अपने आदेश में कहा है कि दिल्ली की उन 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को उजाड़ दिया जाए, जो रेल पटरियों के आस-पास हैं। इन जजों की अगुवाई जस्टिस अरुण मिश्रा कर रहे थे।

यह आदेश 31 अगस्त को उस सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है, जिसे हम सब न्याय की अंतिम गुहार लगाने की जगह समझते थे और उम्मीद करते थे कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट तो हमारे साथ न्याय करेगा।

लेकिन इस बार तो हमें उजाड़ने का अन्याय भरा यह फरमान उस चौखट से ही आया है, जहां हम न्याय की अंतिम आस में माथा टेकते थे।

न्याय की सबसे बड़ी अदालत कहे जाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में न्याय के अन्य सारे दरवाज़े भी अपनी ओर से बंद कर दिए, उसने कहा है कि कोई राजनीतिक दल हमें उजाड़ने से बचाने नहीं आएगा और न ही कोई दूसरी अदालत उजाड़ने के खिलाफ स्टे आर्डर दे सकती है।

अपने ही पुराने आदेशों, संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के मौलिक अधिकार और जिंदा रहने के प्राकृतिक अधिकार को रौंदते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि यदि हमें उजाड़ दिया जाएगा, तो हम अपने बाल-बच्चों, भाई-बहनों और बूढ़े-बाप के साथ कहां जाएंगे। अदालत ने रहने की नई जगह का इंतजाम किए बिना (पुनर्वास किए बिना) हमें 3 महीने के अंदर पूरी तरह उजाड़ देने का आदेश दे दिया। ऐसा करके अदालत ने खुद ही अपने पुराने आदेशों का भी उल्लंघन किया है। 

हमें यह भी समझ में नहीं आर रहा है कि कोरोना के इस महामारी के काल में हमें हटाने की इतनी जल्दी न्यायाधीशों को क्यों पड़ी थी? 

यह सब कुछ स्वच्छता, पर्यावरण, अतिक्रमण हटाने और विकास के नाम पर किया गया। उनकी नजर में हम लोग अस्वच्छता और प्रदूषण फैलाने वाले अतिक्रमणकारी लोग हैं।

हम सभी को इस बात का अहसास है कि यदि हमें बिना नया आवास उपलब्ध कराए हटा दिया गया, तो हम दर-बदर की ठोकर खाने को विवश हो जाएंगे, हम छत विहीन जाएंगे, हमारे पास दिन भर खट कर आने के बाद सिर टिकाने के लिए कोई जगह नहीं होगी। हमारे बच्चों के पास बरसात-धूप और ठंड से बचने के लिए कोई ठिकाना नहीं होगा। हम यहां-वहां मारे-मारे फिरेंगे। फुटपाथों और पुलों के नीचे या खुले आसमान तले जीने को विवश होंगे।

हमें किसी तरह से भी अपनी झुग्गियों को बचाना होगा, हमें निर्णय लेना होगा कि जब तक हमें रहने का नया आवास नहीं मिल जाता है, तब तक हम नहीं हटेंगे, वहीं रहेंगे।

आप सब के मन में यह सवाल ज़रूर पैदा हो रहा होगा कि आखिर अपनी झुग्गियों/ घरों को बचाने का हमारे पास रास्ता क्या है, क्या कोई रास्ता है भी या नहीं?

रास्ता है, हम अपने घरों/ झुग्गियों को तब तक बचा सकते हैं, जब तक इसके बदले में हमें नया घर न मिल जाए। हम यह कर सकते हैं, हम ज़रूर कर सकते हैं।

बस अपने सोचने के तरीके को थोड़ा बदलना होगा, कुछ संकल्प लेने होंगे और संघर्ष के लिए कमर कसनी होगी। इससे न केवल हम अपनी झुग्गियां बचा लेंगे, बल्कि हमें नया आवास भी मिल जाएगा, जब नया आवास मिल जाएगा, हम झुग्गियां छोड़ देंगे, लेकिन सबसे पहले हमारी मांग होगी कि जहां हमारी झुग्गी है, वहीं हमें आवास मिले या उसके आप-पास ही।

साथियों,

            हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम में से कुछ लोग यह मानते हैं कि जहां हम रहते हैं, जहां हमारी झुग्गियां हैं, घर हैं, उस पर हमारा हक नहीं है, वह सरकार की जमीन है, वह रेलवे की जमीन है। हमें सोचने का यह तरीका बदलना होगा, हमें यह समझना होगा कि यह देश उतना  ही हमारा है, जितना किसी और का। सरकार की कोई जमीन नहीं होती है, सारी जमीन इस देश की जनता की है। संविधान के अनुसार जनता ही असली सरकार है। हमारे वोटों से और हमारे नाम पर बनी ये सरकारें जब चाहती हैं ये जमीनें बड़े पूंजीपतियों-कारोबारियों को सौंप देती हैं, और आज भी सौंप रही हैं, तो यह जमीन हमें क्यों नहीं मिल सकती? इस पर रहने का हक हमें क्यों नहीं  प्राप्त हो सकता?

बहुत सारे जानकार-पत्रकार लोग कह रहे हैं कि हमारी झुग्गियां इसलिए खाली कराई जा रही हैं, ताकि खाली जमीन को अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों को सौंपा जा सके, जो लोग हमारे प्रधान मंत्री जी के दोस्त हैं।

साथियों इस देश पर किसी पूंजीपति-कारोबारी से ज्यादा हक हमारा है, हमने और हमारे पुरखों ने रात-दिन खटकर कर इस देश को बनाया है, सब कुछ हम मेहनतकशों का खड़ा किया हुआ है।

हमें यह समझना होगा कि इस देश पर सिर्फ बड़ी हवेलियों में रहने वाले लोगों का ही हक नहीं है, उनसे ज्यादा हमारा हक है, कम से कम बराबर का हक तो है, ही।

लेकिन कोई भी हक लड़े बिना नहीं मिलता, लड़ने लिए एकजुट होना पड़ता है, संगठित होना पड़ता है, लड़ने की योजना बनानी पड़ती है।

यदि हम एकजुट नहीं होंगे, यदि हम नहीं लड़ेंगे, तो कोई दूसरा नहीं हमारे लिए लड़ने आएगा, लेकिन यदि हम अपनी झुग्गियों को बचाने के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए तैयार हो गए, तो वोट की लालच में ही सही कुछ पार्टियां भी हमारे साथ आएंगी।  

हमें एकजुट होकर अच्छे दिनों का वादा करने वाले, ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करने वाले और सबके लिए आवास का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछना होगा कि  हमारे सबसे बुरे दिन में आप हमारे साथ हैं या नहीं, क्या हुआ आपके वादों का?

जहां झुग्गी वहीं मकान का वादा करने वाली आम आदमी पार्टी और केजरीवाल साहब से हमें पूछना होगा कि आप हमें उजाड़ने से बचाएंगे या नहीं, आप अपने वादे पर कायम हैं या नहीं, आप हमारे संघर्ष में हमारा साथ देंगे या नहीं? आप हमें नया आवास उपलब्ध कराएंगे या नहीं?

केजरीवाल राजीव आवास योजना के नाम पर बने और खाली पड़े 50 हजार आवासों को हमें सौंप सकते हैं, ऐसे ही अन्य सरकारी आवास भी खाली पड़े हैं, जो हमें मिलना चाहिए।

केवल मोदी और केजरीवाल ही नहीं, हमें राहुल गांधी से पूछना होगा कि आप हमारे साथ हैं या नहीं आप हमारे साथ लड़ने आयेंगे या नहीं या आप चुप रहेंगे? सिर्फ ट्वीट करेंगे, हमें बार-बार आम जन की बात करने वाली प्रियंका जी से भी सवाल करना होगा।

हमें सामाजिक न्याय के नाम पर बनी पार्टियों के नेताओं मायावती जी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव आदि से यह पूछना होगा कि आपके सामाजिक न्याय के संघर्ष के एजेंड़े में हम आते हैं कि नहीं, या हम आपके सामाजिक न्याय के एजेंडे से बाहर हैं?

मेरे झुग्गी वासी साथियों, हमें भारी संख्या में एकजुट होकर अपने विधायकों-सांसदों के पास जाना होगा, उनसे न्याय की गुहार करनी होगी और अपने हक की मांग करनी होगी।

हमें जरूरत पड़ने पर पार्टियों के दफ्तरों पर धरना-प्रदर्शन करना होगा, दिल्ली की विधान सभा घेरनी होगी। हमें अपने देश की सर्वोच्च संस्था संसद से न्याय की गुहार लगानी होगी। सभी सांसदों से अपील करनी होगी कि वे सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को पलट दें।

जानकार लोग बताते हैं कि संसद सर्वोच्च न्यायालय से ऊपर है, वह सब कुछ कर सकती है। उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने का अधिकार है। वह झुग्गियों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी पलट सकती है, क्योंकि जनता का प्रतिनिधित्व संसद करती है,  सुप्रीम कोर्ट नहीं। इसके लिए जरूरत पड़ने पर हमें संसद को भी घेरना होगा।

यह सब कुछ हो सकता है, हम अपनी झुग्गियों/ घरों को बचा सकते हैं, हमेशा-हमेशा के लिए पक्का नया आवास पा सकते हैं।

बस हम सबको एकजुट होना होगा, संगठित होना होगा, संघर्ष के लिए तैयार होना होगा और यह संकल्प लेना होगा कि तब तक हम अपनी झुग्गियां नहीं छोड़ेंगे, जब तक हमारा पुनर्वास ( नया आवास और रोजगार का साधन) नहीं हो जाता।

आइए एकजुट होने और संघर्ष करने का संकल्प लें। अपने लिए और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए।

           हम अंतिम सांस तक लड़ेंगे, अपनी झुग्गी बचाकर रहेंगे।

                                                                                               ज्योति पासवान 

                                                                                          सचिव, बस्ती सुरक्षा मंच

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