आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट।

अमरावती ज़मीन घोटाला मामले में मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी! आखिर किस चीज की है पर्दादारी?

अमरावती ज़मीन घोटाला मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी द्वारा पारित आदेश में यह निर्देशित किया गया है कि इस संबंध में कोई भी समाचार इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर अमरावती ज़मीन घोटाला मामले में ऐसी कौन सी बात छिपी है जिसकी इतनी पर्दादारी है। चर्चा है कि व्यवस्था के बहुत ऊंचे पायदान के लोगों तक इस घोटाले की आंच पहुंच रही है। इसलिए रात में हाईकोर्ट ने यह आदेश पारित किया है।  

अभी छह महीने में चाहे तबलीगी जमात के कथित कोरोना फ़ैलाने के आरोप में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विषवमन हो या सुशांत सिंह की मौत के मामले में बिना आरोप सिद्ध हुए उसकी लिव इन पार्टनर रिया चक्रवर्ती को मीडिया कटघरे में खड़े करने का मामला हो या फिर सुदर्शन न्यूज़ टीवी चैनेल पर विवादास्पद यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम का प्रसारण हो या फिर अर्णब गोस्वामी और अमीष देवगन की गैर जिम्मेदाराना एंकरिंग हो न्यायपालिका ने या तो चुप्पी साध रखी है या फिर तारीख पर तारीख दे रही है। और अदालत प्रेस की स्वतंत्रता की दुहाई दे रही है और केंद्र सरकार भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चैम्पियन बनी हुई है।  

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार देर रात एक अप्रत्याशित आदेश जारी करते हुए कहा कि अमरावती में जमीन खरीद के संबंध में भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) के गुंटूर पुलिस स्टेशन द्वारा राज्य के पूर्व कानून अधिकारी और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी सार्वजनिक न की जाए। चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी ने आदेश में कहा कि अंतरिम राहत के माध्यम से यह निर्देशित किया जाता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ इस रिट याचिका को दायर करने के बाद (एफआईआर) कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। किसी भी तरह की पूछताछ और जांच पर भी रोक रहेगी।

आदेश में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा राज्य के गृह विभाग के सचिव और डीजीपी को यह सुनिश्चित करने के लिए सूचना दी जाए कि अदालत के अगले आदेश तक इस संबंध में प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई समाचार प्रकाशित न हो। इस संबंध में सोशल मीडिया पोस्ट भी प्रकाशित नहीं होगा। इस बारे में संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म/संगठनों को सूचना देने के लिए आंध्र प्रदेश के डीजीपी और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय आवश्यक कदम उठाएंगे।

रिपोर्ट के अनुसार, बीते मंगलवार को एफआईआर दर्ज होने के बाद पूर्व कानून अधिकारी का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और श्याम दीवान ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार उन्हें निशाना बना रही है और मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाने सहित हाईकोर्ट से राहत की मांग की। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि आंध्र प्रदेश भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो उनके खिलाफ गलत इरादे से काम कर रही है और पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के साथ मीडिया ट्रायल में बदला जा रहा है।

आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश होते हुए वकील सी. मोहन रेड्डी ने कहा था कि प्रतिबंधात्मक आदेश की अपील का कोई मतलब नहीं था क्योंकि खबर पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक में चल चुकी थी।

इस बीच, आंध्र प्रदेश सरकार ने राजधानी अमरावती में हुए कथित जमीन घोटाले और आंध्र प्रदेश राज्य फाइबर नेट लिमिटेड में कदाचार के आरोप की जांच सीबीआई से कराने के लिए केंद्र को अनुरोध किया है। राज्य सरकार ने कहा कि उसने इन मुद्दों पर अलग-अलग मार्च और जुलाई महीने में केंद्र को पत्र लिखा है। सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों ने नये सिरे से अनुरोध तब किया है जब संसद का मानसून सत्र सोमवार को शुरू हुआ।

उल्लेखनीय है कि राज्य के वित्तमंत्री बुग्गना राजेंद्र नाथ के नेतृत्व में कैबिनेट की उप समिति पहले ही तेलुगु देशम पार्टी के शासन में अमरावती में हुई जमीन की खरीद-फरोख्त एवं लेनदेन की जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है। कैबिनेट उपसमिति की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने कथित घोटाले की गहराई से जांच करने के लिए विशेष जांच दल का गठन किया है। इसके साथ ही मामले की जांच सीबीआई से कराने का भी फैसला किया है और इसके लिए केंद्र को पत्र लिखा है। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के सूत्रों ने बताया कि केंद्र को अभी इस पर जवाब देना है। हालांकि, वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों ने मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी के संकेत पर केंद्र को विस्तृत ज्ञापन सौंपा है।

जांच में पाया गया कि सौदे के समय ज्यादातर खरीददार ड्राइवर, रसोइया, घरेलू कामगार, प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड इत्यादि के रुप में काम कर रहे थे। जांचकर्ताओं ने संदेह जताया है कि वास्तव में जिन्होंने लाभ प्राप्त किया, वे प्रभावशाली लोग हैं ।जाँच में सामने आया कि 40 साल के एक व्यक्ति के खातों में 8 लाख रुपये थे और उसने 1 एकड़ जमीन खरीदी। सेल डीड में इस जमीन की कीमत 78.65 लाख रुपये दिखायी गई है। 35 साल के एक व्यक्ति के पास 6 लाख रुपये थे और उसने 48.4 लाख रुपये कीमत वाली 1 एकड़ जमीन खरीदी। 37 साल के एक व्यक्ति के पास 6.8 लाख रुपये थे और उसने 21.74 लाख रुपये कीमत वाली आधा एकड़ जमीन खरीदी।

ये महज कुछ उदाहरण हैं। आंध्र प्रदेश सीआईडी 5 जून, 2014 और 26 दिसंबर, 2014 के बीच प्रस्तावित अमरावती राजधानी क्षेत्र में और उसके आसपास भूमि सौदों में कथित तौर पर “बेनामी” संपत्ति खरीद की जांच कर रही है। 797 बेनामी लोग सीआईडी की लिस्ट में हैं। जांच में पता चला है कि 797 व्यक्तियों में से 594 ने 5 लाख रुपये से लेकर 60 लाख रुपये तक की कीमत की जमीन खरीदी। जांच के दौरान सीआईडी ने पाया कि सभी ‘बेनामी’ सफेद राशन कार्ड धारक हैं। इसका मतलब है कि वे निम्न आय वर्ग वाले परिवार से हैं।

गौरतलब है कि अभी कल मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुदर्शन मामले की सुनवाई में कहा था कि जर्नलिस्ट के विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुप्रीम है। लोकतंत्र में अगर प्रेस को कंट्रोल किया गया तो ये विनाशकारी होगा। एक समानांतर मीडिया भी है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से अलग है और लाखों लोग नेट पर कंटेंट देखते हैं। फिर मीडिया कवरेज पर मिडनाइट प्रतिबन्ध का आदेश क्यों ?

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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