दिल्ली: रेल पटरियों के पास वाली 48000 झुग्गियां अभी नहीं हटेंगी, पुनर्वास पर अभी भी विचार

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दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे 48,000 झुग्गियों में रहने वाले दो लाख से अधिक लोगों के लिए रेलवे, शहरी विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार अभी तक पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं कर सकी हैं और अभी विकल्पों पर विचार विमर्श चल रहा है। इसके मद्देनज़र राजधानी दिल्ली में रेलवे किनारे स्थित अवैध झुग्गियां अभी फिलहाल नहीं हटेंगी। केन्द्र सरकार ने रेलवे किनारे की अवैध झुग्गियों को हटाने के मामले में मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि सरकार मामले पर विचार कर रही है और इस बीच कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी है।

सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष थोड़ा समय मांगते हुए कहा कि सरकार इस पर विचार कर रही है और तब तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

उच्चतम न्यायालय ने गत 31 अगस्त को रेलवे लाइन के किनारे बसी करीब 48000 झुग्गियों को तीन महीने मे हटाने का आदेश दिया था, जिसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन और कई अन्य लोगों ने उच्चतम न्यायालय में अर्जियां दाखिल कर झुग्गियां हटाए जाने से लाखों गरीब लोगों के सड़क पर आने का मुद्दा उठाते हुए। वहां के लोगों को पुनर्वासित किये जाने तक कोई कार्रवाई न करने की मांग की थी। अर्जियों में कोरोना महामारी का भी मुद्दा उठाया गया था।

मामले पर गत 14 सितंबर को हुई सुनवाई में केन्द्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि इस मामले में रेलवे, शहरी विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार के बीच विचार-विमर्श चल रहा है और किसी भी निर्णय पर पहुंचने तक कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। यानी फिलहाल झुग्गियां नहीं हटाई जाएंगी।

उच्चतम न्यायालय ने गत 31 अगस्त के आदेश में रेलवे के सुरक्षा जोन में रेलवे पटरियों के किनारे स्थित करीब 48000 अवैध झुग्गियों पर सख्त रुख अपनाते हुए सभी को तीन महीने में हटाने का आदेश दिया था साथ ही आदेश में साफ किया था कि कोई भी अदालत इन मामलों मे स्थगन नहीं देगी और न ही किसी तरह की राजनैतिक दखलंदाजी की जाएगी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण के मामले में एमसी मेहता केस मे चल रही सुनवाई के दौरान उठा था।

गौरतलब है कि 14 सितंबर को एसजी मेहता ने अदालत को भरोसा दिलाया था कि आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के परामर्श से रेलवे जब तक 4 सप्ताह के भीतर समाधान नहीं ढूंढता तब तक रेल पटरियों के पास झुग्गियों को हटाया नहीं जाएगा। यह आश्वासन कांग्रेस नेता अजय माकन द्वारा दायर एक याचिका में किया गया, जिन्होंने 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें नई दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेलवे पटरियों के आसपास की लगभग 48,000 झुग्गी बस्तियों को तीन महीने में हटाने का निर्देश दिया।

दरअसल 31 अगस्त, 2020 को दिए गए अपने आदेश में तत्कालीन जस्टिस अरुण मिश्रा ( अब सेवानिवृत) की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा था कि सुरक्षा क्षेत्रों में जो अतिक्रमण है, उन्हें तीन महीने की अवधि के भीतर हटा दिया जाना चाहिए और कोई हस्तक्षेप, राजनीतिक या अन्यथा, नहीं होना चाहिए और कोई भी अदालत विचाराधीन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के संबंध में कोई स्टे नहीं देगी।

इस निर्देश को चुनौती देते हुए कि कोई भी न्यायालय आदेश को लागू करने और उस पर अमल करने पर रोक नहीं लगा सकती है, याचिकाकर्ता माकन का तर्क है कि इससे न्याय के अधिकार में बाधा उत्पन्न होती है। माकन ने कहा है कि अधिकारियों ने ऐसा करने के लिए, स्थापित कानून के विपरीत काम किया है, जो निष्कासन या गिराए जाने से पहले संबंधित झुग्गी निवासियों के पुनर्वास की आवश्यकता बताता है। इस प्रकाश में, यह प्रार्थना की गई है कि प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देशित किया जाए कि वे झुग्गियों को खाली करने और ध्वस्त करने से पहले स्थानांतरित करें और उनका पुनर्वास करे। इसलिए, याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने के लिए अधिकारियों को दिल्ली स्लम एंड जेजे रिहैबिलिटेशन एंड रीलोकेशन पॉलिसी, 2015 के साथ-साथ प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए निर्देश मांगे हैं।

माकन ने यह बताया है कि आदेश एक मामले (एमसी मेहता) में पारित किया गया था, जहां प्रभावित झुग्गियां न तो मामले की पक्षकार थीं और न ही किसी भी क्षमता में उनका प्रतिनिधित्व किया गया था। रेल मंत्रालय के स्वयं के स्वीकारनामे द्वारा कि इस आदेश के प्रभावी होने पर 2.4 लाख के करीब लोगों को बेघर किया जाएगा, इस पर जोर देते हुए याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया है कि उन्हें सुने बिना ऐसा करना “प्राकृतिक न्याय की सबसे भयानक त्रासदी और गैर-अवलोकन में से एक होगा।

यह कहते हुए कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार को सुना, जो बस्तियों को ध्वस्त करना चाहती थी, और “प्रभावित/कमजोर आबादी को सुनवाई का अवसर देने से इनकार करते हुए पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। याचिका में आग्रह किया गया है कि “ऑडी अल्ट्रेम पार्टम (दूसरे पक्ष को भी सुनो) के शासन से दूरी नहीं बनाई जा सकती है खासकर जब झुग्गी निवासी 30-40 वर्षों से झोंपड़ियों में रह रहे हैं।

माकन ने 2010 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देकर हालिया आदेश को अपनी चुनौती की पुष्टि की, जिसमें अजय माकन खुद याचिकाकर्ता थे, जिसमें झुग्गियों के अस्तित्व के संबंध में यही मुद्दा तय किया गया था। इस फैसले में कहा गया है कि यहां तक कि रेलवे ट्रैक के साथ-साथ बसी झुग्गियों को भी निवासियों / झुग्गीवासियों के पुनर्वास / पुनर्स्थापन के परिणामस्वरूप ही हटाया जा सकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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