जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट।

जम्मू और कश्मीर: हाईकोर्ट जज ने सत्र न्यायाधीश को जमानत याचिका ख़ारिज करने को कहा

क्या आप विश्वास करेंगे कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अधीनस्थ न्यायालय के जिला एवं सत्र न्यायाधीशों /न्यायिक अधिकारियों पर अनिधिकृत दबाव डालकर निर्णयों को प्रभावित करते हैं? नहीं न ! लेकिन जम्मू कश्मीर का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें हाईकोर्ट के एक सिटिंग जज ने श्रीनगर के एक सत्र न्यायाधीश को अपने सचिव से फोन कराकर एक आरोपी के जमानत/अग्रिम जमानत प्रार्थना पत्र को ख़ारिज करने का निर्देश दिया और सत्र न्यायाधीश ने इसे रिकार्ड में दर्ज़ करके हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास भेज दिया। इसके बाद जम्मू कश्मीर के न्यायिक और विधिक क्षेत्रों में जबर्दस्त विवाद छिड़ गया है।

सत्र न्यायाधीश ने कहा है ‘मुझे न्यायाधीश जावेद इकबाल वानी के सचिव द्वारा फोन पर कहा गया कि जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने आपको यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया है कि कोई जमानत न दी जाय’। अदालत ने न्यायाधीश के सचिव की कॉल को रिकार्ड पर दर्ज किया कि उन्होंने ऐसा कहा है ।

श्रीनगर के एक सत्र न्यायाधीश ने सोमवार को शेख सलमान बनाम जकुट द्वारा एसएचओ थाना सदर श्रीनगर के मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई करने में असमर्थता व्यक्त की, जिसमें एक फोन कॉल का हवाला दिया गया था जिसमें कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निर्देश दिया है कि जमानत आवेदक को जमानत न दी जाए।

अपने आदेश में प्रधान सत्र न्यायाधीश अब्दुल रशीद मलिक ने रिकॉर्ड किया कि उन्हें जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के सचिव न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी के सचिव का सोमवार को सुबह 9.51 बजे एक मोबाइल कॉल आया, जब शेख सलमान की जमानत याचिका पर सुनवाई होने वाली थी।

न्यायाधीश मलिक के आदेश में रिकॉर्ड किया कि जस्टिस वानी के सचिव तारिक अहमद मोटा द्वारा किए गए कॉल में कहा गया कि “मुझे माननीय जस्टिस जावेद इकबाल वानी द्वारा निर्देशित किया गया है कि आपको यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाय कि शेख सलमान को जमानत न दी जाय। यदि उसकी यदि कोई अग्रिम जमानत याचिका लंबित हो तो भी तो दिशा निर्देश समान है।

इसका उल्लेख करते हुए, सत्र न्यायाधीश ने इस मामले को सुनने में असमर्थता जताई। उन्होंने निर्देश दिया कि जमानत की अर्जी उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार न्यायिक को सौंपी जाए, ताकि मामला उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जा सके क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता शामिल है ।अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील को उसी दिन रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल, हाईकोर्ट ऑफ जम्मू एंड कश्मीर, श्रीनगर के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।

मामले में जमानत याचिका अधिवक्ता आमिर जावेद के माध्यम से दायर की गई थी। मामले में आवेदक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 341 (गलत संयम की सजा) और 323 (चोट पहुंचाने की सजा) के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया था।इस मामले के उजागर होने के बाद अभी तक हाईकोर्ट के महानिबंधक का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह क रिपोर्ट।)

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