नहीं रहा इतिहासकारों का इतिहासकार

दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉक्टर द्विजेंद्र नारायण झा यानी डीएन झा हमारे बीच नहीं रहे मगर इतिहास की लिखी उनकी पुस्तकें हमेशा रहेंगी। वर्ष 1940 में बिहार के मध्य वर्ग के एक परिवार में पैदा हुए प्रो. डी एन झा का गुरुवार 4 फरवरी, 2021 को निधन हो गया। वे 81 बरस के थे।

दिवंगत प्रो. डीएन झा के परिजनों के हवाले से मिली सूचना के अनुसार उनकी अंत्येष्टि दिल्ली के निगमबोध घाट पर आज दोपहर बाद दो बजे की जाएगी।

प्रो. डीएन झा को इतिहासकारों का इतिहासकार माना गया। वे इतिहास के वास्तविक और वैज्ञानिक परिभाषकों की अग्रणी कतार में चट्टान की तरह अडिग थे। वे प्राचीन भारत के इतिहास लेखन को पोंगापंथी साम्राज्यवादी लेखन और पुनरुत्थानवादी मिथकीय सांप्रदायिक विद्वेष के लेखन के भ्रम संजाल से मुक्ति दिलाने वाले साहसिक योद्धाओं में शामिल थे।

प्रो. डीएन झा इतिहास लेखन के माध्यम से निहित राजनीतिक स्वार्थां वालों और प्रतिगामी एवं पूर्वाग्रही तत्वों के लेखन से अंतिम सांस तक जूझते रहे। इतिहास का कोई भी सच्चा और संजीदा विद्यार्थी उनके योगदान का ऋणी रहेगा ।

भारतीय इतिहास कांग्रेस के शांति निकेतन अधिवेशन में उनका उद्घाटन भाषण ‘The Hindu Identity’ , उनकी पुस्तक ‘The Myth of Holy Cow’ , और ‘Ancient India ‘  तथा प्रोफेसर रामशरण शर्मा द्वारा लिखित टेक्स्ट बुक प्राचीन भारत पर पाबंदी के विरुद्ध लिखी गई ‘In Defence of Ancient India’ पुस्तक के लिए वे इतिहास के अध्येताओं और इतिहासकारों के बीच हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे।

एकेडेमिक एवं सोशल एक्टिविस्ट के रूप में यूनिवर्सिटी कैंपस, रिसर्च लाइब्रेरी में तथा पुरातात्विक स्थलों के बारे में उनका महती शोध कार्य, अध्येताओं और समाज के विभिन्न हल्कों में भी उनके योगदान को ऐतिहासिक माना जाएगा।

वे इतिहासकार ही नहीं थे बल्कि इतिहास रचयिता भी थे। वे स्वयं भी इतिहास निर्माताओं सा जीवन जीये।

अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में उनका संदर्भ उनकी इसी भूमिका का परिचय देती है। वे संविधान की प्रस्तावना के समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर होने वाले हमले के विरोध में उठी आवाज़ों के अदम्य साहसिक आवाज़ बनकर सामने खड़े रहे।

वे सैकड़ों शोधकर्ताओं और शोधार्थियों के शिक्षक, निदेशक, मित्र, नेता और फ़िलॉस्फ़र रहे जिन्होंने भारतीय इतिहास लेखन को समृद्धि प्रदान की। उनका इतिहास लेखन भारतीय राष्ट्र की बहुलवादी सांस्कृतिक विरासत, वर्तमान और भविष्य को एकता के सूत्र में पिरोने वाला था, इसलिए वह राष्ट्रीय एकता और अखंडता का सूत्र है।

वह कामरेड राजीव झा के चाचा थे। राजीव जी पिछले तीन दशक से नई दिल्ली में एके गोपालन भवन में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी ) के मुख्यालय में पार्टी के मुखपत्र “लोक लहर” के संपादकीय विभाग में कार्यरत हैं ।

डॉक्टर द्विजेंद्र नारायण झा मूलतः बिहार के पूर्ववर्ती दरभंगा ज़िले के निवासी थे जो अब विभक्त होकर नया जिला, मधुबनी बन गया है।

उन्होने एक सामंती ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के बावज़ूद अपने ज्ञानार्जन और विवेक बोध से ब्राह्मणवादी संस्कृति का तिरस्कार कर सार्वभौमिक भारतीय सर्वहारा संस्कृति का संवाहक होना स्वीकार किया। यहीं वे इतिहासकार के साथ इतिहास बनाने वाले की भूमिका में दाख़िल होते हैं।

वे फेसबुक पर भी सक्रिय थे और हमारे जैसे अनगिनत पत्रकारों और लेखकों का अयोध्या मामले तथा अन्य संदर्भों में भी इतिहास के तथ्यों के जरिए मार्गदर्शन करते रहे।

 (चंद्र प्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और यूएनआई में कई वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments