बैटल ऑफ बंगाल: ममता और शुभेंदु के मुकाबले ने करा दी 1967 की याद ताजा

पश्चिम बंगाल में चुनावी बिगुल बज चुका है। भाजपा ने हल्दिया से शुभेंदु अधिकारी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हल्दिया से चुनाव लड़ने की घोषणा काफी पहले हल्दिया की एक जनसभा में कर दी थी। बहरहाल इस मुकाबले ने 1967 की याद ताजा कर दी है।

उन दिनों प्रफुल्ल सेन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और कांग्रेस की कमान अतुल्य घोष जैसे भारी भरकम नेता के हाथों में थी। अजय मुखर्जी प्रफुल्ल सेन के मंत्रिमंडल में मंत्री हुआ करते थे। प्रफुल्ल सेन और अतुल्य घोष की जोड़ी से टकराव के बाद अजय मुखर्जी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और बांग्ला कांग्रेस के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक सफर भी बांग्ला कांग्रेस से ही शुरू हुआ था। बहरहाल टकराव का यह दौर चलता रहा और इसी दौरान 1967 का विधानसभा चुनाव आ गया। प्रफुल्ल सेन हुगली जिला के आराम बाग विधान सभा सीट से चुनाव लड़ते थे उन्हें आराम बाग का गांधी कहा जाता था। अजय मुखर्जी ने आराम बाग विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। पूरे पश्चिम बंगाल की नजर आराम बाग विधान सभा सीट पर होने वाले चुनाव पर टिक गई। ठीक इसी अंदाज में जिस तरह इन दिनों पूरे पश्चिम बंगाल की निगाहें हल्दिया विधानसभा सीट पर लगी है। 

गौरतलब है कि अभी तक ममता बनर्जी दक्षिण कलकत्ता की लोकसभा सीट और भवानीपुर विधानसभा केंद्र से चुनाव लड़ती रही हैं। बहरहाल विधानसभा चुनाव हुआ और प्रफुल्ल सेन करीब 300 वोटों से चुनाव हार गए। इस चुनाव में बांग्ला कांग्रेस को 34 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को 30 सीटें गंवानी पड़ी थीं। इसके बाद बनी सरकार में अजय मुखर्जी मुख्यमंत्री और ज्योति बसु उप मुख्यमंत्री बन गए। अब यह बात दीगर है कि यह जोड़ी बहुत दिनों तक नहीं चल पाई। लेकिन 1967 और 2021 के बीच एक फर्क है। अजय मुखर्जी ने प्रफुल्ल सेन को उनके गढ़ में जाकर चुनौती दी थी। इस बार ममता बनर्जी ने अधिकारी परिवार के गढ़ पूर्व और पश्चिम मिदनापुर में जाकर उन्हें चुनौती दी है। शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी कांथी से सांसद हैं और उनके भाई दिब्येंदु अधिकारी तमलुक से सांसद है। इसी कारण पूर्व और पश्चिम मिदनापुर को अधिकारी परिवार का गढ़ माना जाता है।

ममता बनर्जी का नंदीग्राम जाने का एक और  मायने भी है। वे सिर्फ नंदीग्राम से ही चुनाव नहीं लड़ रही हैं बल्कि पूर्व और पश्चिम मिदनापुर की 31 विधानसभा सीटों के चुनावों को भी प्रभावित करेंगी। भाजपा की योजना है कि अधिकारी परिवार के गढ़ की 25 से 26 सीटों पर अपना कब्जा जमा ले। भाजपा की इस रणनीति को नाकाम करने के लिए ही ममता बनर्जी ने भवानीपुर को अलविदा कहते हुए हल्दिया की तरफ रुख कर लिया है। बहरहाल 50 साल से भी अधिक पुराने इतिहास को खंगालते समय एक और दिलचस्प तथ्य उभरकर सामने आया। उन दिनों जनसंघ हुआ करता था और 1967 के विधानसभा चुनाव में उन्हें 1.33 फ़ीसदी वोट मिले थे। इसके बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में यह बढ़कर 10 फ़ीसदी हो गया था। यानी भाजपा को करीब 8 फ़ीसदी और वोट पाने में 49 साल लग गए। दूसरी तरफ 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट 10 फीसदी से बढ़कर 40 फ़ीसदी हो गए। विज्ञान में कहा जाता है कि जो वस्तु जितनी तेजी से ऊपर जाती है उससे अधिक तेजी से नीचे आती है। बहरहाल यह तो विज्ञान का फार्मूला है राजनीति का नहीं इसलिए आइए 2 मई तक इंतजार कर लें।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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