राजद्रोह कानून में सुधार के लिए सरकार ने गठित की समिति

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फ्रीडम हाउस और वी-डेमोक्रेसी (Freedom House and V Democracy) की हालिया रिपोर्ट्स में राजद्रोह कानून के कथित दुरुपयोग को लेकर उठ रहे सवालों के बीच मोदी सरकार ने आपराधिक कानून सुधारों के लिए एक समिति बनाई है और इसके लिए तमाम पक्षों से सुझाव मांगे गए हैं। यह जानकारी गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में दी है।

गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में कहा कि सरकार ने राजद्रोह सहित आपराधिक कानून सुधारों के लिए एक समिति बनाई है और तमाम पक्षों से इस बारे में सुझाव मांगे गए हैं। गृह राज्य मंत्री रेड्डी राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूरक सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि 2019 में राजद्रोह कानून (आईपीसी की धारा 124 ए) के तहत 96 गिरफ्तारियां की गई और दो व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया।

गृह राज्यमंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों के अलावा गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संगठनों से सुझाव मांगे गए हैं। सरकार सुझाव मिलने के बाद राजद्रोह कानून में संशोधन पर विचार करेगी। उन्होंने कहा कि यह कानून नया नहीं बल्कि पुराना है और इससे पहले कांग्रेस शासन काल में 1948, 1950, 1951 और 1955 में संशोधन किया गया था। यह सवाल किए जाने पर कि क्या सरकार राजद्रोह कानून में संशोधन पर विचार करेगी, उन्होंने कहा कि हम एक बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं। नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की अध्यक्षता में आपराधिक कानून सुधार के लिए एक नई कमिटी बनाई गई है।

राजद्रोह के मामलों में दोषसिद्धि की दर काफी कम होने को लेकर रेड्डी ने कहा कि ऐसे मामलों में केंद्र की कोई भूमिका नहीं होती और राज्य सरकारें मामले दर्ज कराती हैं। रेड्डी ने कहा कि इस बारे में केंद्र राज्यों को कोई निर्देश नहीं देता और भारत सरकार ने किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कोई गलत मामला नहीं दर्ज कराया है।

इस दौरान कई विपक्षी सदस्यों ने कहा कि 2019 में दो मामलों में ही दोषसिद्धि हुई। विपक्ष ने सवाल किया कि क्या सरकार फर्जी मुकदमे दर्ज करा रही है। रेड्डी ने कहा कि संसद से पारित होने के बाद संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ आंदोलन के दौरान कई टिप्पणियां की गईं लेकिन उन्हें पूर्ण आजादी दी गई। 100 से अधिक दिनों से चल रहे मौजूदा किसान आंदोलन के दौरान कई बयान दिए गए लेकिन सरकार ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

रेड्डी ने कहा कि जिन 96 मामलों का जिक्र किया गया है, उन सभी मामलों में अदालत का फैसला नहीं आ गया है। उन्होंने कहा कि कई मामले अलग-अलग चरणों में हैं। उन्होंने कहा कि कुछ मामले जांच के चरण में हैं तो कुछ मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया है, वहीं कुछ में सुनवाई चल रही है। 2019 में राजद्रोह कानून (आईपीसी की धारा 124 ए) के तहत 96 गिरफ्तारियां की गई और दो व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया।

गृह राज्यमंत्री ने कहा कि इस सरकार ने आंकड़ों में राजद्रोह के मामले शामिल करने की कोशिश की है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की सरकार में राजद्रोह कानून के आंकड़े छिपाए जाते थे। उन्होंने कहा कि सरकार लोकतंत्र और प्रेस की आजादी के लिए प्रतिबद्ध है और कोई भी व्यक्ति संविधान के तहत बोल सकता है और सरकार इसमें कोई रुकावट नहीं पैदा करती।

हाल में आईं दो इंटरनेशनल रिपोर्ट्स में भी भारत में राजद्रोह कानून का इस्तेमाल असहमति की आवाजों को दबाने के लिए करने का आरोप लगाया गया है। अमेरिकी संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ ने अपनी रिपोर्ट में भारत का दर्जा घटाते हुए उसे ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देशों की सूची में रखा है। इसी तरह स्वीडिश संस्था ‘वी-डेमोक्रेसी’ ने अपनी डेमोक्रेसी रिपोर्ट में भारत को ‘इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी’ बताया है।

गृहराज्यमंत्री ने बताया इस मामले में गैर सरकारी संगठन, मुख्यमंत्रियों, केद्र-शासित प्रदेश के उपराज्यपाल सहित कई संगठनों से सुझाव मांगे गये हैं। सरकार इन सुझावों के मिलने के बाद संशोधन पर विचार करेगी। यह कानून काफी पुराना है और समय- समय पर इसमें संशोधन हुआ है। इस कानून में 1948, 1950, 1951 और 1955 में संशोधन लाया गया है।

इससे पहले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने बताया था कि साल 2019 के दौरान देश भर में दर्ज राजद्रोह और कठोर यूएपीए (UAPA) मामलों में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसमें सिर्फ तीन फीसदी राजद्रोह मामलों में आरोपों को साबित किया जा सका है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2018 में दर्ज 70 और साल 2017 में दर्ज 51 मामलों से अधिक थी। इसी तरह यूएपीए के तहत साल 2019 में 1,226 मामले दर्ज किए गए। इससे पहले 2018 में यूएपीए के तहत 1,182 मामले और 2017 में 901 मामले दर्ज किए गए थे।

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