भारत दुनिया भर से आए अवैध प्रवासियों की राजधानी नहीं हो सकता: केन्द्र सरकार

जम्मू में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को हिरासत में लिए जाने और उन्हें म्यांमार भेजे जाने की तैयारी के समर्थन में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कहा है कि भारत दुनिया भर से आए अवैध प्रवासियों की राजधानी नहीं हो सकता। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष यह भी कहा कि यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि वो केंद्र सरकार को उसके विदेशी संबंधों के बारे में आदेश जारी करे।

बता दें कि रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने सुप्रीम कोर्ट में 11 मार्च को एक याचिका दायर की थी जिस पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। याची की ओर से याचिका को एडवोकेट चेरिल डिसूजा ने लिखा था और एडवोकेट प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51(सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि रोहिंग्या के मूल देश म्यांमार में उनके खिलाफ हुई हिंसा और भेदभाव के कारण बचकर भारत में आने के बाद उन्हें यहां से प्रत्यर्पित करने के ख़िलाफ़ यह याचिका दायर की गई है।

याचिका में शीर्ष अदालत से गुहार लगाई गई है कि वह यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) को इस मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करे और न केवल जम्मू में, बल्कि पूरे देश में शिविरों में रखने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की मांग की गई है। इसमें अदालत से शरणार्थी कार्ड मुहैया कराने के लिए भी सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जब हमें पता है कि म्यांमार में इनका नरसंहार हो सकता है तो ऐसी स्थिति में भारत कैसे इन रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकार और उनके जीने के अधिकार का सम्मान नहीं करेगा और उन्हें म्यांमार धकेल देगा?

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि रोहिंग्या समुदाय के बच्चों को मारा जाता है, उन्हें अपंग कर दिया जाता है और उनका यौन शोषण किया जाता है। उन्होंने कहा कि म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवीयता कानून का सम्मान करने में विफल रही है।

भूषण ने अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें कहा गया है कि म्यांमार ने रोहिंग्याओं के संरक्षित समूह के रूप में रहने के अधिकारों का सम्मान करने के लिए विशेष उद्देश्य से कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने जम्मू में रोहिंग्या समुदाय के लोगों को हिरासत में रखा हुआ है जिनके पास शरणार्थी कार्ड हैं और उन्हें जल्द ही निर्वासित किया जाएगा।

भूषण ने कहा, ‘‘मैं यह निर्देश जारी करने का अनुरोध कर रहा हूं कि इन रोहिंग्याओं को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हिरासत में नहीं रखा जाए और म्यांमा निर्वासित नहीं किया जाए।’’

केंद्र की तरफ़ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत ने शरणार्थी कंवेन्शन पर दस्तख़त नहीं किया है इसलिए प्रशांत भूषण की दलील का कोई क़ानूनी आधार नहीं है। मेहता ने कोर्ट से कहा कि सरकार म्यांमार के साथ संपर्क में है और जब वो इस बात की पुष्टि करेंगे कि कोई व्यक्ति उनका नागरिक है, तभी उस व्यक्ति को निर्वासित किया जाएगा।

मेहता ने कहा कि वे बिल्कुल भी शरणार्थी नहीं हैं और यह दूसरे दौर का वाद है क्योंकि इस अदालत ने याचिकाकर्ता, जो खुद एक रोहिंग्या है, द्वारा दाखिल एक आवेदन को पहले खारिज कर दिया था।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे पहले असम के लिए भी इसी तरह का आवेदन किया गया था। वे (याचिकाकर्ता) चाहते हैं कि किसी रोहिंग्या को निर्वासित नहीं किया जाए। हमने कहा था कि हम कानून का पालन करेंगे। वे अवैध प्रवासी हैं। हम हमेशा म्यांमार के साथ संपर्क में हैं और जब वे पुष्टि करेंगे कि कोई व्यक्ति उनका नागरिक है, तभी उसका निर्वासन हो सकता है।’’

जबकि  याची द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय से जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने और उन्हें निर्वासित करने पर सरकार के किसी भी आदेश को लागू करने से रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में शरणार्थियों की सुरक्षा जरूरतों का हस्तक्षेप करने और उन्हें शरणार्थी कार्ड देने के लिए UNHCR को निर्देश देने की भी मांग की गई है।

शीर्ष अदालत के समक्ष एक लंबित रिट याचिका में अंतरिम आवेदन के माध्यम से राहत मांगी गई है जो रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित होने के ख़तरे से बचाने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए दायर की गई थी।

कल की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने याचिका पर विस्तार से दलीलें सुनने के बाद कहा, ‘‘हम इसे आदेश के लिए सुरक्षित रख रहे हैं।’’

गौरतलब है कि 7 मार्च 2020 को जम्मू और कश्मीर पुलिस जम्मू में शिविरों में रहने वाले लगभग 155 रोहिंग्याओं को वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने पर गिरफ्तार करके एक ‘होल्डिंग सेंटर’ में ले गई थी। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जम्मू में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की बायोमीट्रिक जानकारी सहित अन्य विवरण जुटाने का काम 7 मार्च शनिवार को शुरू किया था। एमएएम स्टेडियम में म्यामांर से आए रोहिंग्या मुसलमानों का सत्यापन किया गया। प्रक्रिया के तहत उनकी बायोमीट्रिक जानकारी, रहने का स्थान आदि सहित अन्य सूचनाएं जुटाई गईं। 155 रोहिंग्याओं को वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने पर एक ‘होल्डिंग सेंटर’ में स्थानांतरित कर दिया गया है। इससे पहले वर्ष 2017 और 2018 में भी पुलिस ने रोहिंग्याओं की वेरिफिकेशन की थी।

वहीं जम्मू कश्मीर के गृह विभाग की फरवरी 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 6523 रोहिंग्या पाँच ज़िलों में 39 कैंप्स में रहते हैं।

गौरतलब है कि देश में अवैध निवासियों के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में बताया कि पिछले दो वर्षों में 3,000 से अधिक लोगों को अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने की कोशिश में गिरफ्तार किया गया। गृह मंत्रालय ने कहा,’पाकिस्तान से 116 नागरिकों, बांग्लादेश से 2,812 और म्यांमार से 325 लोगों को 2018 और 2020 के बीच भारत में घुसपैठ की कोशिश करते हुए पकड़ा गया।

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments