झारखंड: पुलिस की पिटाई के कारण रेशमा ने की थी आत्महत्या, एनएचआरसी ने 1 लाख रूपये मुआवजा का दिया आदेश

पुलिस की पिटाई के कारण 12 वर्षीय दलित लड़की रेशमा द्वारा की गयी आत्महत्या के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मानवाधिकार का उल्लंघन मानते हुए झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को मृतक के परिजनों को 4 सप्ताह के अंदर एक लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। साथ ही झारखंड के डीजीपी को 4 सप्ताह के अंदर उक्त मामले में दोषी धनसार (धनबाद जिला) थाना प्रभारी समेत तमाम दोषी पुलिसकर्मियों पर उचित धारा के तहत कार्रवाई करने का आदेश भी दिया है। एनएचआरसी ने डीजीपी से दोषी पुलिसकर्मियों पर की गयी विभागीय कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है।

मालूम हो कि 19 अप्रैल, 2020 को झारखंड के धनबाद जिलान्तर्गत धनसार थाना के ब्राइट कुसुंडा गांव के दलित राजन हाड़ी की 12 वर्षीय बेटी रेशमा एक दुकान पर कुछ सामान खरीदने गयी थी। उसी समय धनसार थाना की एक जीप आयी और पुलिसकर्मियों ने दुकान से सामान ले रहे लोगों को ‘लॉकडाउन’ उल्लंघन करने के आरोप में पीटना शुरु कर दिया। इसी क्रम में पुलिसकर्मियों ने रेशमा को भी पीटा। रेशमा जब अपने घर आयी, तो उसे बच्चे पुलिस द्वारा पिटाई किये जाने के कारण चिढ़ाने लगे। रेशमा पुलिस की पिटाई के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, उसने उसी दिन दो बार आत्महत्या का प्रयास किया, लेकिन परिजनों द्वारा देख लिए जाने के कारण उसे रोक दिया गया। अंततः 20 अप्रैल को घर की छत में लगे बांस में फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।

उस समय भी यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था, पहले तो पुलिस ने इस मामले को ‘लड़की मानसिक विकलांग है’ कहकर रफा-दफा करना चाहा, लेकिन परिजनों व वहाँ के लोगों द्वारा ‘पुलिस की पिटाई के कारण ही आत्महत्या करने पर रेशमा मजबूर हुई’ लगातार बोलने पर और मीडिया द्वारा मामले को हाईलाईट किये जाने के कारण पुलिस को मामले की जांच का आश्वासन दिया गया था, लेकिन थाना में मामला यूडी के तहत ही दर्ज हुआ।

यह खबर जब 21 अप्रैल से सभी अखबारों व देश के प्रसिद्ध वेबपोर्टलों में प्रकाशित होनी प्रारंभ हुई, तो इसी का हवाला देते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता ओंकार विश्वकर्मा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इससे संबंधित एक शिकायत दर्ज करा दी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी तुरंत इस मामले को संज्ञान में लेते हुए धनबाद एसएसपी को नोटिस किया, फलस्वरूप धनबाद एसएसपी को डीएसपी के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बनानी पड़ी। जांच कमेटी की रिपोर्ट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजा गया, जिसमें यह माना गया था कि पुलिस ने रेशमा को लड़का समझकर उस पर बल प्रयोग किया, इसी से तनाव में आकर रेशमा ने आत्महत्या की। एसएसपी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद धनसार थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी भिखारी राम पर विभागीय कार्रवाई की गयी है और उसको लाईन हाजिर कर दिया गया है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने धनबाद एसएसपी की रिपोर्ट को देखते हुए इस मामले में काफी अनियमितता पायी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव व डीजीपी को लिखा है कि लॉकडाउन के दौरान अगर लोग लॉकडाउन का उल्लंघन कर रहे थे, तो उन्हें लॉकडाउन के बारे में अच्छी तरह से समझाना था, ना कि बल प्रयोग करना था। इससे स्पष्ट होता है कि पुलिस की पिटाई ने ही नाबालिग रेशमा को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया, फिर भी इस मामले में साधारण आत्महत्या का मामला थाना में दर्ज किया गया, उक्त मामले में सीआरपीसी की धारा 154 के तहत मामला दर्ज नहीं किया गया। यह मानवाधिकार का सीरियस उल्लंघन है। 

17 मई, 2021 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के असिस्टेंट रजिस्ट्रार (लॉ) के के श्रीवास्तव द्वारा झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को दिये गये आदेश में एक लाख रूपये मुआवजा देने व डीजीपी को दिये गये आदेश में दोषी पुलिसकर्मियों पर कानूनी कार्रवाई की रिपोर्ट 4 सप्ताह के अंदर मांगी गयी है।

(रुपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल रामगढ़ में रहते हैं।)

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