अदालतें धरना प्रदर्शन को नहीं मान रहीं आतंकी कार्रवाई, अखिल गोगोई के मामले में यूएपीए ख़ारिज

लगता है यूएपीए के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। एक बार फिर एनआईए को यूएपीए के मामले में मुंह की खानी पड़ी हैं। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को लेकर हाल ही में की गई सिलसिलेवार व्याख्या के आदेश को भले ही उच्चतम न्यायालय ने उसका फैसला आने तक नज़ीर न माने जाने का आदेश पारित किया हो, लेकिन उसके बाद देश की अलग-अलग अदालतों से जो फैसले आ रहे हैं, उसमें यूएपीए के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक सामग्री (शर्तें) का यदि अभाव है तो अदालतें यूएपीए को ख़ारिज कर दे रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी बनाए गए तीन लोगों को जमानत देने के साथ ही सामान्य अपराधों में यूएपीए के इस्तेमाल के औचित्य पर सवाल उठाए थे। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत ने असम में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन मामले में शिवसागर के विधायक अखिल गोगोई के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 (यूएपीए) के तहत दर्ज दो मामलों में से एक में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया है।

गौरतलब है कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को पहली बार सिलसिलेवार दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्याख्यायित किया है और स्पष्ट कहा है कि विरोध प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए के तहत आतंकवादी अधिनियम केवल भारत की रक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों से निपटाने के लिए बनाये गये हैं, सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्याओं से नहीं। हम यह कहने के लिए विवश हैं, कि ऐसा दिखता है कि असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में और इस डर में कि मामला हाथ से निकल सकता है, स्टेट ने संवैधानिक रूप से अधिकृत ‘विरोध का अधिकार’ और ‘आतंकवादी गतिविधि’ के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है। अगर इस तरह के धुंधलापन बढ़ता है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।

असम के विधायक और रायजोर दल के अध्यक्ष अखिल गोगोई को एनआईए कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए आंदोलनों में शामिल होने के मामले में बरी कर दिया है। दिसबंर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए थे और इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा भी भड़क गई थी। इन आंदोलनों में सहभागिता के आरोप में अखिल गोगोई दिसंबर 2019 से ही हिरासत में ले लिया गया था। बीते साल ही उन्होंने रायजोर दल की स्थापना की थी और शिवसागर विधानसभा सीट से हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उतरे थे। हिरासत में रहने के बावजूद वह चुनाव जीत गए थे।

विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रांजल दास ने गोगोई के खिलाफ आरोप तय नहीं किये। गोगोई को दिसंबर 2019 में चाबुआ पुलिस थाने में दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने गोगोई के दो सहयोगियों, जगजीत गोहेन एवं भूपेन गोगोई को भी मामले में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोढ़ में खाज यह रहा कि गोगोई के तीसरे सहयोगी भास्करज्योति फुकन के खिलाफ आरोप तय किए गए, लेकिन ये आरोप यूएपीए के तहत नहीं बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 144 (घातक हथियारों से लैस होकर गैरकानूनी तरीके से एकत्रित होना) के तहत तय किये गये हैं। यदि इसी तरह यूएपीए का दुरूपयोग सामने आता रहा तो लोग कहेंगे कि आईपीसी की क्या जरुरत यूएपीए तो है ही।

रायजोर दल के अध्यक्ष गोगोई को चाबुआ पुलिस थाने में दर्ज मूल मामले में इससे पहले जमानत मिल गयी थी। यह मामला बाद में एनआईए को सौंप दिया गया था। गोगोई के खिलाफ एनआईए दो मामलों की जांच कर रहा है, जो शुरूआत में चांदमारी एवं चाबुआ पुलिस थानों में दर्ज कराए गए थे। यह मामला हिंसक प्रदर्शन में गोगोई एवं उसके तीन अन्य साथियों की कथित भूमिका के लिये दर्ज किया गया था।

गोगोई के तीसरे सहयोगी भास्करज्योति फुकन के खिलाफ आरोप तय किए गए, लेकिन ये आरोप यूएपीए के तहत नहीं बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 144 (घातक हथियारों से लैस होकर गैरकानूनी तरीके से एकत्रित होना) के तहत तय किये गये हैं। इस मामले को डिब्रूगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया है।

एनआईए अदालत ने मंगलवार को चांदमारी थाने के उस मामले में भी सुनवाई की जो जांच एजेंसी को स्थानांतरित किया गया था। चांदमारी पुलिस थाने में दर्ज मामले में अदालत ने पिछले साल अगस्त में उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी, इसके बाद उसने इस फैसले को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय में जमानत की अर्जी खारिज हो जाने के बाद गोगोई ने उच्चतम न्यायालय का रूख किया। उच्चतम न्यायालय ने इस स्तर पर इस अर्जी पर विचार करने से इंकार कर दिया।

गोगोई को 12 दिसंबर 2019 को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था। उस दौरान प्रदेश में संशोधित नागरिकता अधिनियम का विरोध पूरे जोरों पर था। गोगोई की गिरफ्तारी कानून व्यवस्था के मद्देनजर एहतियात के तौर पर हुयी थी और इसके अगले दिन उसके तीन सहयोगियों को हिरासत में लिया गया था।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने असम के किसान नेता अखिल गोगोई और उनके सहयोगियों के खिलाफ चार्जशीट में कहा था कि उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने कुछ दोस्तों को ‘कॉमरेड’ कहा था और एक-दूसरों के बीच ‘लाल सलाम’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। एनआईए ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गोगोई और उनके सहयोगियों की गिरफ्तारी को सही ठहराने के लिए ये दलील दी थी।

एनआईए ने विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने के संबंध में केएमएसएस के नेता अखिल गोगोई और धैजय कोंवर तथा छात्र संघ नेता बिट्टू सोनोवाल और मनीष कोंवर को यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया था। एनआईए द्वारा 29 मई को दायर चार्जशीट में यह उल्लेख किया गया था कि सोनोवाल ने लेनिन की एक तस्वीर को ‘पूंजीपति हमें वह रस्सी बेचेंगे जिसके साथ हम उन्हें फांसी देंगे’ इन शब्दों के साथ अपलोड किया था। गोगोई 16 दिसंबर, 2019 से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी, 253 ए, 153 बी और यूएपीए की धारा 18 और 39 के तहत जेल में बंद हैं।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अखिल गोगोई के खिलाफ दो केस दायर किए थे। एक केस डिब्रूगढ़ के छाबुआ पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शन को लेकर था और दूसरा केस गुवाहाटी के चांदमारी इलाके में आंदोलन को लेकर था। गोगोई के खिलाफ आईपीसी की कई धाराओं और यूएपीए के तहत केस फाइल हुआ था। मंगलवार को छाबुआ केस के मामले में उन्हें एनआईए कोर्ट ने बरी कर दिया है। हालांकि दूसरा केस अब भी उनके खिलाफ चलता रहेगा। अखिल गोगोई के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने, हिंसा भड़काने, दो संप्रदायों के बीच वैमनस्यता पैदा करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष खतरा पैदा करने के आरोप में केस फाइल किए गए थे। असम विधानसभा चुनाव में गोगोई ने जेल में रह कर शिवसागर से चुनाव लड़ा और उन्होंने इस सीट से पर जीत हासिल की है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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