वो जो तारीक राहों में मारे गये: खाद शहीद भोगीलाल पाल की याद को सलाम

शुक्रवार ( 22 अक्टूबर) को dap खाद कि लाइन में खड़े-खड़े, उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नया गांव के निवासी , 53 वर्षिय भोगीलाल पाल, का देहांत हो गया। वो दो एकड़ खेत की जोत वाले छोटे किसान थे। उसके 6 बच्चे थे और बिना रासायनिक खाद के इस जोत पर इतना बड़ा परिवार पालना संभव न था। जानकार लोग बताते हैं अगर dap खाद उपलब्ध होती तो वो साल भर में खेती सम्बन्धी खाद, बीज, पानी आदि का खर्चा काट कर खाने का अनाज जुटा सकते थे। नहीं तो खेती पर निर्भर परिवार के लिए भूखे मरना अनिवार्य था। यूँ तो खाद की समस्या आजकल सभी किसानों के सामने है और कई किसान तो इस रबी की फसल के लिए खेत खाली छोड़ने का मन बना चुके हैं लेकिन भोगीलाल जैसे छोटे किसानों की अर्थव्यवस्था इस बात की इज़ाज़त नहीं देती कि वो अन्य बड़े किसानों की तरह खाद न मिलने की स्थिति में खेत खाली छोड़ दें।

खेती के जानकार बताते हैं कि किसानों को रबी कि बुवाई से पहले प्रति एकड़ 45 किलो का एक बोरा डीएपी (dap) खाद अपने खेत में किसी ठीक ठाक फसल के लिये डालना अनवार्य है। यानि भोगीलाल को केवल 2 बोरा डीएपी खाद की जरूरत थी। और उसी 2 बोरा खाद के न मिल पाने की वजह से भोगीलाल काफी चिंतित थे। परेशान थे। उनके घर वाले बताते हैं कि पिछले कई दिनों से वो खाद के लिए जिले की विभिन्न दुकानों पर चक्कर लगा रहे थे लेकिन उनको खाद नहीं मिल रही थी।

गुरुवार (21 अक्टूबर) को वो जुगपुरा की दुकान पर खाद के लिए लम्बी लाइन में लगे लेकिन शाम तक उनका नंबर न आया। वो रात को वहीं रहे और सुबह फिर लाइन में लगे। नंबर आने से पहले ही वो अचेत होकर लाइन में ही गिर पड़े। स्थानीय लोग ही उनको अस्पताल ले गए। वहां पहुँचने पर भोगीलाल मृत पाये गये। प्रशासन भोगीलाल की मौत को दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ बता रहा है। लेकिन उनका भतीजा राघवेन्द्र बताता है, “(पहले दिन )वह घर नहीं आये… अगले दिन, खाद की दुकान पर अपनी बारी से पहले, उसकी मृत्यु हो गई”। मृत्यु के कारण के बारे में मतभेद हो सकते हैं। लेकिन यह तय है कि वह खाद न मिल पाने की वजह से परेशान थे और खाद की लाइन में खड़े खड़े उनकी मृत्यु हो गयी।

प्रशासन का कहना है कि उसके पास खाद का पर्याप्त भंडार है। लेकिन सच इसके विपरीत ही लगता है। अन्य जगहों की तरह ललितपुर में भी खाद की कमी है। खाद लेने के लिए लम्बी लाइनें इसका प्रर्याप्त सबूत हैं। तथ्यात्मक तौर पर भी पिछले साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में ललितपुर में करीब 32 हजार मीट्रिक टन खाद की खपत हुई थी। लेकिन सूत्रों ने बताया कि जिले में इस समय 19,000 मीट्रिक टन का भंडार है।

साथ ही साथ यह भी सच है कि प्रशासन और स्थानीय सरकारी तंत्र के कुप्रबंधन ने इस समस्या को और विकट बना दिया है। जिले की कुल 270 दुकानों में से केवल 150 ही क्रियाशील हैं। अन्य दुकानें विभिन्न कारणों से बंद हैं, जिनमें उनके लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं होना भी शामिल है। और यह भी कुप्रबंधन का ही मामला है कि भोगीलाल की मृत्यु के तुरंत बाद, जिला मजिस्ट्रेट अन्नावी दिनेश कुमार ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी कि परिवार को 10 लाख रुपये कि वित्तीय सहायता प्रदान की जाए। लेकिन सरकार ने अभी तक इस मामले पर खामोश है।

भोगी लाल की दुखद मृत्यु सार रूप में सरकारी निकम्मेपन की वजह से ही है और यदि सरकारी चाल न सुधरी तो निश्चित रूप से खाद समस्या और भी किसानों कि बलि लेगी। विभिन्न जगहों से आ रही किसान आक्रोश की ख़बरें इसकी गवाह हैं। लेकिन यह तय है कि भोगीलाल पाल की शाहदत व्यर्थ न जाएगी। मुझे विश्वास है कि उसकी शाहदत इस निकम्मी सरकार का असली किसान विरोधी चेहरा उजागर करेगी और सरकार पर उचित दबाव बना कर किसानों के जीवन संघर्ष को आसान करेगी।


(रवींद्र गोयल लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

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