यूक्रेन मामले में तटस्थता अब कतई उचित नहीं

फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से लंबी बातचीत में पुतिन ने यह साफ़ संकेत दे दिया है कि वह यूक्रेन पर अपने हमले को जल्द ख़त्म करने वाला नहीं है। मैक्रों के शब्दों में – “अभी और भी भारी तबाही अपेक्षित है। ज़ाहिर है कि यूक्रेन की जनता ने रूस के हमले का जिस बहादुरी के साथ मुक़ाबला किया है, रूस अब भी उससे कोई सबक़ लेने के लिए तैयार नहीं है”।

यूक्रेन के लोग अपने देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए तैयार है। उनका यह प्रतिरोध दुनिया के किसी भी स्वतंत्रता-प्रेमी व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, पर यही बात शायद पुतिन जैसे तानाशाह की समझ के परे है! उल्टे, पुतिन दुनिया को नाभिकीय हमले की चेतावनी दे रहा है। दुनिया के तमाम देशों को यूक्रेन से दूर रहने की धमकी दे रहा है ताकि वह बेख़ौफ़ होकर यूक्रेन का वध कर सके।

यह सीधे तौर पर इस धरती पर पुतिन के रूप में हिटलर के पुनर्जन्म का संकेत है। यह इस बात की साफ़ चेतावनी है कि यदि पुतिन इस काम में सफल होता है तो उसके निशाने पर पुराने सोवियत संघ से अलग हुए बाक़ी सभी राष्ट्रों को आने में जरा सी देरी भी नहीं लगेगी।

पुतिन ने यूक्रेन को एक अलग देश मानने से ही इंकार करना शुरू कर दिया है। इसी तर्क पर वह आराम से कभी भी सोवियत संघ से निकल गये बाक़ी देशों के अस्तित्व से भी इंकार कर सकता है।

अपनी सीमाओं की सुरक्षा की चिंता के नाम पर पुतिन इन सब देशों को बाक़ी यूरोप और एशिया के बीच के बफ़र क्षेत्र से ज़्यादा हैसियत देने के लिए तैयार नहीं है।

पुतिन का तर्क है कि उसने यूक्रेन को नाज़ीवाद से बचाने के लिए यह अभियान शुरू किया है। पर यूक्रेन के लोग उसके तर्क को मान कर राष्ट्रपति वोल्दिमीर जेलिंस्की के खिलाफ विद्रोह के लिए तैयार नहीं हैं। न वहाँ किसी प्रकार के गृहयुद्ध के कोई लक्षण दिखाई देते हैं।

उल्टे, सभी यूक्रेनवासियों ने अपने राष्ट्र को रूस से बचाने के लिए देशभक्तिपूर्ण प्रतिरोध का रास्ता अपनाया है। इसी से साफ़ है कि यह युद्ध दिन प्रतिदिन और ज़्यादा बढ़ता चला जाएगा।

सारी दुनिया में पुतिन के इस हमले की कार्रवाई का तीव्र प्रतिवाद शुरू हो चुका है। अमेरिका और यूरोप की सरकारों ने रूस के खिलाफ सख़्त आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी है। संयुक्त राष्ट्र संघ में एक भी देश रूस के समर्थन में सामने नहीं आया है। चीन, भारत की तरह के थोड़े से देश, नितांत निजी रणनीतिक कारणों से, रूस की खुली निंदा करने से परहेज़ कर रहे हैं। यूरोप के कुछ देशों ने तो यूक्रेन को सामरिक मदद की पेशकश भी की है।

यूक्रेन के प्रतिरोध युद्ध और उसे मिल रहे अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन से पुतिन घायल शेर की तरह और भी ख़ूँख़ार होता जा रहा है। उसके युद्ध अपराध बढ़ते चले जा रहे हैं। उसने यूक्रेन के एक के बाद एक शहर पर क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया है ।

रूस की आर्थिक नाकेबंदी का असर अभी तो उतना दिखाई नहीं दे रहा है, पर अभी से रूबल तेज़ी से टूटने लगा है। यदि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय क्रमशः इन प्रतिबंधों को और सख़्त करेगा, तो तानाशाह पुतिन की सत्ता को रूस में ही हिलने में देर नहीं लगेगी। पुतिन इस ख़तरे को भाँपते हुए ही यूक्रेन को क़ब्ज़े में लेने के अपने अभियान को जल्द से जल्द पूरा करना चाहता है। पर युद्ध के अपने तर्क भी होते हैं जिसमें किसी के वश में सब कुछ नहीं होता है। इसीलिए ख़तरा इस बात का है कि जल्द ही दुनिया को तबाही के अकल्पनीय ख़ौफ़नाक मंजर देखने को मिलें। पुतिन ने आज वास्तव में सारी दुनिया को जैसे बंदूक़ की नोक पर खड़ा कर दिया है। यह एक बेहद ख़तरनाक परिस्थिति है।

पुतिन का रूस अल-क़ायदा नहीं है, जिसकी शक्ति की अपनी एक सीमा थी। लेकिन रूस के ख़तरे को देखते हुए अभी तक अमेरिका और यूरोप के देशों ने जिस प्रकार यूक्रेन को अकेला छोड़ रखा है, वह भी कम चिंताजनक नहीं है। इससे भविष्य के अन्तर्राष्ट्रीय संतुलन पर जो घातक असर होंगे, उसके अंजाम भी कम विध्वंसक नहीं होंगे।

पुतिन के तर्क को मान लिया जाए तो चीन को ही हमारे लद्दाख और अरुणाचल तक आने से कौन रोक सकेगा। दुनिया में ऐसे असंख्य युद्ध क्षेत्र तैयार हो जाएँगे।

पुतिन तत्काल युद्ध बंद करके अपनी सेना को वापस बुलाने के लिए मजबूर हो, इसे सुनिश्चित करना सारी दुनिया की ज़िम्मेदारी है। इसमें ‘तटस्थता’ की कोई भूमिका संभव नहीं है।

(अरुण माहेश्वरी लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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