बस्तर: कलेक्ट्रेट का घेराव करने जा रहे आदिवासी ग्रामीणों पर लाठीचार्ज

नारायणपुर (बस्तर)। कलेक्ट्रेट का घेराव करने जा रहे नारायणपुर के आदिवासियों पर भीषण लाठीचार्ज हुआ है। इस लाठीचार्ज में कई आदिवासी गंभीर पूर से घायल हो गए हैं। ये सभी ग्रामीण नारायणपुर और रावघाट माइंस समेत पांचवीं अनुसूची को लेकर आंदोलित थे।

इसके पहले ग्रामीण आदिवासियों ने नाका डालकर भिलाई इस्पात के लिए खनिज पदार्थों को ले जाने वाले ट्रकों को रोकने का अभियान शुरू कर दिया था। उनका कहना है कि कंपनी ने इलाके के लोगों से जो वायदे किए थे उसको उसने पूरे नहीं किए। गोड़गांव के आस-पास के सटे इलाके के सभी ग्रामीण इस मसले पर एकजुट हो गए हैं और उन्होंने प्रशासन की रातों की नींद छीन ली है।

आप को बता दें कि छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग क्षेत्र में नारायणपुर जिला अंतर्गत रावघाट माइंस परियोजना लौह अयस्क की आपूर्ति के मद्देनजर शुरू की गई थी। यहां अंजरेल की पहाड़ियों से खनन के बाद बीएसपी( भिलाई इस्पात संयंत्र) खनन का काम करती है।

नारायणपुर जिले के खोड़गांव के ग्रामीण आदिवासी लौह अयस्क खनन के खिलाफ सप्ताह भर से धरने पर बैठे हैं। और इस दौरान लगातार ग्रामीण खोड़गांव में अस्थाई नाका बना कर लौह अयस्क यातायात वाहनों को रोक रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी चोरी-छिपे लौह अयस्क का खनन कर यातायात कर रही है।

ग्रामीणों की मानें तो भिलाई इस्पात संयंत्र ने इलाके में विकास करने की बात कही थी। लेकिन उसके जरिये अभी तक कोई विकास का काम नहीं किया गया। उसी के विरोध में ग्रामीणों ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। अब ग्रामीण इस पूरे मामले पर जनसुनवाई की मांग कर रहे हैं।

माइंस प्रभावित गांव के रहने वाले लखन नुरेटी ने बताया कि रात के अंधेरे का सहारा लेकर कुछ टिप्पर- ट्रक रावघाट पहाड़ी पर चढ़ गये हैं। जबकि कम्पनी को दी गई पर्यावरण संबंधी शर्तों में रात के दौरान किसी भी ट्रक का इन सड़कों पर परिवहन सख्त प्रतिबंधित है। जबकि कम्पनी ने पर्यावरण मंत्रालय को कई बार आश्वस्त किया है कि समस्त परिवहन दिन के समय ही होगा।  

इस गैर कानूनी परिवहन को रोकने के लिये शनिवार की रात से ग्रामीण सड़क पर ही खाना बना रहे हैं, सो रहे हैं और निरंतर पहरा दे रहे हैं। 27 मार्च की सुबह ग्रामीणों ने सड़क पर नाका भी बना दिया। खोडगाँव, खड़कागाँव, बिंजली, परलभाट, खैराभाट और रावघाट आस पास के कई खदान प्रभावित गाँव के लोग भी समर्थन में आ गए हैं।

लौह अयस्क के यातायात को रोकने के लिए अस्थाई नाका लगा दिया गया है।ग्रामीणों का कहना है कि यह अयस्क हमारा है, कम्पनी इसकी चोरी कर रही है, किसी ग्राम सभा ने खनन की सहमति नहीं दी है।

26 मॉर्च 2022 को नारायणपुर के खोड़गाँव में सैकड़ों आदिवासियों ने सड़क जाम करते हुए टिप्पर ट्रक चालकों को बीच सड़क पर ही अपने अयस्क से भरे ट्रकों को खाली करने के लिए मजबूर कर दिया था।

बता दें कि भिलाई स्टील प्लांट को 3 लाख टन प्रतिवर्ष अयस्क खनन कर रोड से यातायात करने की अनुमति पर्यावरण मंत्रालय से मिली थी। पर अभी तक किसी भी प्रभावित गाँव की ग्राम सभा ने इस खनन परियोजना को सहमति नहीं दी है। 

ग्रामीणों का कहना है कि बीएसपी कम्पनी कई वर्षों से सुहावने वायदे कर रही है, पर उनमें से किसी को पूरा नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष जब पहाड़ी के ऊपर खदान क्षेत्र पर पेड़ कटाई हुई थी, तो बरसात में मिट्टी बह कर खोड़गाँव के कैम्प तक पहुँच गई थी। उनका कहना है कि जब इस माइनिंग से कैम्प को भी सुरक्षित नहीं कर सकती सरकार तो हमारे गाँव, हमारे घर, हमारे खेत कैसे सुरक्षित रहेंगे? 

आदिवासी परम्परा में रावघाट पर राजाराव बसते हैं, और वह उनके लिये एक पवित्र स्थल है। यही नहीं, आस-पास के सभी गाँव इस पहाड़ी पर अपनी गौण वनोपज और औषधियों के लिये निर्भर हैं। बताया जाता है कि जब कुछ दशक पहले यहाँ पर बरसात की कमी थी तो इसमें रहने वालों ने पहाड़ और जंगलों के बीच शहद पीकर और जंगली कन्दमूल, जड़ीबूटी खाकर कई सालों तक गुज़ारा किया था।

खोड़गांव से रावघाट माइंस का लौह अयस्क भिलाई इस्पात सयंत्र ले जाने से पहले 2007 में कंपनी ने कांकेर और नारायणपुर जिले के 22 गांवों को गोद लेकर इलाके में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने का सपना दिखाया था। लेकिन सपने सिर्फ सपने बनकर रह गए। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को परेशान होना पड़ रहा है। रावघाट की अंजरेल की पहाड़ियों से मिलने वाले वनोपज से ग्रामीण अपना जीवन-यापन पीढ़ियों से करते आये हैं। 

पेड़ और पहाड़ की ये पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन इन पहाड़ियों से खनन कार्य होने से इनके देवी देवताओं के पूजा पाठ और वनोपज के संसाधन पर बड़ा असर पड़ा है। ग्रामीणों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं होने के कारण जल-जंगल-जमीन पर ये सभी आश्रित रहते हैं। जिससे इनका जीवन यापन होता है। अब जब एक तरफ जंगल कट रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ठगे गए ग्रामीणों को भविष्य की चिंता सता रही है।

माइंस प्रभावित गांव के एक ग्रामीण ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि पुलिस और कलेक्टर ऑफिस से निरन्तर दबाव आ रहा है कि इस धरने को बंद किया जाये।  एक तरफ ग्रामीणों को धमकाया जा रहा है कि नक्सली केस में फंसा देंगे, दूसरी ओर उन्हें जनपद ऑफिस बुलाकर लुभाया जा रहा है उनसे पूछा जा रहा है कि आखिर क्या चाहते हो, सब कुछ देंगे। माइनिंग प्रभावित कुछ ग्रामों को वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत समुदायिक वन अधिकार पत्र भी मिला है, जिसका यह खनन परियोजना सीधा-सीधा उल्लंघन है।

(नारायणपुर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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