तिलाड़ी विद्रोह की बरसी पर उत्तराखंड में उठी हक की आवाज

देहरादून। कल 30 मई को तिलाड़ी विद्रोह की याद में प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसके तहत जुलूस, प्रदर्शन और संगोष्ठियां आयोजित की गयीं। देहरादून, चमियाला, भवाली, रामगढ़, रामनगर, बागेश्वर, अल्मोड़ा, थलीसैंण, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी समेत अन्य जगहों में कार्यक्रम हुए। आपको बता दें कि तिलाड़ी विद्रोह वनों को उजाड़ने के खिलाफ हुआ था। “हमें चाहिए जनता का विकास, न की बुल्डोजर से विनाश” के नारे के साथ राज्य के आंदोलनकारियों, बुद्धिजीवियों, विपक्षी दलों एवं जन संगठनों के आह्वान पर इन कार्यक्रमों के जरिये सरकार की नीतियों के खिलाफ लोगों ने आक्रोश जताया। 

देहरादून शहर में आयोजित कार्यक्रम में सैकड़ों आम लोगों के साथ राज्य के प्रमुख जन आंदोलनों और विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल रहे। इस मौके पर गांधी पार्क के मेन गेट पर इकट्ठे होकर लोगों ने घंटा घर तक जुलूस निकाला।

इन कार्यक्रमों में लोगों का कहना था कि 92 साल बाद भी जिन हक़ों के लिए तिलाड़ी के शहीदों ने अपनी जान दी, वे आज भी जनता से छीने जा रहे हैं।  उन्होंने ख़ास तौर पर इस दौर में जारी पेड़ों की कटाई को चिन्हित किया।

इसके साथ ही बुल्डोजर के जरिये वहशियाना तरीके से किसी के घर को ध्वस्त करने की मौजूदा सरकार की कार्यप्रणाली पर बेहद आक्रोश जाहिर किया गया। लोगों ने न केवल इसे बर्बर करार दिया बल्कि कहा कि यह किसी भी सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है। और यह सरकार गठन की बुनियादी अवधारणा के खिलाफ है। क्योंकि सरकारें लोगों के कल्याण के लिए होती हैं न कि उन्हें उजाड़ने के लिए। लोगों का कहना था कि किसी भी परिवार को बेघर करना बच्चों, बुज़ुर्गों और महिलाओं के लिए घातक हो सकता है। इसलिए अतिक्रमण हटाने या फिर विकास परियोजनाओं के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जा सकता है।

इस मौके पर लोगों ने भू कानून पर 2018 में हुए संशोधन को तत्काल रद्द करने की मांग की। उनका कहना था कि उत्तराखंड में चकबंदी, बंदोबस्त और स्थानीय विकास के लिए भू कानून बहुत ज़रूरी है।

इसके साथ ही राज्य में वन अधिकार कानून पर अमल की मांग की गयी। वक्ताओं ने कहा कि वन अधिकार कानून के तहत, वन भूमि में किसी भी संसाधन का इस्तेमाल करने से पहले वहां की स्थानीय ग्राम सभा से अनुमति ली जानी चाहिए।

संगठनों ने एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही। उनका कहना था कि बड़ी परियोजनाओं को दी जा रही सब्सिडियों को खत्म कर, उसकी निधि को महिला किसानों, महिला मज़दूरों, एकल महिलाओं और अन्य शोषित महिलाओं को आर्थिक सहायता के तौर पर दी जानी चाहिए।

ऐसे समय में जब जनता महंगाई और लॉक डाउन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रही है, तब यह ज़रूरी हो जाता है सरकार राशन वितरण से संबंधित तमिलनाडु और केरल की व्यवस्था को उत्तराखंड में भी लागू करे।

इस मौके पर कुछ जगहों पर संगोष्ठियां आयोजित की गयीं। और वहां इन मुद्दों को लेकर प्रस्ताव पास करवाए गए। देहरादून और कुछ अन्य क्षेत्रों में धरना प्रदर्शन द्वारा मुदों को उठाया गया।  

देहरादून के जुलूस में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव समर भंडारी; उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत, निर्मला बिष्ट, गीता गैरोला एवं अन्य साथी मौजूद थे। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के राज्य अध्यक्ष डॉ एसएन सचान; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, रामू सोनी, सुनीता देवी, पप्पू, संजय, राजेंद्र साह, मुकेश उनियाल, अशोक कुमार, रहमत अली, सुवा लाल, विजेंद्र कुमार और अन्य लोग थे। इसके अलावा सीपीआई(मार्क्सवादी) के राज्य सचिवालय समिति के सदस्य एसएस सजवाण; जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी; सर्वोदय मंडल के बीजू नेगी; भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट; CITU के राज्य सचिव लेखराज; SUCI के मुकेश सेमवाल; और अन्य संगठनों के प्रतिनिधि शामिल रहे। 

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments