जब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या संसद काम नहीं कर रही? 

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर कोर्ट सभी राजनीतिक मुद्दे भी देखेगी तो फिर राजनीतिक प्रतिनिधि किस काम के लिए हैं। कुछ मुद्दे तो संसद में डिबेट के लिए छोड़ दिया जाएं। उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया कि क्या संसद काम नहीं कर रही है? उच्चतम न्यायालय ने यह तल्ख टिप्पणी बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की उस अर्जी पर तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए जिसमें कहा गया है कि देश भर के रजिस्टर्ड शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए एक ड्रेस कोड होना चाहिए।

दरअसल उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को जब हिजाब से जुड़ीं याचिकाओं को सुनवाई के लिए लिस्टिंग का निर्देश दिया, तभी वकील अश्विनी उपाध्याय ने कॉमन ड्रेस कोड से जुड़ी अपनी जनहित याचिका को भी साथ में लिस्ट करने की मांग की। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या संसद काम नहीं कर रही? माफ कीजिए। अगर हर मसला कोर्ट देखेगा तो जनप्रतिनिधि किसलिए हैं?

उच्चतम न्यायालय ने अश्निनी उपाध्याय की अर्जी पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। उपाध्याय की ओर से कहा गया था कि हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए लिस्ट करने का निर्देश दिया है। उसी अर्जी के साथ इस मामले को भी सुना जाना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया।

चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने इस दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आप रोज पीआईएल दाखिल करेंगे तो ऐसे में आपके लिए हमें अलग से पीठ बनाना होगा। आपने कब फाइल किया है और इस मामले में क्या अर्जेंसी है। आप रोजाना पिटिशन फाइल करते हैं। सॉरी, हमें माफ करें।

चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से कहा कि हर रोज आप पीआईएल दाखिल कैसे कर सकते हैं। क्या संसद काम नहीं कर रही है? मिस्टर उपाध्याय हमने आपका केस रोज सुना है। आपके सामने सारी समस्याएं हैं। संसद की समस्याएं हैं, नॉमिनेशन की समस्याएं हैं। इलेक्शन पिटिशन है। ये सभी मुद्दे राजनीतिक मुद्दे हैं। आप सरकार के पास जाएं। ये राजनीतिक मुद्दे हैं। अगर कोर्ट सभी राजनीतिक मुद्दों को देखना शुरू कर दे तो फिर राजनीतिक प्रतिनिधि किस काम के लिए होंगे। कुछ मुद्दे तो संसद में डिबेट के लिए आप छोड़ दें।

उच्चतम न्यायालय में जब याचिकाकर्ता ने कहा कि हिजाब संबंधित मामले में शीर्ष अदालत सुनवाई के लिए सहमत है और यह मामला भी स्कूल में ड्रेस कोड से संबंधित है। तब पीठ ने कहा कि आपको कई बार बताया जा चुका है अब फिर से वही सब कहने पर मजबूर न करें। हर दिन आप पीआईएल दाखिल करते हैं आप इंतजार करें।

कर्नाटक हिजाब विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय में 12 फरवरी को याचिका दायर कर देशभर के तमाम शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक कॉमन ड्रेस कोड लागू करने की गुहार लगाई गई थी। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के बेटे 18 साल के एक लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार और देश भर के राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया था। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश किया जाना चाहिए कि मान्यता प्राप्त सभी शैक्षणिक संस्थानों के लिए ड्रेस कोड लागू करे ताकि देश में समानता और सामाजिक एकता और गरिमा सुनिश्चित हो और देश की एकता और अखंडता और सुदृढ़ हो सके।

याचिकाकर्ता ने कहा है एक तरह के एजुकेशनल माहौल और ड्रेस कोड से देश के लोकतंत्र का जो तानाबाना है वह और मजबूत होगा और सभी स्टूडेंट को समान अवसर मिलेगा। कॉमन ड्रेस कोड न सिर्फ इसलिए जरूरी है कि समानता का वैल्यू मजबूत होगा और सामाजिक न्याय और लोकतंत्र सुदृढ़ होगा बल्कि इससे मानवीय समाज बनेगा और सांप्रदायिकता और जातिवाद जैसी प्रवृति को रोकने में मदद होगा।

याचिका में दुनिया भर के कई देशों का हवाला देकर कहा गया कि यूके, यूएस, फ्रांस, चीन, सिंगापुर आदि देशों में देश भर के लिए स्कूल कॉलेजों में कॉमन ड्रेस कोड है। कॉमन ड्रेस कोड से न सिर्फ आपसी रंजिश और हिंसा पर रोक लग सकेगा बल्कि शैक्षणिक सस्थानों में शैक्षणिक माहौल पैदा होगा। इससे सामाजिक और आर्थिक विषमताएं भी दूर होंगी। कॉमन ड्रेस कोड होने से अलग-अलग कपड़ों के कलर वाले गैंग पर रोक लग सकेगी। अलग-अलग कपड़ों वाली गैंगबाजी नहीं हो पाएगी और इस तरह की चीजों को रोकने में मदद मिलेगी।

दरअसल उच्चतम न्यायालय ने सीरियल पीआईएल वादी अश्विनी उपाध्याय द्वारा सभी स्कूलों में समान ड्रेस कोड की मांग वाली एक रिट याचिका के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने के अनुरोध को ठुकरा दिया। उपाध्याय ने अपने बेटे द्वारा दायर याचिका का उल्लेख किया था, जिसमें इसे अगले सप्ताह हिजाब मामले के साथ सूचीबद्ध करने की मांग की गई थी।

उपाध्याय की याचिका को सूचीबद्ध करने के मुद्दे पर अपनी अनिच्छा व्यक्त करते हुए, चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा मैंने आपको कई बार बताया है। यदि आप हर दिन एक जनहित याचिका दायर करेंगे तो हमें एक विशेष अदालत का गठन करना होगा। आपने कितनी बार मुकदमा दायर किया? अत्यावश्यकता क्या है? हर दिन आप एक जनहित याचिका दायर करते हैं? 

चीफ जस्टिस ने कहा कि हर मामले में आप एक जनहित याचिका दायर नहीं कर सकते। संसद काम नहीं कर रही है? उपाध्याय द्वारा दायर एक अन्य याचिका के संबंध में चीफ जस्टिस पहले भी इसी तरह की टिप्पणी कर चुके हैं। अप्रैल में, जब उपाध्याय ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए अपनी जनहित याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की, तो चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की थी कि सूरज के नीचे मौजूद सारी चीजों के लिए याचिकाएं दायर की जा रही हैं। उपाध्याय, हर रोज मुझे केवल आपका मामला सुनना पड़ता है? सूरज के नीचे सभी समस्याएं, संसद सदस्यों के मुद्दे, नामांकन के मुद्दे, चुनाव सुधार आदि। ये सभी राजनीतिक मुद्दे हैं, आप सरकार के पास जाएं। यदि न्यायालय सभी राजनीतिक मुद्दों को उठाता है, तो राजनीतिक प्रतिनिधि किस लिए हैं। चीफ जस्टिस ने कहा, कि कुछ मामलों को संसद पर विचार करने के लिए छोड़ दिया गया है।

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने यूएपीए मामले में आरोपी को दी गई जमानत के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की कि जिस तरह से आप कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको किसी व्यक्ति के न्यूज पेपर पढ़ने में भी दिक्कत है।

एनआईए ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा यूएपीए मामले में एक कंपनी के महाप्रबंधक को कथित तौर पर जबरन वसूली के लिए तृतीया प्रस्तुति समिति (टीपीसी) नामक एक माओवादी खंडित समूह के साथ संबद्ध होने के लिए जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ के समक्ष कहा कि प्रबंधक टीपीसी के जोनल कमांडर के निर्देश पर जबरन वसूली करता था। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि आरोपी टीपीसी सहकारी समितियों को भुगतान के लिए ट्रांसपोर्टरों और डीओ धारकों से फंड एकत्र कर रहा था।

इस पर चीफ जस्टिस  ने कहा कि जिस तरह से आप कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको एक व्यक्ति के अखबार पढ़ने से भी दिक्कत है। याचिका खारिज की जाती है।

आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड के महाप्रबंधक संजय जैन को दिसंबर 2018 में इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था कि वह जबरन वसूली रैकेट चलाने में टीपीसी से जुड़ा हुआ था। वह अपनी गिरफ्तारी के बाद से दिसंबर 2021 में हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने तक हिरासत में था। जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि यूएपीए अपराध प्रथम दृष्ट्या नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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