स्पेशल रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन की चपेट में बिहार, लेकिन बचाव का कोई एक्शन प्लान नहीं

पटना। मौसम विभाग के अनुसार 17 अगस्त 2022 तक राज्य में केवल 389.8 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जो कि सामान्य से बहुत कम है। कम से कम 657.6 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए। वहीं पिछले साल मानसून के दौरान चार बार बाढ़ आई। बिहार के 31 ज़िलों के कुल 294 प्रखंड इससे प्रभावित हुए थे। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जारी ‘क्लाइमेट वल्नेरिबिलिटी एसेसमेंट फ़ॉर एडॉप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया’ रिपोर्ट में बिहार को ‘हाई वल्नेरिबिलिटी’ श्रेणी में रखा गया है।

वहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) मंडी और गुवाहाटी के एक अध्ययन के मुताबिक भारत के 50 सबसे अधिक जलवायु परिवर्तन की मार झेलने वाले जिलों में बिहार के 14 जिले शामिल हैं। ये जिले हैं अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, जमुई, शिवहर, मधेपुरा, पूर्वी चंपारण, लखीसराय, सिवान, सीतामढ़ी, खगड़िया, गोपालगंज, मधुबनी और बक्सर।

इस रिपोर्ट के आने के बाद बिहार सरकार ने जल जीवन हरियाली अभियान जैसी बेहतरीन योजना की शुरुआत की। लेकिन ग्राउंड स्थिति के मुताबिक ऐसा लगता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने का सरकार के पास कोई कारगर एक्शन प्लान नहीं है। जिस वजह से बिहार के लिए जलवायु परिवर्तन की मार भारी पड़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से धान की स्थिति

मौसम की अनिश्चितताओं ने किया फसल का बुरा हाल

कृषि विभाग में 35 साल काम कर चुके अरुण कुमार झा बताते हैं कि, “एक तरफ जहां सीमांचल इलाके में चाय और अनानास वहीं कोशी क्षेत्र में मकई की खेती वैकल्पिक कृषि के रूप में हो रही है। लेकिन स्थिति यह है कि कहीं भी चाय अनानास या मकई उत्पाद संबंधी कारखाना नहीं खुला है। इस वजह से किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। वहीं कई किसान मकान की तरफ रुचि दिखा रहे हैं। लेकिन वहां अधिकांश किसानों के पास सरकार का अनुदान ही नहीं पहुंच पा रहा हैं। ऐसे में वैकल्पिक कृषि की योजना फेल हो रही है।”

बाढ़ और सूखा: जलवायु परिवर्तन के लक्षण

जहां उत्तरी बिहार अभी वर्तमान की स्थिति में बाढ़ और सूखा दोनों झेल रहा है वहीं दक्षिणी बिहार मुख्य रूप से सूखाग्रस्त हो चुका है। आईआईटियन जया अग्रवाल बताती हैं कि, “बिहार में जंगलों का कम होना एक वजह है, खासकर ग्रामीण आबादी में। साथ ही बिहार सरकार का जल जीवन हरियाली अभियान धरातल पर बेअसर है। दो दशक में बिहार में जलवायु परिवर्तन की बहस तेज हुई है। हालांकि, नीति निर्माण में इसका प्रभाव न के बराबर है।”

बिहार आर्थिक सर्वे के मुताबिक साल 2016-2017 में 20 प्रोजेक्ट के लिए 51.53 हेक्टेयर वन क्षेत्र, साल 2017-2018 में लगभग 150 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 2020-2021 में 432.78 हेक्टेयर वन क्षेत्र मतलब पिछले 5 सालों के आंकड़े को देखा जाए तो 1603.8 हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए गैर वन क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया है।

जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए गया जिला में जल जीवन हरियाली अभियान के तहत चेक डैम का निर्माण, जो काम नहीं कर रहा है।

वहीं पीयू के पूर्व कुलपति एवं पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. रास बिहारी सिंह पूरे मामले पर कहते हैं कि, “सघन वन को बर्बाद करके सड़क के दोनों तरफ पौधे लगाकर हम नुकसान की भरपाई बिल्कुल नहीं कर पायेंगे। क्योंकि पौधे को जंगल बनने में सालों लग जाते हैं। बिहार जलवायु परिवर्तन के अग्रिम प्रभावी राज्यों में शामिल है। ऐसे वक्त में सघन वनों को नुकसान पहुंचाना बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता है। हमें विकास चाहिए और विकास विनाश से शुरू होता है। साथ ही विकास करने वाला ही ये तय करता है कि विकास क्यों ज़रूरी है और कितना ज़रूरी है।”

जलवायु परिवर्तन रोकने में कितना सक्षम जल जीवन हरियाली मिशन

बिहार सरकार ने दो अक्टूबर 2019 को जल जीवन हरियाली अभियान की शुरुआत की। इसका मकसद है जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से निपटना। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत जल जीवन हरियाली मिशन के तहत सरकार ने 47 लाख पौधे लगाये।

इस मामले में जानकारों का कहना है कि बिहार की यह योजना जमीन पर ठीक से नहीं उतर पाई है। ग्रामीण विकास विभाग के एक बड़े अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि “विभागों के बीच सामंजस्य ना होने की वजह से यह अभियान थोड़ा कमजोर हो गया है। अगर दो-तीन विभाग के अधिकार क्षेत्रों तक रहता तो ज्यादा काम होता। लेकिन मुख्यमंत्री के प्रेशर की वजह से इस योजना के अंतर्गत बहुत ही काम हुआ है।”

(पटना से राहुल की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments