चेहरे पर शोषण के रंग देखने से क्यों लजाता है आहतों का देश?

भारत आहतों का देश है। आहत होना हमारी फितरत है। कुछ समय पहले की बात है जब फिल्म में एक्ट्रेस के कपड़ों का बेशरम रंग नुक्कड़ की दुकान से लेकर न्यूज चैनलों के डिबेट पैनल तक में बिखरा दिखा है। होली के मौके पर फिर आहत होने की बीमारी ने लक्षण दिखाए। निशाने पर रहे दो कंपनियों के विज्ञापन। फूड डिलीवरी करने वाली कंपनी स्विगी और मेट्रोमोनियल साइट भारत मेट्रिमोनी।

पहले बात शादी कराने वाली कंपनी के एड की करते हैं। कंपनी ने होली के मौके पर एक 1 मिनट 15 सेकेंड का वीडियो क्लिप ट्वीट किया। हाल के दिनों में प्रोग्रेसिव संदेश वाले एड फैशन में हैं, लेकिन विवादों में भी सबसे ज्यादा वो ही फंसते रहे हैं। वीडियो में दिख रहा है कि एक महिला वॉश बेसिन के सामने खड़ी है। उसका चेहरा अलग-अलग रंगों से रंगा हुआ है। वो धीरे धीरे रंग छुड़ाने की कोशिश करती है और तब दिखाई देते हैं, उसके चेहरे के वो रंग जिन्हें देखने से भारतीय समाज हमेशा ही सकुचाता और बचता रहा है।

उस महिला के चेहरे पर चोट के निशान हैं और कैप्शन में लिखा है कि ”कुछ रंग आसानी से धोए नहीं जाते।” वीडियो आगे ये भी कहती है कि होली के दौरान उत्पीड़न का शिकार हुई एक तिहाई महिलाओं ने त्योहार मनाना बंद कर दिया है।

वीडियो का मकसद है होली के दौरान होने वाली छेड़खानी और मारपीट की घटनाओं को लेकर लोगों में एक जागरूकता पैदा करना। साथ ही त्योहारों को महिलाओं के नज़रिए से देखने की संवेदनशीलता पैदा करना। लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, महिलाओं को लेकर बनाए गए प्रोग्रेसिव विज्ञापन लोगों की आंखों में चुभ जाते हैं। सोशल मीडिया में इस विज्ञापन को लेकर ट्विटर यूजर्स ने जमकर हल्ला बोला। लोगों ने इसे हिंदूविरोधी बताया। वेबसाइट के बॉयकॉट की अपील तक कर डाली।

सोशल मीडिया पर इस तरह का रिएक्शन देखकर कंपनी ने वीडियो वाले ट्वीट का कैप्शन ही बदल दिया। पहले लिखा गया था कि कई महिलाओं ने उत्पीड़न के चलते होली का पर्व मनाना बंद ही कर दिया है। आइये इस होली पर महिला दिवस मनाएं और ऐसी कोशिश करें कि महिलाओं के लिए हर दिन सुरक्षित हो। बाद में कैप्शन बदला गया और इस बार लिखा गया कि-महिला दिवस और होली के मौके पर महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित और समावेशी स्पेस बनाने की कोशिश करनी चाहिए। उन चुनौतियों को मानने की ज़रूरत है जिनका महिलाएं रोजमर्रा के जीवन में सामना करती हैं।

खैर कुछ ट्विटर यूजर्स तो इतने पर भी नहीं रुके और उन्होंने कहा कि कैप्शन बदलना काफी नहीं है। कंपनी माफी मांगे। कुछ ऐसा ही फूड डिलीवरी एप स्विगी के एक विज्ञापन के साथ देखने को मिला।

अंडों से जुड़े इस विज्ञापन के कैप्शन थे ”ऑमलेट-सनी साइड अप और किसी के सर पर।” बुरा मत खेलो होली के हैशटैग से ये ट्विटर पर मौजूद था। बस इतना भर था कि पब्लिक से लेकर ऑल इंडिया साधु समाज के लोगों ने इसे स्विगी का सेलेक्टिव ज्ञान करार दिया। जाहिर है बॉयकॉट की धमकी के बाद कंपनी ने एड वापस ले लिया।

खैर रवायतों को लेकर भारतीय समाज आहत होने के किनारे पर ही खड़ा रहता है। इसके बरक्स वो किसी तरह का सच देखना नहीं चाहता। ना ट्विटर और फेसबुक पर वो वीडियो जिसमें होली के नाम पर छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ बदतमीज़ी होती है। ना वो आंकड़े जो महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा और मारपीट की तस्दीक करते हैं। सच पर धार्मिक उन्माद हमेशा ही भारी पड़ता है और इस बार भी यही हुआ।

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