भिंडरावाले का वेष धरे ‘अमृतपाल’ के ज़हरीले इरादों के पीछे आखिर कौन?

नई दिल्ली। खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह फरार है। जालंधर जिले में जब उसके काफिले को रोका गया तो वह पुलिस को चकमा देते हुए भाग निकला। लेकिन उसे पकड़ने के लिए पंजाब पुलिस का ऑपरेशन जारी है। पंजाब के कई हिस्सों से अमृतपाल के समर्थक और ‘वारिस पंजाब दे’ के लगभग 112 सदस्य पुलिस हिरासत में हैं। चार लोगों को असम के डिब्रूगढ़ जेल भेज दिया गया है।

पुलिस के मुताबिक ऑपरेशन के दौरान भारी संख्या में हथियार बरामद हुए हैं। पंजाब पुलिस ने ट्वीट कर कहा कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के दौरान राज्य भर में पुलिस और केंद्रीय बलों ने फ्लैग मार्च किया। और पंजाब में ऐहतियातन इंटरनेट की सेवाएं स्थगित कर दी गई थी।

पंजाब में अमृतपाल सिंह को लेकर राजनीति भी तेज हो गयी है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस बीच मंगलवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अमृतपाल सिंह के “भागने” पर “खुफिया विफलता” के लिए राज्य सरकार की खिंचाई की। खंडपीठ ने पंजाब के महाधिवक्ता विनोद घई से पूछा  “आपके पास 80,000 पुलिस है, उसे कैसे गिरफ्तार नहीं किया गया?”

जालंधर में रैपिड एक्शन फोर्स का फ्लैग मार्च

महाधिवक्ता विनोद घई अदालत को बता रहे थे कि ‘वारिस पंजाब दे’ प्रमुख को छोड़कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। एजी विनोद घई ने अदालत को यह भी बताया कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ एनएसए लगाया गया है।

पुलिस कार्रवाई से पंजाब में हलचल है तो विदेशों में रहने वाले खालिस्तान समर्थक उग्र हो गए हैं। लंदन में दो दिन पहले खालिस्तानियों ने भारतीय उच्चायोग पर लगे तिरंगे को उतारने का प्रयास किया तो 20 मार्च को अमेरिका के सैनफ्रांसिस्‍को शहर में खालिस्‍तानियों ने भारतीय महावाणिज्य दूतावास पर हमला कर तोड़फोड़ किया।

खालिस्‍तानियों ने पहले भारतीय महावाणिज्‍य दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया और अपने झंडे फहराए। भारतीय अधिकारियों ने इन झंडों को हटाया तो उनपर हमला कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में खालिस्तान समर्थक संगठन हिंसक रैलियां करने की योजना बना रहे हैं। अमृतपाल और उनके संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के सदस्यों के खिलाफ शनिवार को पुलिस द्वारा शुरू की गई एक बड़ी कार्रवाई के बाद यह घटनाक्रम सामने आया है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं कारवां के कार्यकारी संपादक हरतोष सिंह बल कहते हैं कि “पंजाब में इस समय जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे कौन सी शक्तियां या लोग काम कर रहे हैं, यह कहा नहीं जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि साल भर के अंदर अमृतपाल सिंह इतना लोकप्रिय कैसे हो गया? मीडिया में उसकी इतनी चर्चा कैसे शुरू हो गई। यह देखना होगा अमृतपाल जैसी शक्तियों के उभरने से किसको फायदा होगा? पंजाब का तो किसी तरह से फायदा नहीं हो रहा है।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि आप, कांग्रेस और अकाली दल को इससे फायदा नहीं होने वाला है। यदि खालिस्तान का नारा जोर पकड़ता है तो डर वश भाजपा के पक्ष में भी हिंदू मतों के धुव्रीकरण की संभावना है। क्योंकि पंजाब में चालीस प्रतिशत से अधिक हिंदू आबादी है। लेकिन इस तरह आग से खेलने में पंजाब और देश का नुकसान होगा।

कौन है अमृतपाल सिंह?

अमृतपाल सिंह की पंजाब में सक्रियता महज कुल दो सालों से भी कम है। लेकिन बहुत कम समय में ही उसने पूरे पंजाब में अपना एक आधार वर्ग तैयार कर लिया। इसके पीछे का कारण नशा और ड्रग्स का विरोध तथा अंदरखाने पंजाब को खालिस्तान बनाने के विचार को प्रसारित करना है। अमृतपाल ने पंजाब में एक बार फिर अलगाववादी खालिस्तानी विचारधारा को आगे किया और अपना वेष जरनैल सिंह भिंडरावाले की तरह बनाया। सफेद चोला और एक गहरे नीले रंग की पगड़ी पहने वह अपने सशस्त्र समर्थकों से घिरा रहता है। उसने अपनी छवि सामाजिक कार्यकर्ता, कट्टरपंथी सिख उपदेशक और खालिस्तान समर्थक की बनाई है। 

अमृतपाल सिंह खालसा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमृतपाल का जन्म 1993 में अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गांव में हुआ था। 2012 में 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करके वह दुबई में अपने चाचा की ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करने के लिए चला गया। छह महीने पहले ही वह अभिनेता से कार्यकर्ता बने दीप सिद्धू के संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख नियुक्त किया गया था। इसके बाद पंजाब के राजनेताओं के साथ ही पुलिस-प्रशासन का ध्यान उसकी तरफ गया। अमृतपाल और उनके दोस्तों का मानना है कि फरवरी, 2022 में एक कार दुर्घटना में सिद्धू की मौत राज्य की मिलीभगत से हुई थी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अमृतपाल कभी दीप सिद्धू से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिला है, लेकिन उसे लगता है कि सिद्धू के साथ ऑनलाइन बातचीत का उस पर बड़ा प्रभाव पड़ा। किसानों के आंदोलन के दौरान 26 जनवरी, 2021 पर लाल किले पर विरोध प्रदर्शन के लिए जब अन्य लोगों ने दीप सिद्धू की आलोचना की, तो अमृतपाल उसके साथ खड़े रहे। अमृतपाल ने एक सप्ताह पहले सिद्धू की मृत्यु की पहली वर्षगांठ पर दावा किया कि उन्होंने नवंबर 2021 में दिवंगत अभिनेता की सलाह पर अपने बालों को ट्रिम करना बंद कर दिया था। वह पिछले साल 25 सितंबर को आनंदपुर साहिब में एक औपचारिक सिख समारोह के बाद ‘अमृतधारी सिख’ बन गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमृतधारी सिख बनने के ठीक चार दिन बाद 29 सितंबर को जरनैल सिंह भिंडरावाले के जन्मस्थान रोडे गांव में, अमृतपाल की ‘दस्तर बंदी’ (जिम्मेदारी की स्वीकृति दिखाने के लिए पगड़ी बांधने की रस्म) देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुई। भिंडरावाले का नाम पंजाब उग्रवाद से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। अमृतपाल दुबई में दाढ़ी-मूंछ न रखने वाले ट्रांसपोर्टर से उड़ती दाढ़ी वाले अलगाववादी सिख नेता बन गए।  

अमृतपाल की ‘दस्तर बंदी’

अमृतपाल सिंह खुद को जरनैल सिंह भिंडरावाले के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। वह भिंडरावाले के पहनावे की नकल करता है। वह लंबी दाढ़ी के साथ एक पगड़ी पहनता है, पारंपरिक सिख वस्त्र और उसके साथ अन्य सिख प्रतीकों को रखता है। भिंडरावाले, खालिस्तान आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा था, जो 6 जून, 1984 को खालिस्तानी अलगाववादियों और भारतीय सेना के बीच ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारा गया था।

वह काफी समय से फेसबुक पर खालिस्तान की विचारधारा को बढ़ावा दे रहा था। उन्होंने सवाल किया कि एक सिख के लिए खालिस्तान की वकालत करना गलत क्यों है जबकि हिंदू राष्ट्र की वकालत करना दंडनीय नहीं है। अमृतपाल ने एक पंजाबी समाचार चैनल को बताया कि बरगाड़ी बेअदबी और 2015 में बेहबल कलां पुलिस की गोलीबारी ने उन्हें सिख सक्रियता की ओर आकर्षित किया।

वारिस पंजाब दे क्या है?

वारिस पंजाब दे (WPD) की स्थापना पॉलीवुड अभिनेता से कार्यकर्ता बने दीप सिद्धू द्वारा की गई थी। जो सिमरनजीत सिंह मान के समर्थक थे, जिनकी हरियाणा में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। जब वह अपनी भारतीय मूल की अमेरिकी प्रेमिका रीना राय के साथ दिल्ली से पंजाब जा रहे थे।

गणतंत्र दिवस की घटना के आठ महीने बाद सिद्धू ने चंडीगढ़ में ‘वारिस पंजाब दे’ की नींव रखी। अपने लॉन्च इवेंट के दौरान उन्होंने कहा कि संगठन “पंजाब के अधिकारों के लिए केंद्र के खिलाफ लड़ेगा और कभी भी पंजाब की संस्कृति, भाषा, सामाजिक ताने-बाने और अधिकारों पर कोई हमला होने पर आवाज उठाएगा।”

चंडीगढ़ में ‘वारिस पंजाब दे’ की नींव रखते दीप सिद्धू

अपने संगठन की स्थापना के तुरंत बाद सिद्धू ने सिमरनजीत सिंह मान की शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) को अपना समर्थन व्यक्त किया और पंजाब चुनाव से पहले उनके लिए प्रचार किया। दूसरी ओर सिद्धू की पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पांच दिन पहले 15 फरवरी, 2022 को एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सिमरनजीत सिंह मान ने सिद्धू की मौत की न्यायिक जांच की मांग की थी।

लेकिन जब अमृतपाल सिंह ने ‘वारिस पंजाब दे’ की कमान संभाली, तो दीप सिद्धू के परिवार ने खुद को अमृतपाल से दूर कर लिया, यह दावा करते हुए कि उन्हें कभी भी उनके बेटे के संगठन के नेता के रूप में नामित नहीं किया गया था।

खालिस्तानी आंदोलन क्या है?

1980 के दशक में पंजाब में अलग खालिस्तान की मांग हुई थी। खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन है जो रिपोर्टों के अनुसार खालिस्तान (खालसा की भूमि) नामक पंजाब क्षेत्र में एक संप्रभु राज्य स्थापित करना चाहता है। इसमें पूरा पंजाब (भारत और पाकिस्तान) शामिल है, जिसकी राजधानी लाहौर है और यह पुराने पंजाब के भौगोलिक क्षेत्र में स्थित होगा। जहां कभी खालसा साम्राज्य की स्थापना हुई थी।

इंदिरा गांधी के शासनकाल में पंजाब में अलग खालिस्तान की मांग बहुत तेजी से उठी थी। इसे विदेशों में रहने वाले सिखों और भारत विरोधी शक्तियों का समर्थन प्राप्त था। 1970 और 1980 के दशक में, खालिस्तान बनाने के लिए एक हिंसक अलगाववादी आंदोलन ने पंजाब को पंगु बना दिया। यह 1990 के दशक के अंत में अपने चरम पर पहुंच गया था। अलगाववादियों पर भारी पुलिस कार्रवाई, गुटीय लड़ाई और आम सिख जनता को खालिस्तान से मोहभंग ने इस मांग को कमजोर कर दिया। लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए लोगों की याद में हर साल एक बड़ा विरोध कार्यक्रम भी होता रहा है। 

स्वर्ण मंदिर से निकलते हुए जरनैल सिंह भिंडरावाले

कैसे शुरू हुआ था खालसा राज

खालसा राज का विचार बहुत ऐतिहासिक संदर्भों वाला रहा है। सिख पंथ के अंतिम और दशवें गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा राज के स्थापना की घोषणा की थी। इस घोषणा ने राजनीतिक दृष्टि ने सिख कल्पना को इस विश्वास के साथ भर दिया कि पंजाब पर शासन करने का उनका ईश्वर प्रदत्त अधिकार था। दरअसल,  तब पंजाब के लोग मुगल शासक औरंगजेब से लड़ रहे थे। 

सिख सेना ने 1710 में बंदा सिंह बहादुर के नेतृत्व में दिल्ली और लाहौर के बीच सबसे शक्तिशाली मुगल प्रशासनिक केंद्र सरहिंद पर कब्जा कर लिया और पास के मुखलिसपुर में एक राजधानी स्थापित की। उन्होंने सिक्के ढाले, एक आधिकारिक मुहर बनाई, और भगवान और गुरुओं के अधिकार का आह्वान करते हुए आदेश पत्र जारी किए। उस समय, यह विश्वास कि “खालसा शासन करेंगे” औपचारिक रूप से सिख धार्मिक प्रार्थना में जोड़ा गया था।

हालांकि बंदा सिंह के अधीन ‘खालसा राज’ अल्पकालिक था। इस अवधारणा को 19वीं शताब्दी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य (1780-1839) के रूप में महसूस किया गया था। हालांकि खालसा राज का बाद में तेजी से पतन और अंतत: अंग्रेजों से हार (1849) एक दर्दनाक अनुभव था। लेकिन इसके बावजूद  कुछ सिखों को उम्मीद है कि खालसा राज किसी न किसी रूप में वापस आएगा। 1947 में पंजाब के विभाजन के दौरान भी एक स्वतंत्र सिख राज्य की मांग हुई थी।

खालिस्तान की मांग के पीछे पंजाब की जनता का समर्थन कभी नहीं रहा। 1978-84 के बीच जो उग्रवाद राज्य में पनपा, उसके पीछे विदेश में बैठे हुए लोग थे। अब जो दस्तावेज समाने आ रहे हैं, उसमें केंद्र सरकार की अस्सी के दशक में पंजाब को अशांत करने में प्रमुख भूमिका रही। पंजाब के युवा भी कभी उग्रवाद के समर्थक नहीं रहे हैं। लेकिन पंजाब की आम आदमी पार्टी का सरकार ने जिस तरह से कार्रवाई की, उससे साफ जाहिर हैं कि उसे पंजाब के बारे में कोई समझ नहीं है।

(जनचौक के पॉलिटिकल एडिटर प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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