पंजाब BJP: बागी सुरों और गुटों में बंटी पार्टी कैसे चलाएंगे सुनील जाखड़?

Estimated read time 1 min read

राजनीति और चुनौतियों का चोली-दामन साथ है। पंजाब भाजपा के नवनियुक्त प्रधान सुनील जाखड़ बखूबी से जानते होंगे। दो दिन पहले उन्हें पार्टी की राज्य इकाई की कमान सौंपी गई तो पुराने भाजपाइयों को यह रास नहीं आया। वह सिर्फ एक साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। तब उन्होंने सबसे बड़ा इल्जाम यह लगाया था कि कांग्रेस कभी भी पंजाब में किसी हिंदू को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। जबकि दावा धर्मनिरपेक्षता का है।

लगभग एक साल पहले आलाकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से अलग कर दिया तो कांग्रेस विधायकों का समर्थन जाखड़ के साथ था। मान लिया गया था कि वह पंजाब के अगले मुख्यमंत्री होंगे लेकिन दिल्ली में अंबिका सोनी ने इस दलील के साथ सारा खेल बिगाड़ दिया कि अगर सूबे का मुख्यमंत्री कोई हिंदू बनता है तो सामाजिक ताने-बाने में तनाव पैदा हो जाएगा और इसके दूरगामी नागवार असर होंगे।

सुनील कुमार जाखड़ ने आखिरकार कांग्रेस को अलविदा कह दिया और भाजपा में शुमार हो गए। कहने वाले कहते हैं कि अंबिका सोनी की दलील किसी भी लिहाज से सही नहीं थी। जाखड़ हिंदू जाट हैं और सिख जाटों में भी उनकी बहुत अच्छी पकड़ है। कांग्रेस में दशकों तक रहे लेकिन दामन पर एक भी दाग नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल उनकी बहुत इज्जत करते थे और अपना बेटा मानते थे तथा सुखबीर को सुनील जाखड़ अपना छोटा भाई कहते हैं।

सुनील कुमार जाखड़ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ के बेटे हैं और तीन बार कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं। एक बार नेता प्रतिपक्ष। चार साल तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष। उनके दौर में गुटबंदी तो थी लेकिन मुखर बागी सुरों को शांत करना उन्हें अच्छी तरह से आता है। विरला ही कोई बड़ा कांग्रेसी होगा, जो उनका उपयुक्त सम्मान न करता होगा।

एक बार मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें मिलने का समय दिया तो दो घंटे के बाद भीतर बुलाया लेकिन जाखड़ ने किसी किस्म का कोई शिकवा जाहिर नहीं किया। पंजाब भाजपा में वह स्थिति नहीं है। वीरवार को मालूम हो गया कि ज्यादातर टकसाली भाजपा नेता उन्हें प्रधान पद दिए जाने से नाखुश हैं। और तो और बगावत का सिलसिला भी शुरू हो गया। सुनील कुमार जाखड़ के अपने विधानसभा क्षेत्र अबोहर से भाजपा विधायक रहे और उनके पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी अरुण नारंग ने कहा कि वह जाखड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाने से निराश हैं और अपने सभी पदों से इस्तीफा दे रहे हैं लेकिन क्योंकि वह भाजपा जैसी काडर वाली पार्टी के नेता हैं, इसलिए पार्टी में बने रहेंगे।

एक भरोसेमंद कद्दावर भाजपा नेता ने कहा की अरुण नारंग जैसे लोग राज्य के तमाम जिलों में हैं जो दशकों से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं और उन्होंने आपातकाल के दौरान जिस्मानी अत्याचार भी सहे। जाखड़ को प्रधान बनाते वक्त उन्हें पूछा तक नहीं गया और संभव है कि वे भी अब खामोशी से घर बैठ जाएं। सुनील कुमार जाखड़ के लिए नाराज अथवा निराश लोगों को सक्रिय करना आसान नहीं है। एक साल पहले तक वह कांग्रेस के राजनीतिक हमसफर थे और बेहद वफादार भी।

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने लोग बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे कि महज एक साल पहले कांग्रेस से दलबदल करके भाजपा में आया नेता अचानक उनका प्रधान बन जाए! बेशक जाखड़ ने यह कहते हुए कांग्रेस से किनारा किया था कि इस पार्टी में हिंदू नेताओं की अनदेखी की जाती है और उन्हें शासन-व्यवस्था में तरजीह नहीं दी जाती। ये शब्द उन्होंने कई बार अतिरिक्त भावुकता के साथ दोहराए थे।

सुनील कुमार जाखड़ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पंजाब मामलों के प्रभारी गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पंजाब मामलों के प्रभारी विजय रुपाणी के बेहद करीबी हैं। और उन्होंने ही उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनवाया है। भाजपा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि कैडर से बाहर का कोई व्यक्ति किसी प्रदेश के संगठनात्मक ढांचे का मुखिया बने। पूर्व प्रधान अश्विनी शर्मा खुद जाखड़ को अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ थे।

जो लुंज-पुंज भाजपा जाखड़ को मिली है; वह दो बार प्रधान रहे अश्विनी शर्मा की देन है। संगठन को मजबूत करने की तरफ उनका ध्यान कम था और गुटबाजी की ओर ज्यादा। नवनियुक्त प्रधान के लिए सबसे बड़ी चुनौती गुटबंदी को सिरे से खत्म करना होगी। उसके बाद नाराज टकसाली भाजपाइयों को मना कर अपने साथ जोड़ना और पुख्ता तालमेल बैठाना होगा। यह इतना आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं। जरूरत नई रणनीति बनाने की है। ऐसा नहीं है कि टकसाली भाजपाई सिर्फ जाखड़ से खफा हैं। कांग्रेस से दलबदल करके आए ज्यादातर नेताओं ने पार्टी के अहम पदों पर अपना कब्जा जमा रखा है, जिससे टकसाली भाजपाई असहज महसूस कर रहे हैं।

पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने 24 घंटे बीत जाने के बाद सुनील कुमार जाखड़ को औपचारिक बधाई दी। कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी ऐसा करके संकेत दिए कि वे सहजता से जाखड़ का साथ नहीं देंगे। भाजपा की उपाध्यक्ष मोना जयसवाल लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय दिखीं लेकिन जाखड़ को मुबारकबाद देने के लिए कोई पोस्ट अपलोड नहीं की। इतना ही नहीं, 24 घंटे बीत जाने के बाद भी भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुभाष शर्मा सहित तमाम प्रदेश महासचिवों ने जाखड़ को बधाई देने के लिए एक पोस्ट तक अपलोड नहीं की। जगजाहिर है कि पार्टी में अश्विनी शर्मा खेमा जाखड़ के प्रदेशाध्यक्ष बनने से नाखुश है।

नए प्रधान को मजबूरीवश ही सही, उन्हें साथ लेकर चलना होगा। एससी/एसटी आयोग के चेयरमैन विजय सांपला व केंद्रीय राज्य मंत्री सोम प्रकाश के बीच शुरू से ही ठनी हुई है। इन दोनों दिग्गजों को साथ लेकर चलना काफी मुश्किल व चुनौतीपूर्ण होगा। पूर्व मंत्री व प्रदेशाध्यक्ष मनोरंजन कालिया का सक्रिय साथ लेना भी आसान नहीं क्योंकि उनका मौजूदा उपाध्यक्ष राकेश राठौर के अलावा पूर्व मंत्री तीक्ष्ण सूद से 36 का आंकड़ा है। मोना जयसवाल का अपना गुट है। मीनू सेठी महिला विंग की प्रधान हैं लेकिन सिक्का सुश्री जयसवाल का चलता है।

सुनील जाखड़ के लिए पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और अकाली दल के पूर्व विधायक सरूप चंद सिंगला, जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, को एकजुट करके साथ लेना खासा मुश्किल होगा। जबकि इससे पहले दोनों प्रतिद्वंदी थे और एक- दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा करते थे। पूर्व मंत्री गुरमीत सिंह सोढ़ी अब भारतीय जनता पार्टी में हैं। जाखड़ के भाजपा में शामिल होने के बाद भी उनके बीच जबरदस्त खटास है। सुनील कुमार जाखड़ तो भाजपा की ही कई बैठकों में यह तक कह कर उठ कर बाहर आ चुके हैं कि वह गुरमीत सिंह सोढ़ी के साथ नहीं बैठ सकते। अपने इलाके में सोढ़ी का अपना जनाधार है। अब जाखड़ क्या करेंगे? पूर्व लोकसभा सांसद अविनाश राय खन्ना की लॉबी भी वस्तुतः जाखड़ के खिलाफ है। उन्हें साथ लेना भी एक बड़ी चुनौती है।

पंजाब में नैसर्गिक रिवायत रही है कि सूबे का मुख्यमंत्री मालवा का कोई राजनेता बनता है। कुछेक अपवाद अलहदा हैं। मुख्यमंत्री न बनाने की खिलाफत में सुनील कुमार जाखड़ ने कांग्रेस छोड़ी थी और भाजपा में गए थे। आज भाजपा में मालवा क्षेत्र से आए कांग्रेस के नेताओं का अच्छा-खासा दबदबा है। सुनील कुमार जाखड़ खुद मालवा से हैं तो कैप्टन अमरिंदर सिंह, राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी, केवल सिंह ढिल्लों, अरविंद खन्ना, गुरप्रीत सिंह कांगड़ व मनप्रीत सिंह बादल भी मालवा के हैं। इनमें से कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा कोई भी मन से जाखड़ के साथ नहीं है।

मालवा में पार्टी की जड़ें जमाने के लिए नए प्रदेशाध्यक्ष को इन सभी का साथ अपरिहार्य तौर पर चाहिए होगा। इस संवाददाता ने सुनील कुमार जाखड़ से फोन पर मुख्तसर बात की तो उनका कहना था कि वह भाजपा को पंजाब में एकमात्र विकल्प बनाने के लिए मजबूत करेंगे। हर धर्म, समुदाय और जाति के लोगों का सहयोग लिया जाएगा। गांवों तक पकड़ बनाई जाएगी। अकाली-भाजपा गठबंधन के पुनर्जीवन पर उनका कहना था कि वह भाजपा कार्यकर्ताओं और पंजाब के आम लोगों से इस पर प्रतिक्रिया मांगेंगे की क्या यह विचार यानी दोबारा गठबंधन का- उन्हें मंजूर है।

उन्होंने स्वीकार किया कि एक बाहरी व्यक्ति होने के नाते उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं की कुछ चिंताओं का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि स्वाभाविक रूप से पुराने भाजपा कार्यकर्ता पूछ सकते हैं कि कल तक का कांग्रेसी सुनील कैसे पंजाब भाजपा का प्रधान बन गया।

भाजपा का निर्णय मुझ पर सबको साथ लेकर चलने की और भी बड़ी जिम्मेदारी डालता है। मैं डोर टू डोर भाजपा कार्यकर्ताओं के घर जाऊंगा और उनकी आशंकाओं का समुचित समाधान करूंगा। हर सवाल का ईमानदारी से जवाब दूंगा। मुझे पंजाब के हिंदू भी उतना प्यार करते हैं जितना सिख। मैंने जाटलैंड की राजनीति कभी नहीं की, लोकलैंड की जरूर की है।

प्रसंगवश, पंजाबी के सबसे बड़े अखबार ‘अजीत’ ने सुनील जाखड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने पर लिखे विशेष संपादकीय में लिखा है कि, “आमतौर पर भाजपा में ऐसे नेता को ही बड़ा पद दिया जाता है जिसकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाली पृष्ठभूमि हो या लंबे समय तक उसने भाजपा या भाजपा के साथ संबंधित संगठनों में काम किया हो। शायद पंजाब में यह पहली बार हुआ है कि किसी दूसरी पार्टी में से आए नेता को बहुत जल्द पंजाब की भाजपा इकाई का नेतृत्व दिया गया। इसके पीछे भाजपा हाईकमान की समझ हो सकती है कि पंजाब की ऐसी स्थितियों में पार्टी को मजबूत करने और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल को 2024 के चुनाव में टक्कर देने के लिए सुनील कुमार जाखड़ बेहतर नेता साबित हो सकते हैं। वह भाजपा में दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को भी साथ लेकर चल सकेंगे और कांग्रेस तथा दूसरी पार्टियों के अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी पार्टी के साथ जोड़ सकते हैं।”

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments