देश को और कितना विकास चाहिए? उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से आ रही हैं भयावह तस्वीरें

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उत्तराखंड के सीमावर्ती जिले चमोली के मोली-जुम्मा गांव के पास भीषण वर्षा के कारण बीआरओ द्वारा निर्मित सीमान्त गांव को जोड़ने वाला पुल बह गया है। इसके कारण द्रोणागिरी, जेलम, कागा, गरपक, मलारी, कोषा, कैलाशपुर, फरक्या, बम्पा, गमसाली सहित नीती गांवों का शेष दुनिया से संपर्क टूट गया है। एक अन्य घटना में उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक दिल-दहला देने वाला हादसा देखने को मिला है। गंगोत्री हाईवे पर पहाड़ से बोल्डर गिरने से मलबे में यात्री और वाहन दब गए। हादसे में 4 लोगों की मौत और 6 लोगों के घायल होने की खबर है।

दिल्ली स्थित पत्रकार और पर्यावरण कार्यकर्ता प्रेम पिरम ने घटना का वीडियो ट्विटर पर जारी किया है। उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री की ओर जाते राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुआ यह हादसा दिखाता है कि इन वाहनों के भीतर मारे गये यात्रियों की क्या स्थिति रही होगी। आप खुद देखकर अंदाजा लगायें कि यह राष्ट्रीय राजमार्ग आपको कहां से नजर आ रहा है?

इसके साथ ही खबर है कि उत्तराखंड में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुलाबकोटी के पास मलबा आने से सड़क अवरुद्ध है। बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग- 58 पर श्यामपुर के पास सड़क के बीच भारी बारिश के कारण विशालकाय पेड़ गिर गया।

भारतीय मौसम विभाग ने अगले 48 घंटों के लिए भी उत्तराखंड में भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। उत्तरकाशी सहित कुमाऊं मंडल के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। भारी बारिश के कारण भागीरथी का जलस्तर भी अपने उफान पर है।

तस्वीरें गंगोत्री से सामने आ रही है बारिश और बाढ़ से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है। गाड़ियां खिलौने की तरह पानी में बहती हुई नजर आ रहीं हैं।

हिमाचल प्रदेश से भारी तबाही की खबरें आ रही हैं। भू-स्खलन किस स्तर पर हुआ है कि समूचा पहाड़ ही पेड़-पौधों सहित शेष हिस्से से अपनी पकड़ खोकर अपना अस्तित्व खो रहा है।

हिमाचल प्रदेश के बारे में मौसम विभाग ने अगले 24 घंटे तक भारी बारिश की आशंका व्यक्त की है। शिमला, कुल्लू, सिरमौर, मंडी, किन्नौर, लाहौल और सोलन जिले के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है। मंडी, किन्नौर और लाहौल-स्पीती में अचानक से फ़्लैश फ्लड की आशंका है, जिसमें भारी नुकसान की संभावना है। पिछले वर्ष विधानसभा में भाजपा सरकार में पूर्व राजस्व मंत्री महेंद्र सिंह ने बादल फटने की घटनाओं की संख्या पर सदन को जानकारी दी थी कि 3 वर्ष में हिमाचल प्रदेश में कुल 29 घटनाएं दर्ज की गई थीं।

दो वर्ष पहले भी जब हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही थीं तो इस बारे में विशेषज्ञों ने इसकी जो वजह बताई थी, उन पर काम करने के बजाय उसके उलट काम और भी तेजी से राज्य और केंद्र सरकार द्वारा बदस्तूर गति से जारी है। विशेषज्ञों ने बताया था कि चूंकि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ हिमालयी श्रृंखला का हिस्सा हैं जो प्राकृतिक रूप में बेहद युवा एवं नाजुक हैं, इसलिए चट्टान में दरारें और फ्रैक्चर आगे और भी चौड़े हो सकते हैं और चट्टानों के गिरने या ढलान क्षेत्र को निर्मित कर सकते हैं।

यह एक ऐसी घटना है जिसमें एक बरसात या भूकंप के प्रभाव के चलते ढलान अचानक से भरभराकर ढह सकता है। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ इंसानी हस्तक्षेप ने स्थिति को और भी खराब बना दिया है। उदाहरण के लिए हिमालयी क्षेत्रों में जल विद्युत परियोजनाओं के विकास-कार्य चल रहे हों या सुरंगों का निर्माण हो या सड़कों के निर्माण में अंधाधुंध ब्लास्टिंग, मलबे को नदी में गिराने और दैत्याकार मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग।

दो वर्ष पहले जुलाई माह में लाहौल-स्पीति जैसे ठंडे रेगिस्तानी जिले में भीषण बारिश के कारण सात लोगों की मौत हो गई थी। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, जिले के केलांग और उदयपुर उपखंड में बादल फटने के बाद अचानक बाढ़ की 12 घटनायें देखने को मिली थीं, जिसमें टोजिंग नाले का प्रभाव बेहद विनाशकारी था। इस आपदा से दो दिन पहले ही किन्नौर जिले में भूस्खलन के कारण चट्टानों के खिसकने से वाहन में सवार 9 लोगों की मौत हो गई थी। इसी प्रकार कांगड़ा जिले में बड़े पैमाने पर भूस्खलन में 10 लोगों की जान चली गई थी। सिरमौर भी बड़े पैमाने पर भूस्खलन का गवाह बना था, जिसके भयावह वीडियो उन दिनों आम चर्चा में बने हुए थे।

लेकिन 2 वर्ष बाद भी हम उससे भी बड़े पैमाने पर बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं को होते देख रहे हैं। इससे अंदाजा लगता है कि इस बार फ़्लैश फ्लड ने नया रिकॉर्ड बनाया है।

पहाड़ी राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं आम बात क्यों हैं, इस विषय पर उत्तराखंड में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के वाईपी सुंद्रियाल का साफ़ कहना था कि उच्च हिमालयी क्षेत्र जलवायु और टेक्टोनिक रूप से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र हैं। यह इतना संवेदनशील क्षेत्र है कि सबसे पहले हमें मेगा हाइड्रो-परियोजनाओं के निर्माण के काम को रोक देना चाहिए या उनकी उत्पादन क्षमता में भारी कटौती करनी चाहिए।

इसके अलावा, जो भी सड़कें इन क्षेत्रों में निर्मित की जायें, उन्हें सभी वैज्ञानिक तकनीकों को उपयोग में लाकर ही किया जाना चाहिए। मौजूदा दौर में बगैर ढलान स्थिरता के पहलुओं, एवं बेहतर गुणवत्ता के लिए रिटेनिंग वॉल और रॉक बोल्टिंग जैसे उचित उपायों को अमल में लाये बिना ही सड़कें निर्मित की जा रही हैं या उनका चौड़ीकरण का काम अबाध गति से किया जा रहा है। इन उपायों को अमल में लाने से भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कुछ हद तक रोका जा सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग पर आईपीसीसी की ओर से भारत के बारे में टिप्पणी बेहद चिंतनीय है। लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाने के बजाय केंद्र सरकार मॉनसून सत्र में आदिवासी क्षेत्रों के वनों में खनन के लिए वन कानून में आवश्यक बदलाव करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाने जा रही है। तापमान में वृद्धि भारत के लिए विशेष रूप से बेहद चिंतनीय है। समुद्री तट के पास रहने वाले करोड़ों लोगों पर ही इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ रहा है, बल्कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने से हिमनद के विखंडन से प्रलयंकारी बाढ़ से होने वाले विनाश की बानगी से उत्तराखंड परिचित है।

ये तस्वीरें बताती हैं कि विकास के नाम पर वर्तमान सरकारों ने किस प्रकार हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर माइनिंग, ब्लास्टिंग और पहाड़ों में सड़क, पन-बिजली परियोजनाओं और यहां तक कि नदियों की प्राकृतिक धारा को मोड़कर रिवरफ्रंट जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का हिस्सा बना डाला है। इसका उद्देश्य एक तरफ यहां के स्थानीय निवासियों को सरकार की उपलब्धियों से चमत्कृत करना है, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे चुनिंदा विकास के मॉडल के जरिये साबित करना है कि जो हम कर रहे हैं, वह सबसे बेहतरीन है। देश का नाम हो रहा है, देशी-विदेशी लोगों के सामने देश की छवि निखरेगी। कुल मिलाकर यह विकास जहां कुछ क्षेत्रों में चकाचौंध लाकर देश के व्यापक हिस्से में भूख, कुपोषण और गरीबी की तस्वीर को दबाने ढकने के काम आता है।

बादल फटने, फ़्लैश फ्लड की घटनाएं देश के हिमालयी क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही हैं। इसे बारिश का चरम रूप कहा जा सकता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल जब अपने साथ भारी नमी या पानी लेकर चलते हैं, और उनकी राह में कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है तो वे अचानक से फट पड़ते हैं। जो बारिश अगले कई घंटों में एक बड़े इलाके में होनी चाहिए थी, वह अचानक से एक सीमित क्षेत्र में कई लाख लीटर पानी के छोड़े जाने से फ़्लैश फ्लड के रूप में घटित होने लगती है। एक घंटे में 100 मिलीमीटर या अधिक पानी का गिरना बादल फटने के रूप में सामने आता है। गर्म हवा के संपर्क में आने पर भी बादल फटने की संभावना बनती है। पर्वतीय क्षेत्रों में शहरीकरण, हरित क्षेत्रों में कमी, पेड़ों की कटाई, खेती के लिए जंगलों का सफाया और बादलों के आपस में टकराने से भी बादल फटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

हिमाचल प्रदेश का एक वीडियो सोशल मीडिया पर बेहद वायरल हो रहा है। इसमें साफ देखा जा सकता है कि इस पर्वतीय शहर के बीच सड़क पर पास के पहाड़ के ध्वस्त होने से गाद, लकड़ी और कीचड़ का विशालकाय रेला बड़ी तेजी से बस्ती में प्रवेश कर रहा है। सैकड़ों टन मलबा अपने साथ समेटे यह रेला पल भर में ही एक विशाल पेड़ और एक मकान को अपने साथ बहा ले जाता है। वीडियो बनाने वाले लोग चीख-चिल्ला रहे हैं, क्योंकि इसका झटका उनके मकान को भी क्षतिग्रस्त कर सकता था।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में कहा है, “भीषण बारिश और भूस्खलन के कारण हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में लोगों की मृत्यु का समाचार अत्यंत दुखद है। सभी शोक संतप्त परिजनों को मैं गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं और घायलों के जल्दी स्वस्थ होने की आशा करता हूं। सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं से निवेदन है कि राहत कार्यों में वो प्रशासन की सहायता करें। इस प्राकृतिक आपदा की कठिन चुनौती का हम सभी को मिल कर सामना करना है।”

हिमाचल, उत्तराखंड और पंजाब में उफनती नदी और नालों में कारों को बहते देखा जा रहा था, लेकिन सोमवार को हिमाचल में कुल्लू जिले में जब एक समूचा ट्रक बहाव में हिचकोले खाते तैरता देखा गया तो सोशल मीडिया पर सक्रिय देश को हिमाचल प्रदेश की भीषण विभीषिका का अंदाजा लग रहा है। 

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड सहित पंजाब में अगले 2-3 दिन राहत की कोई गुंजाइश नहीं है। दरकते पहाड़, राष्ट्रीय राजमार्गों का मलबे के ढेर में तब्दील होते जाना, बादल फटने और फ़्लैश फ्लड की घटनाएं अब पर्वतीय क्षेत्रों में मॉनसून के महीनों तक सीमित नहीं हैं। 2 वर्ष पहले अक्टूबर माह में उत्तराखंड में बादल फटने और अचानक बाढ़ की घटना में कई लोगों की जान चली गई और बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान देखने को मिला था।

ऐसे में सवाल उठता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग, ऑल वेदर रोड, जल विद्युत परियोजनाओं, ऋषिकेश-कर्ण प्रयाग रेल परियोजना सब बदस्तूर जारी ही नहीं हैं, बल्कि पीएम मोदी बद्रीनाथ के लिए विशेष रिवर-फ्रंट परियोजना को उतने ही व्यक्तिगत रुचि के साथ अपने राडार पर रखे हुए हैं, जितना महत्व उनके लिए नया संसद भवन या राम-मंदिर निर्माण कार्य है। हजारों टन कंक्रीट और स्टील से साबरमती रिवर-फ्रंट या काशी-हरिद्वार की तरह भव्य आरती स्थल में तब्दील करने की महत्वाकांक्षा खुद उस क्षेत्र के लिए कितनी विनाशकारी है, इस बारे में देश का ध्यान क्यों नहीं जा रहा, यह अवश्य शोध का विषय है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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