अभिजीत गंगोपाध्याय: न्यायपालिका में भी दीमक लगने लगी

Estimated read time 1 min read

पहले से ही दल-बदल चुनावी लोकतंत्र को पूरी तरह से नष्ट करने पर आमादा है। इसी बीच न्याय के क्षेत्र में एक ऐसी घटना हुई है जिसने उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जज ने एक ऐसा कार्य किया है जो पूरी तरह अक्षम्य है। जज के पद पर रहते हुए वे एक राजनीतक पार्टी के लगातार संपर्क में रहे। ये जज हैं अभिजीत गंगोपाध्याय।

हाईकोर्ट से इस्तीफा देते हुये उन्होंने यह स्वीकार किया कि पिछले एक सप्ताह वे लगातार भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं। इस्तीफा देते हुये उन्होंने घोषणा की कि वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं और पार्टी में रहेंगे भले ही उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने के लिये टिकट मिले या नहीं। इस्तीफा देते हुये उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भरपूर तारीफ की और कहा कि वे एक अच्छे इंसान हैं और उनके नेतृत्व में देश लगातार प्रगति कर रहा है।

न्यायपालिका के सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पूर्ण रूप से अलग-थलग रहे। उनका सामाजिक दायरा अदालत से घर और घर से अदालत तक सीमित रहना चाहिये। गंगोपाध्याय का व्यवहार इसके ठीक विपरीत रहा। पिछले कुछ दिनों से वे एक राजनीतिज्ञ की तरह बात कर रहे थे।

अभिजीत से पहले भी अनेक जजों ने त्यागपत्र देने के बाद राजनीति में प्रवेश किया है। वर्षों पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुब्बाराव ने इस्तीफा देकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार की थी। इसके अतिरिक्त भी अनेक न्यायाधीश राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। परंतु वे जब तक न्यायाधीश के पद पर थे तब तक उन्होंने यह अहसास नहीं होने दिया कि वे राजनीति में प्रवेश करने वाले हैं।

यह काम सिर्फ अभिजीत गंगोपाध्याय ने किया है। उनके अनुसार वे राजनीति में इसलिए शामिल हो रहे हैं क्योंकि ममता बेनर्जी के शासन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ममता का इतना आतंक है कि लोग भ्रष्टाचार के मामले लेकर अदालत नहीं आ रहे हैं। इसलिये मैंने दूसरा रास्ता अपनाया है।

इसके बावजूद न्यायालयीन क्षेत्र के लोग अभिजीत द्वारा उठाये गये कदम को उचित नहीं मान रहे हैं। समस्या कुछ भी हो जजों को उसका हल कानून के रास्ते से निकालना चाहिये। अनेक पूर्व जजों और वरिष्ठ वकीलों ने अभिजीत के कदम को न्यायालयीन परंपरा के विरूद्ध माना है। मेरी भी मान्यता है कि यदि जज पद पर रहते हुये राजनीति करने लगेंगे तो यह प्रजातंत्र को कमजोर करेगा। प्रजातंत्र में पक्षपात स्वाभाविक है परंतु न्यायपालिका तो दूध का दूध और पानी का पानी करती है। यदि जज पक्षपाती होने लगेंगे तो यह नागरिकों के लिये बहुत खतरनाक होगा।

इस मामले में राजनीतिक पार्टियों का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण रहा। भाजपा खुलेआम अभिजीत का समर्थन कर रही है। भाजपा ने यह भी स्वीकार किया कि अभिजीत उसके संपर्क में थे। बंगाल भाजपा के अध्यक्ष ने तो यहाँ तक कह डाला कि यदि अभिजीत के समान लोग राजनीति में आते हैं तो यह देश के हित में रहेगा। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने अभिजीत को भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने वाला योद्धा बताया। यदि वे कांग्रेस में शामिल होते हैं तो उनका स्वागत होगा। परंतु यदि वे भाजपा में जाते हैं तो सिद्धांतः उनका समर्थन नहीं कर पायेंगे। एक समय चौधरी ने यह भी कह डाला कि यदि अभिजीत जैसे व्यक्ति बंगाल के मुख्यमंत्री बने तो वे इसका स्वागत करेंगे।

(एल.एस. हरदेनिया वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author