टीवी 18 के विज्ञापन ने उजागर कर दी सीजेआई की मंशा

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नई दिल्ली। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से पीएम मोदी की निजी मुलाकात का नतीजा अब सामने आने लगा है। इस मुलाकात पर बहुत सारा कुछ कहा जा चुका है। यह संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ थी। यह शक्तियों के पृथक्करण के लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत का खुला मजाक था। इसने पूरे न्यायिक तंत्र को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। अभी लोगों के बीच इसके भविष्य में आने वाले नतीजों की कयासबाजी ही चल रही थी कि तभी इंडियन एक्सप्रेस में आए एक विज्ञापन ने इस पहल के आगे बढ़ने वाली दिशा की एक झलक दिखा दी। 

विज्ञापन टीवी 18 न्यूज़ नेटवर्क की तरफ से दिया गया है। जिसका मालिकाना हक रिलायंस वाले मुकेश अंबानी के पास है। महिलाओं के सशक्तिकरण के मसले पर 16 सितंबर यानी कल से आयोजित होने वाले एक प्रोग्राम के बारे में है। शी शक्ति के नाम से होने वाले इस कार्यक्रम के विज्ञापन में ढेर सारी फोटो दी गयी हैं। लेकिन उसमें दिखाए गए चेहरों और उनकी भूमिका तथा प्रोटोकॉल को लेकर कई तरह के सवाल दिमाग में उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ की फोटो सबसे ऊपर दी गयी है। यह फोटो सबसे बड़ी है। लेकिन उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि फोटो पर केवल उनका नाम लिखा गया है। उनका पद नहीं। और फिर उसमें दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण फोटो है वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ का है। उसका आकार उप राष्ट्रपति के फोटो के मुकाबले न केवल बहुत छोटा है। बल्कि उसके समानांतर भी वह कहीं स्थान नहीं हासिल कर सका है।

कार्यक्रम में भाग लेने वाली महिलाओं की पहली कतार के आखिरी में उनसे थोड़ी सी बड़ी है उसकी साइज। और यहां भी न केवल सीजेआई के नाम से खिलवाड़ किया गया है बल्कि उप राष्ट्रपति की तरह यहां भी उनका पद नहीं दिया गया है। यहां तक कि नाम के पहले चीफ जस्टिस की जगह डॉ. जस्टिस लिखा गया है। यह किसी की भी समझ से बिल्कुल परे है कि आखिर इसका क्या मतलब। वह डॉ. भी हैं यानि उन्होंने पीएचडी कर रखी है और जस्टिस भी हैं। लेकिन चीफ जस्टिस नहीं हैं। क्या विज्ञापन यह कहना चाह रहा है? या फिर डॉक्टर हैं और उसको दिखाया जाना चीफ जस्टिस दिखाए जाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था? 

अहम बात यह है कि इन दो पुरुषों के अलावा बाकी जिन लोगों के नाम और तस्वीरें दी गयी हैं सभी महिलाएं हैं। और उन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनायी है। कुछ तो राजनीति से हैं। कुछ बॉलीवुड की अभिनेत्रियां हैं। रिटायर्ड जज भी हैं और गीत-संगीत के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाने वाली महिलाएं इस लिस्ट का हिस्सा हैं। यहां तक कि सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट, कैप्टन और मेजर रैंक की महिलाएं भी इस सूची में शामिल हैं। 

इन सबसे ज्यादा जो दिलचस्प बात है वह यह कि विज्ञापन में नीचे जिन महिलाओं के फोटो दिए गए हैं उनमें से शायद ही कोई ऐसा नाम हो जो बीजेपी या फिर आरएसएस की विचारधारा और उसकी राजनीति का विरोधी हो। अपने-अपने तरीके से ज्यादातर ने कभी खुला तो कभी छुपकर उसकी राजनीति का समर्थन किया है।

अब कुछ नामों पर चर्चा कर लिया जाए फिर आगे और दूसरे आधारों पर इसका विश्लेषण किया जाएगा। बांसुरी स्वराज और किरन खेर तो सीधे-सीधे बीजेपी से जुड़ी हैं। पहली सांसद हैं और दूसरी पूर्व सांसद हैं। गायिका ऊषा उत्थुप और भूमि पेडनेकर भी अपने तरीके से दक्षिण टोले के ही मानी जाती हैं। भोजपुरी गायिका मैथिली ठाकुर तो बाकायदा प्रचारक रही हैं बीजेपी की। बाकी ढेर सारे नाम हैं जो ज्यादा चर्चित नहीं हैं। लिहाजा उनके विचारों और कामों से भी बहुत ज्यादा आम लोगों का परिचय नहीं है। लेकिन सूची में कोई ऐसा नाम शामिल नहीं है जिसे बीजेपी का विरोधी कहा जा सके। 

अब मूल बात पर आते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि किसी भी चैनल को स्वतंत्र रूप से अपना कार्यक्रम करने का अधिकार है। वह क्या विषय रखता है उसमें किसको बुलाता है और उसे कैसे संपन्न कराता है। यह उसका मसला होता है। हालांकि अगर मीडिया संस्थान है तो उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह कुछ पत्रकारीय नैतिकताओं का ज़रूर पालन करेगा। लेकिन अगर यह मीडिया गोदी मीडिया का हिस्सा है और वह भी बीजेपी के सहोदर की भूमिका में खड़े मुकेश अंबानी का चैनल है। तो भला इस तरह की किसी नैतिकता और निष्पक्षता की उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?

लेकिन यहां मामला जो चिंतनीय है और सबसे ज्यादा विचार की मांग करता है वह है उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ और उससे भी ज्यादा सीजेआई चंद्रचूड़ की भागीदारी का। ये लोग कोई ऐसा फैसला नहीं ले सकते जो किसी भी रूप में किसी तरह से पक्षपाती होने का गंध देता हो। एकबारगी हम उप-राष्ट्रपति को छोड़ भी सकते हैं। क्योंकि उन्होंने अपने पद की गरिमा को पहले से ही ताक पर रख दिया है। और राज्य सभा की कार्यवाही के संचालन में वह पक्षपात शिरोमणि का खिताब हासिल कर चुके हैं। यहां तक कि विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। 

लेकिन सवाल तो सीजेआई पर उठेगा। आखिर वह इस तरह के किसी ऐसे कार्यक्रम में कैसे हिस्सा ले सकते हैं जिसमें शामिल होने वाले लोग किसी एक विचारधारा से जुड़े हैं। और उससे भी ज्यादा वह किस हैसियत में शामिल हो रहे हैं यह सबसे बड़ा सवाल है। अगर उनके पदों का नाम नहीं लिखा गया है तो क्या माना जाए कि वह व्यक्तिगत हैसियत से उसमें हिस्सा ले रहे हैं। और अपने तरीके से जिस तरह से दूसरे लोग भी कहीं न कहीं दूर से ही सही बीजेपी के दायरे का हिस्सा हैं। उनकी भी भूमिका कमोबेश वही है। अगर हमने जैसा कि ऊपर बताया सारे लोग एक स्तर तक बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं।

उसमें यह बात लिस्ट में शामिल आखिरी महिला गीत से लेकर सबसे ऊपर छपी उप राष्ट्रपति की तस्वीर तक का सच है। तो क्या माना जाए कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ भी उसी कतार में शामिल हो गए हैं? और अगर यह बात सच है तो फिर इसे प्रधानमंत्री के साथ गणेश पूजा के सिलसिले में हुई उनकी मुलाकात की यह अगली कड़ी है। जिसमें वह न केवल अपना कानूनी नैतिक धर्म छोड़ चुके हैं बल्कि अब वह बीजेपी की राजनीतिक कार्यवाहियों का भी हिस्सा बनने जा रहे हैं। जो बेहद ही आपत्तिजनक है। एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में होना तो यह चाहिए था कि राज्य की सभी संस्थाएं निरपेक्ष व्यवहार करतीं। लेकिन यहां इन पर निगरानी रखने वाली न्याय की आखिरी आंख भी बंद होने जा रही है।

और इन सबसे ज्यादा आपत्तिजनक जो बात है वह यह कि कहने को कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण को लेकर है। लेकिन कार्यक्रम का पूरा फार्मेट न केवल महिला विरोधी है बल्कि पुरुष वर्चस्व को स्थापित करने का काम करता है। इस कार्यक्रम के फार्मेट से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि महिला सशक्तिकरण तो होना चाहिए लेकिन वह पुरुषों के नेतृत्व में होगा। यानि पितृसत्तात्मक सत्ता अक्षुण्ण रहेगी। उस पर किसी भी तरह की आंच नहीं आएगी। बीजेपी-आरएसएस का महिलाओं को लेकर यही असली विचार भी हैं। अब अगर सीजेआई इस पूरे विचार से सहमत हैं तो फिर उससे बुरा इस देश के लिए कुछ नहीं हो सकता है।

एक बात यहां कही जा सकती है कि शायद उनको आयोजकों के उद्देश्य के बारे में पता नहीं हो और उन्होंने अपनी सहमति दे दी हो। लेकिन सीजेआई के पद पर बैठे शख्स से यह उम्मीद की जाती है कि उसके लिए किसी भी कार्यक्रम का आतिथ्य स्वीकार करने से पहले उसकी पूरी प्रकृति और उद्देश्य को जान लेना जरूरी है। क्योंकि ऐसा नहीं होने पर इस्तेमाल हो जाने की आशंका रहती है। अब यहां सीजेआई इस्तेमाल हो रहे हैं या फिर उन्होंने सब कुछ जानते हुए निमंत्रण स्वीकार किया है।

लेकिन दोनों ही स्थितियों में यह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। और इस कार्यक्रम में भागीदारी के जरिये गणेशोत्सव के मौके पर दोनों की मुलाकात के पीछे छुपे रहस्य का भी पर्दाफाश हो जाता है। और इस बात का भी जवाब मिल जाता है कि पीएम निमंत्रण पर गए थे या फिर बिना बुलाए यह भले ही न पता हो। लेकिन यह आयोजन यह साबित करता है कि पीएम के साथ सीजेआई की भी सहमति थी।

(जनचौक डेस्क की न्यूज।)

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