आखिर किस मजबूरी में भाजपा को उम्र का बंधन खत्म करना पड़ा?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की ओर से भले ही अबकी बार 400 पार का दावा किया जा रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि सामान्य बहुमत हासिल करने को लेकर भी उनका आत्मविश्वास बुरी तरह डिगा हुआ है। यही वजह है कि जहां एक तरफ केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी पार्टियों को डराया-दबाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर उम्मीदवारों के चयन में भी उसे कई तरह के समझौते करना पड़ रहे हैं। इस सिलसिले में दूसरी पार्टी से दलबदल कर आए नेताओं को धड़ल्ले से टिकट दिए जा रहे हैं। यही नहीं, उसने चुनाव लड़ने के लिए तय की गई उम्र की अघोषित सीमा को भी समाप्त कर दिया है।

कुछ समय पहले तक 75 साल की उम्र सीमा का बड़ी चर्चा होती थी। एक दशक पहले भाजपा में अटल-आडवाणी युग की समाप्ति और मोदी-शाह युग शुरू होने पर उम्र का यह बंधन लागू किया गया था। भाजपा ने अनेक बड़े नेताओं को इस आधार पर रिटायर कर दिया या चुनावों में टिकट नहीं दिया और उनमें कुछ नेताओं को राज्यपाल बना कर उनका राजनीतिक पुनर्वास किया गया। जिन दिग्गजों को इस आयु सीमा के आधार पिछले लोकसभा चुनाव में घर बैठा दिया गया था उनमें डॉ. मुरली मनोहर जोशी और पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन जैसे नेता भी शामिल थे।

भाजपा के इस अघोषित नियम की परीक्षा इस लोकसभा चुनाव में होनी थी क्योंकि कई ऐसे नेताओं को चुनाव लड़ना था, जिनकी उम्र 75 साल हो गई है या होने वाली है। कई ऐसे नेता भी हैं, जिनकी उम्र अगले एक या दो साल में 75 को पार करने वाली है। इसलिए यह देखने वाली बात थी कि भाजपा इस बार चुनाव में ऐसे नेताओं को टिकट देती है या नहीं।

भाजपा ने ऐसे ज्यादातर नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया है और इतना ही नहीं बाहर से लाकर भी 75 पार या उसके आसपास की उम्र के नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। बाहर से लाकर उम्मीदवार बनाए गए नेताओं में एक मिसाल हरियाणा की हिसार सीट से चुनाव लड़ रहे रणजीत सिंह चौटाला हैं। वे चौधरी देवीलाल के सबसे छोटे बेटे हैं और उनकी उम्र 78 साल है। वे मौजूदा विधानसभा में निर्दलीय विधायक थे और भाजपा की सरकार को समर्थन दे रहे थे। अब वे भाजपा में शामिल होकर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।

बाहर से आकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे नेताओं में एक बड़ा नाम पटियाला की पूर्व महारानी परनीत कौर का है। उनकी उम्र 79 साल है। वे कांग्रेस की सांसद थीं लेकिन चुनाव की घोषण से ठीक पहले वे भाजपा में शामिल हो गईं। उनके पति कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। परनीत कौर जिस दिन भाजपा में शामिल हुईं उसी दिन पार्टी ने उनको पटियाला सीट से उम्मीदवार बना दिया।

अगर भाजपा के अपने नेताओं की बात करें तो पार्टी ने बिहार में पूर्वी चंपारण सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह को फिर से उम्मीदवार बना दिया है। वे लगातार 10वीं बार उसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी उम्र इस साल एक सितंबर को 75 साल की हो जाएगी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल सितंबर में 74 साल के होंगे और अगले साल सितंबर में 75 साल की सीमा तक पहुंच जाएंगे। इसी लोकसभा के कार्यकाल के बीच उम्र के 73 वें वर्ष में चल रहे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस बार भी चुनाव मैदान में हैं और अगली लोकसभा के दौरान 75 साल की आयु सीमा पार करेंगे।

हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए मनोहर लाल खट्टर भी 72 साल से ऊपर के हैं और लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वे भी अगली लोकसभा के दौरान ही 75 पार हो जाएंगे। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और आरके सिंह भी 72 साल के हैं और दोनों को फिर लोकसभा का टिकट मिला है। इन नेताओं के अलावा भी भाजपा के कई उम्मीदवार हैं जो 75 वर्ष की आयु सीमा के करीब हैं। जाहिर है भाजपा के लिए उम्र की सीमा का अब कोई मतलब नहीं है।

एक समय में कुछ खास लोगों को पार्टी के टिकट से वंचित करने के लिए आयु सीमा को अघोषित रूप से लागू किया गया था। गौरतलब है कि पांच महीने पहले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कई नेता 75 साल से ज्यादा उम्र के थे और लड़े थे। उससे पहले गुजरात में भी 75 साल से ज्यादा की उम्र के भाजपा नेता चुनाव लड़े थे। दो साल पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य सत्यनारायण जटिया ने कहा भी था कि पार्टी में ऐसा कोई नियम नहीं है। सवाल है कि अगर नियम नहीं है तो मध्य प्रदेश में बाबूलाल गौर से लेकर झारखंड में रामटहल चौधरी तक को क्यों इस नियम का हवाला देकर घर बैठा दिया गया था?

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं औऱ दिल्ली में रहते हैं।)

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