दुनिया अभी तक कोरोना वायरस के SARS-CoV-2 वैरिएंट के प्रकोप से ठीक से संभल भी नहीं पाई है कि इस वायरस के नये वैरिएंट ओमिक्रॉन (B.1.1.529) ने संसार भर में सनसनी फैला दी है। दक्षिण अफ्रीका में मिले इस वैरिएंट को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चिंता जताई है। इटली के अनुसंधानकर्ताओं ने रोम के बेम्बिनो गेसो अस्पताल में की गई रिसर्च के बाद हाल ही में कोविड-19 वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहली तस्वीर भी जारी कर दी है। इस तस्वीर से साफ होता है कि ओमिक्रॉन का म्यूटेशन रेट डेल्टा वैरिएंट से कहीं ज्यादा है।
इटली के शोधकर्ताओं द्वारा जारी इमेज से पता चलता है कि इस नए कोरोना वायरस वैरिएंट में 43 स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन मौजूद हैं। जबकि डेल्टा वैरिएंट में केवल 18 स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन थे। वैज्ञानिक वैरिएंट में हुए म्यूटेशन को लेकर ही ज्यादा चिंतित हैं।
शायद इसी से चिंतित विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ओमिक्रोन (B.1.1.529) को सम्पूर्ण विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा घोषित करते हुए दुनिया को नई चुनौतियों का सामना करने की चेतावनी दे कर एक बार फिर दहला दिया है।
डब्लयूएचओ ने एक बयान जारी कर कहा था कि इस वैरिएंट के बहुत सारे म्यूटेशन हो रहे हैं और शुरुआती संकेत हैं कि इससे दोबारा संक्रमित होने का खतरा है।
इस सम्बंध में एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया था कि वायरस के स्पाइक प्रोटीन वाले हिस्से में म्यूटेशन होने से यह वैरिएंट इम्युनिटी से बचने की क्षमता विकसित कर सकता है, यानी हो सकता है कि वैक्सीन या दूसरी वजहों से पैदा हुई शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का उस वायरस पर असर न हो।
इस तरह दुनिया भर से मिलने वाली खबरों में कोरोना का यह नया रूप कोरोना से ज्यादा खतरनाक बताया जा रहा है। जब COVID-19 के पहले वैरिएंट SARS-CoV-2 ने पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी मौत का तांडव दिखा कर अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया तो ओमिक्रोन कितनी भयानक तबाही ला सकता है, यह कल्पना ही डरावनी है।
इसमें चिंता की बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बावजूद लोग सुरक्षित नहीं रहे तो इससे स्पष्ट है कि वैक्सीन इस वायरस को खत्म करने में सक्षम नहीं है। इसकी वैक्सीन के विफल होने से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की है और तमाम देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की पाबंदियां एक बार फिर लगानी शुरू कर दी हैं।
अमेरिका, रूस, हॉन्गकॉन्ग, जापान, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, योरोपीय संघ, ईरान आदि कई देशों ने दक्षिण अफ्रीकी देशों से आने वाले यात्रियों पर पाबंदी लगा दी है क्योंकि कोरोना का यह खतरनाक वैरिएंट सबसे पहले वहीं से पकड़ में आया है।
दरअसल दुनिया आज एक बहुत बड़े जैविक त्रासदी के दौर से गुज़र रही है। जिसमें एक ओर आधी से ज्यादा दुनिया इस महामारी के कारण आर्थिक रूप से तबाह हो गई है तो दूसरी तरफ संसार भर में इसने मौत की विभीषिका फैला कर लोगों के सामने जीवन-मरण का संकट पैदा कर दिया है। और, दुर्भाग्यवश इस संकट से कब और कैसे छुटकारा मिलेगा यह किसी को नहीं मालूम।
दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि यह संकट प्राकृतिक नहीं बल्कि पूरी तरह से मानव निर्मित है। कोरोना के शुरुआती दिनों में जब कई देशों से इसके विनाशकारी परिणाम मिलने लगे थे तभी आशंका जताई गई थी कि कोरोना प्राकृतिक रोग नहीं बल्कि जैविक हथियारों का परीक्षण है।
साल 2019 में कोरोना की शुरुआत चीन से हुई। वहां चमगादड़ में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले वायरस से वुहान स्थित मिलिट्री लैब में SARS-CoV-2 को विकसित करने के समाचार मिले। तब अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को इस मानवता विरोधी साजिश की जांच करनी चाहिए थी। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जांच की लेकिन चीन ने उसमें अपेक्षित सहयोग नहीं दिया, बल्कि अमेरिका व अन्य देशों पर अपनी छवि बिगाड़ने का आरोप लगाया और मामले में लीपापोती कर दी गई। साथ ही सारी दुनिया का ध्यान इससे बचाव और इसकी वैक्सीन बनाने में लग गया।
ऐसा माहौल बनाया गया कि कोरोना से बचना है तो वैक्सीन लेनी पड़ेगी, वह भी एक नहीं, दो-दो खुराक। आधी से ज्यादा आबादी के वैक्सीन लगने के बाद जब यह वैक्सीन लेने वाले फिर से कोरोना से संक्रमित होने लगे तो वैक्सीन निर्माता कंपनियों और सरकारों ने कहना शुरू किया कि वैक्सीन कोरोना से जिंदा बचने की गारंटी नहीं है।
इसी बीच कोरोना का डेल्टा वर्जन सामने आया और अब ओमिक्रोन की तबाही की आशंका से पूरी दुनिया में दहशत फैल रही है। ऐसे में यह शंका निर्मूल नहीं है कि अलग-अलग मारक क्षमता वाले इन जैविक हथियारों को तैयार कर न सिर्फ इनके प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर चंद कॉरपोरेट घरानों को आर्थिक रूप से समृद्ध किया जा रहा है। वैश्विक स्तर पर एकत्र आंकड़ों से साफ पता चलता है कि दुनिया की सारी दौलत का प्रवाह मुट्ठी भर लोगों की तिजोरियों की ओर ही है।
इस मानवता विरोधी साज़िश की जांच कर इसे रोकने की जिम्मेदारी दुनियाभर में लोकतंत्र के ध्वजवाहक बने घूमने वाले जिन देशों को निभानी चाहिए, वे स्वयं इस साजिश में संलिप्त हैं क्योंकि उनके देश की फार्मा कम्पनियों को मौत की दहशत फैलाकर अकूत दौलत इकट्ठा करने का एक नया जरिया मिल गया है।
जरा सोचिए कि कोरोना ने अब तक दुनियाभर में करोड़ों जिंदगियां निगल ली हैं। जो कोरोना के SARS-CoV-2 से बच गये उन्हें डेल्टा का खौफ और जो डेल्टा से बच गये, उनके सामने अब ओमिक्रोन से बचने की चुनौती। यह क्रम कब और कैसे समाप्त होगा, कोई नहीं जानता। क्या यह नहीं लगता कि यह बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश हो सकती है?
सम्भवतः यह दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी कम करके न्यू वर्ल्ड ऑर्डर कायम करने की साजिश है। जिसके बारे में तरह-तरह की चर्चाएं पिछले कई साल से फिजाओं में तैर रही हैं लेकिन सवाल यही है कि अगर यह साजिश है तो इसका खुलासा कौन करे और कौन इससे मानवता को बचाने के लिए आगे आये?
जवाब है कि फिलहाल तो कोई नहीं। सिर्फ सरकारों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करके, खुद ही अपने आप को बचाने, सुरक्षित रखने का प्रयास करना होगा लेकिन कब तक?
(श्याम सिंह रावत लेखक हैं।)
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