कृषि कानूनः सड़क ही नहीं संसद में भी सरकार को नहीं देते बन रहा है जवाब

मानसून सत्र में ताबड़तोड़ अध्यादेशों को संख्याबल के दम पर क़ानूनी जामा पहनाकर देश के असंख्य मजदूरों, किसानों को कॉर्पोरेट दमन की भट्टी में धकेलने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने देश से झूठ बोलकर कि ‘सभी विपक्षी दल भी सहमत हैं’ शीतकालीन सत्र खा गई, जबकि विपक्ष शीतकालीन सत्र बुलाकर किसान आंदोलन कृषि क़ानून, एलएसी पर चीन की स्थिति, कोरोना वैक्सीनेशन समेत तमाम मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग करता ही रह गया। बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का 16 विपक्षी दलों ने बहिष्कार करके अपने तेवर पहले ही दिखा दिए। अब बजट सत्र में किसान आंदोलन और कृषि क़ानूनों पर चर्चा कराने की विपक्ष की मांग केंद्र सरकार लगातार अनसुना करती चल रही है। वहीं विपक्ष भी लगातार सदन में हंगामा कर रहा है। विपक्ष के हंगामे के बीच शुक्रवार 5 फरवरी को सदन को दो बार स्थगित करने के बाद सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

बजट सत्र होने और कृषि क़ानूनों पर चर्चा के लिए सरकार के राजी न होने के बावजूद 29 जनवरी से शुरू हुए बजट सत्र में दोनों सदनों में कृषि क़ानून, किसान आंदोलन का मुद्दा सदन में गूंजता रहा।

एक नज़र अब तक के सत्र पर
संसद के बजट सत्र के तीसरे दिन 2 फरवरी मंगलवार को लोकसभा की कार्यवाही आरंभ होने के साथ ही कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के सदस्य अध्यक्ष के आसन के निकट आकर नारेबाजी करने लगे। वे तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे। शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के सदस्य भी कृषि कानूनों का विरोध करते नजर आए।

विपक्षी पार्टियों के सदस्यों के हंगामे के कारण लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही आरंभ होने के कुछ मिनट बाद ही शाम पांच बजे तक फिर 7 बजे के लिए स्थगित कर दी गई।

इससे पहले शून्यकाल शुरू होने पर सभापति ने कहा था कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए उन्हें नियम 267 के तहत नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर राय, द्रमुक के तिरुचि शिवा, वाम सदस्य ई करीम और विनय विश्वम सहित कई सदस्यों के नोटिस मिले हैं। इस नियम के तहत सदन का सामान्य कामकाज स्थगित कर जरूरी मुद्दे पर चर्चा की जाती है। सभापति ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर सदस्य अपनी बात कल राष्ट्रपति अभिभाषण पर चर्चा के दौरान रख सकते हैं। उन्होंने सदस्यों से संक्षिप्त में अपनी बात कहने को कहा। सुखेंदु शेखर राय, करीम, विनय विश्वम, शिवा के अलावा राजद के मनोज झा, बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा, सपा के रामगोपाल यादव आदि सदस्यों ने किसानों के आंदोलन का जिक्र किया और इस पर चर्चा कराने की मांग की। सभापति ने शून्यकाल में व्यवस्था देते हुए कहा कि इस मुद्दे को कल राष्ट्रपति अभिभाषण पर चर्चा के दौरान उठाया जा सकता है। कुछ विपक्षी दलों के सदस्य नाराजगी जाहिर करते हुए सदन से वाकआउट कर गए।

5 फरवरी को सदन में कांग्रेस पर तंज कसते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, “कांग्रेस खून से खेती कर सकती है, लेकिन बीजेपी नहीं कर सकती कभी ऐसा।”

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सदन के बाहर तोमर के ‘खून की खेती’ वाले बयान पर पलटवार करते हुए पूछा, “जो गोधरा में हुआ, वो पानी की खेती थी या खून की।” 

हालांकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की खून से खेती वाले बयान को राज्यसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की स्तरहीन भाषा पर वरिष्ठ भाजपा नेता और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को सदन में चर्चा के स्तर, लोगों की नजर में नेताओं की गिरती छवि को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट करके कहा, “सदन में चर्चा का स्तर गिर रहा है, लोगों की नजर में नेताओं की छवि गिर रही है, मेरी सब निर्वाचित सदस्यों से अपील है कि पद की गरिमा और अपने कर्तव्यों का ध्यान रखें।”

इससे पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 5 फरवरी को ही लोकसभा में कहा, “मैंने आज राज्यसभा में देखा विपक्ष कृषि बिलों को काला क़ानून कह रहे हैं। वे यह नहीं बता रहे हैं कि उसमें काला क्या है। क़ानून का विरोध कर रहे हैं तो क़ानून के प्रावधान पर चर्चा होनी चाहिए। मैंने सभी दल और किसानों से कहा है कि सरकार बातचीत करने के लिए तैयार है।”

जबकि 5 फरवरी को राज्यसभा में बोलते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि मैंने यह स्पष्ट किया है कि अगर सरकार संशोधन करने के लिए तैयार है तो इसका मतलब ये नहीं है कि कृषि कानूनों में कोई समस्या है। एक विशेष राज्य के लोग इसको लेकर गलत सूचना देते हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है कि अगर इन कानूनों को लागू किया गया तो अन्य लोग उनकी जमीन पर कब्जा कर लेंगे। उन्होंने कहा कि आप मुझे बताएं कि क्या कॉन्ट्रैक्ट कृषि कानून में एक भी प्रावधान है जो किसी भी व्यापारी को किसी भी किसान की जमीन छीनने की अनुमति देता है।

उन्होंने कृषि कानूनों को जस्टिफाई करते हुए और उस पर अडिग रहने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए राज्यसभा में कहा, “हमारा प्रयास है कि किसानों की आय दोगुनी हो और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान तेजी से बढ़े। ये कृषि कानून भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। उन्होंने कहा कि मैं सदन और किसानों को बताना चाहता हूं कि पीएम मोदी किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

5 फरवरी को बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा ने चर्चा के दौरान कहा कि सदन के भीतर जिस कानून को आप किसानों के हक की बात बता रहे हैं, उनके भले की बात बता रहे हैं, किसान को वो नहीं चाहिए, इसलिए सरकार तीनों कृषि कानूनों को तुरंत वापस ले।

एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी राज्यसभा में कहा कि जिस समय सरकार तीनों कृषि कानून लेकर आई थी, तभी हम ने इस बात की मांग की थी कि इस कानून को सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए। आज यह कानून सेलेक्ट कमिटी में गया हुआ होता तो जो कुछ दिल्ली के बॉर्डर पर हो रहा है, वह आज नहीं होता।

प्रफुल्ल पटेल ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरे बीजेपी नेताओं का नाम लेते हुए कहा कि यह लोग लगातार शरद पवार जी द्वारा राज्यों को पत्र लिखे जाने का जिक्र कर रहे हैं, लेकिन मैं आज यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह ड्राफ्ट बिल था, जिस पर चर्चा करने के लिए राज्यों को लिखा गया था। इस पर चर्चा होती, लेकिन यह बिल कभी भी संसद में नहीं आया। यह पत्र उछाल कर गलत तरीके से बताया जा रहा है कि यूपीए सरकार में शरद पवार इस कानून को लाना चाह रहे थे, जो सरकार अभी लेकर आई है।

वहीं 4 जनवरी को राज्यसभा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा दूसरे दिन बहस की शुरुआत करते हुए RJD सांसद मनोज कुमार झा ने रिहाना के ट्वीट पर सरकार के हाय-तौबा मचाने पर कहा, “देश का लोकतंत्र बहुत मजबूत है। यह किसी के एक ‘ट्वीट’ से कमजोर नहीं होगा। सत्ता पक्ष ने देश में विमर्श को कमजोर किया है।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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