नई दिल्ली। पिछले दिनों से लगातार होते शिक्षा पर हमले को देखते हुए शुक्रवार को छात्र संगठन आइसा ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। संसद मार्च के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित एक मकान के बेसमेंट में तीन छात्रों की मौत का मामला प्रमुखता से शामिल था।
मार्च में दिल्ली की विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। आइसा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में काराकाट क्षेत्र के लोकसभा सांसद राजाराम सिंह, आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, जेएनयू की फैकल्टी मौसमी बासु और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष धनंजय समेत अन्य लोग मौजूद थे।
केंद्रीय शिक्षामंत्री से मांगा इस्तीफा
कार्यक्रम की शुरुआत नारों के साथ की गई। जिसमें देश के मौजूदा हालात, शिक्षा के क्षेत्र में होता निजीकरण और आम लोगों से दूर होती शिक्षा पर छात्राओं ने जमकर नारेबाजी की। इतना ही नहीं दिल्ली में यूपीएससी एसपेरेंट की मौत के मामले में केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान से इस्तीफा की मांग की गयी। साथ ही सभी पैनलिस्ट ने एक स्वेतपत्र जारी किया। जिसमें सभी मांगों को लेकर राष्ट्रपति को देने का ऐलान किया गया।

स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट में तरह-तरह की तख्तियां लेकर आए थे। जिसमें सबसे प्रमुख तौर पर शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान का इस्तीफा, निजी कोचिंग के नियंत्रण के लिए अधिनियम बनाना, कोचिंग माफिया पर नकेल कसना आदि शामिल था।
कार्यक्रम की शुरुआत गाने के साथ हुई। जिसमें जेएनयू की छात्राओं ने भोजपुरी गीत के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
एनटीए की सच्चाई सबके सामने है
इसके बाद काराकाट के सांसद राजाराम सिंह ने अपने भाषण की शुरुआत ही पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट वाले मुद्दे से की। उन्होंने कहा कि इस बात से साबित होता है कि विश्वगुरु की बात करने वाले हमारे प्रधानमंत्री 100 ग्राम के भी नहीं हैं कि इस फैसले को बदलवा सकें।
पीएम वर्ल्ड लीडर होने की बात करते हैं देश की बेटी जो गोल्ड की तरफ बढ़ रही थी उसे साजिश के तहत बाहर कर दिया गया।

देश के संसाधनों को प्राइवेट हाथों में दिया जा रहा है। पहले टेलीकॉम सेक्टर को दिया गया। अब पेट्रोलियम विभाग को दिया जा रहा है। इस तरह से नौजवानों के जीवन के साथ खेला जा रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हाल है। एनटीए से परीक्षाएं कराई जा रही हैं। इसकी सच्चाई तो सबके सामने आ चुकी है। 68 बच्चों को ही फर्स्ट कर दिया है। इनका गोरखधंधा सबके सामने आ गया है। जबकि सरकार इस मामले में एकदम चुप है। एनटीए को निरस्त करना होगा, नहीं तो शिक्षा भी पूरी तरह से निजी हाथों में चली जाएगी।
निजीकरण का फायदा सिर्फ एक दो परिवार को ही हो रहा है। इसलिए जरूरी है कि इस पर लगाम लगाई जाए। यहां तक कि हमारे पूर्वजों ने जो जमीन रेलवे के लिए दी है। उसे हमें वापस किया जाए अगर रेलवे का निजीकरण लगातार जारी रहा तो निजी कंपनियां दोबारा से हम लोगों से जमीन लें और अधिग्रहण का पैसा दें क्योंकि हमारे पूर्वेजों ने सेवाभाव के लिए यह दी थी कॉरपोरेट के लिए नहीं।
संसद में चल रहे मानसून सत्र का जिक्र करते हुए राजाराम सिंह ने कहा कि सत्र के जीरो ऑवर के लिए सवाल भेजने पर वेल्ट पर हमारे सवाल आते ही नहीं हैं पता नहीं कैसे छांट दिए जा रहे हैं। जबकि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले को लेकर भाजपा द्वारा सवाल पूछने के लिए दो बार मौका मिल गया।
प्राइवेट यूनिवर्सिटी और कॉलेज बढ़ रहे हैं
वहीं दूसरी ओर जेएनयू की फैकल्टी मौसमी बासु ने अपनी पूरी बात एनटीए और शिक्षा के निजीकरण पर रखी। उन्होंने कहा कि एनटीए संस्था को इसलिए लगाया गया ताकि सरकार शिक्षा से अपनी जवाबदेही को खत्म कर सके।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में कॉलेज में स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ी है। लेकिन उसमें यह नहीं बताया जा रहा है कि यह संख्या प्राइवेट कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बढ़ रही है। पब्लिक यूनिवर्सिटी और कॉलेज तक तो दूर-दराज के बच्चे पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। जिनके पास पूंजी है बस वही अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं।
उनका कहना है जबसे एनटीए सरकारी परीक्षाएं ले रही है तब से यह देखने और सुनने को मिल रहा है कि पेपर लीक हो गया, एग्जाम कैंसल हो गए या किसी तरह की धांधली हो रही है। इससे पहले जेएनयू में सभी विभागों के लिए एंट्रेस टेस्ट होता था जो देश के अलग-अलग हिस्से में केंद्रीय विद्यालयों में होता था। सभी स्टूडेंट्स आराम से टेस्ट देते थे और एडमिशन होता था। जबकि यह सारा प्रोसेस समय से पूरा हो जाता था।
लेकिन एनटीए के आऩे के बाद से ही सेशन भी लेट शुरु हो गए हैं क्योंकि इनकी परीक्षा में ही हर बार कोई न कोई गड़बड़ी हो जाती है।
जिसके कारण कई स्टूडेंट्स का भविष्य खराब हो रहा है। इसलिए शिक्षा के निजीकरण को रोकना होगा। ताकि देश के कोने-कोने तक शिक्षा को पहुंचाया जाए।
(पूनम मसीह की रिपोर्ट।)
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