अकबरनगर: जब 35 मीटर में ही कुकरैल रिवर फ्रंट तो 500 मीटर दूर पूरे अकबरनगर को क्यों ढहा दिया ?

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यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश के उच्च संवैधानिक पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में अकबरनगर को उजाड़े जाने को लेकर समाजवादी पार्टी द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए पूरे सदन को गुमराह किया। उनकी सरकार और उसका प्रशासनिक अमला लगातार इस मामले में गलतबयानी कर रहा है। मुख्यमंत्री महोदय ने सदन में कहा कि यह बस्ती 1984 में बसी एक अवैध बस्ती थी, इसलिए अतिक्रमण हटाकर इसे खाली करा दिया गया है। अब कुकरैल नाले ने नदी का स्वरूप ग्रहण कर लिया है और लखनऊ के सौन्दर्यीकरण और पर्यावरण के लिए अब उस स्थान पर सौमित्र वन की स्थापना की जा रही है। आखिर अकबरनगर की सच्चाई क्या है?

अकबरनगर लखनऊ शहर में बादशाह नगर रेलवे स्टेशन के सामने बसी हुई हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल एक जीवंत बस्ती थी। इसमें करीब 1800 मकान और डेढ़ सौ के आसपास दुकानें थी। मुस्लिम आबादी 70 फीसदी और हिन्दु आबादी 30 फीसदी थी। यहां 6 पुराने मंदिर, तीन मस्जिदें, तीन मदरसे और करीब 4 विद्यालय थे, जिसमें ईरम मॉडल स्कूल जैसे बड़े विद्यालय भी थे। अकबरनगर 1332 फसली यानी 1925 से ही आवासीय भूमि के बतौर राजस्व रिकार्ड में दर्ज है। इसका पुराना नाम मेहनगर, रहीम नगर था। राज्यपाल अकबर अली के नाम पर इसका नाम अकबरनगर कर दिया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्यपाल कार्यालय एवं लखनऊ विकास प्राधिकरण, बिजली विभाग के अकबरनगर के सम्बंध में तमाम पत्र 70 के दशक के मौजूद हैं। अकबरनगर के निवासी हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, बिजली के बिल का भुगतान करते रहे हैं। यही नहीं अकबरनगर में सांसद, विधायक से लेकर पूर्व सरकारों के प्रतिनिधियों ने विकास कार्य कराए थे।

इस बस्ती को कुकरैल रिवर फ्रंट के डूब क्षेत्र के नाम पर लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद सरकार और प्रशासन द्वारा बुलडोज करके तहस-नहस कर दिया गया। जबकि यहां के सैकड़ों निवासियों की इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रिव्यू पिटीशन पड़ी हुई थी, जिन पर सुनवाई और फैसला आना बाकी था। इसके निवासियों में से कुछ को शहर से 25 किलोमीटर दूर बसंत कुंज प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान दिए गए हैं। जहां सम्मानजनक जीवन जीने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सफाई जैसी न्यूनतम सुविधाओं का भी बुरी तरह अभाव है।

हालत यह है की बेदखली के डेढ़ महीने के दौरान बसंत कुंज में बसे लोगों में 13 लोगों की मौतें हार्ट अटैक, अवसाद से हो चुकी है। एक दर्जी का काम करने वाले नौजवान अजीज ने तो तंगी से परेशान होकर फांसी लगाकर आत्महत्या भी कर ली है। सरकार का यह दावा भी गलत है कि इन लोगों का पर्याप्त पुनर्वास सरकार ने किया है। सच्चाई यह है कि जिन दड़बेनुमा मकानों में लोगों को बसाया गया है। उसका 4 लाख 80 हजार रुपए 15 साल की 3300 रूपए प्रतिमाह की दर से कीमत वसूल की जाएगी। सीएम की यह बात भी सच्चाई से परे है कि कुकरैल नाले ने नदी का स्वरूप ले लिया है। कोई भी जाकर देख सकता है कि यह गंदगी से बजबजाता हुआ नाला आज भी है।

अकबरनगर को तहस-नहस करने के बाद सरकार व प्रशासन का मनोबल बेहद बढ़ा हुआ था और उसने अबरार नगर, पंतनगर, खुर्रम नगर, शिवानी विहार, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, स्कॉर्पियो क्लब, रहीम नगर आदि कुकरैल नाले के किनारे बस्तियां को भी ध्वस्त करने के लिए लाल निशान लगा दिया था। इसके खिलाफ पूरे लखनऊ के नागरिकों के प्रबल विरोध के बाद मुख्यमंत्री ने लोगों से वार्ता की और कहा कि अब इस जगह को तोड़ा नहीं जाएगा और लाल निशान भी मिटा दिए जाएंगे। लेकिन विधानसभा में मुख्यमंत्री अपने इस वादे से भी पलट गए और अब फिर से यह बस्तियां सरकार के निशाने पर आ गई है।

इस दौरान सरकार ने खुद माना कि वह 35 मीटर रिवर बेड में ही रिवर फ्रंट का निर्माण करेगी और 50 मीटर रिवर फ्लड जोन की ना तो उसे कोई आवश्यकता है और ना ही उसका कोई प्रस्ताव है। तब आखिर सवाल उठता है कि जब उसे 35 मीटर में ही कुकरैल रिवर फ्रंट बनाना था तो आखिर नाले से 500 मीटर दूर अकबरनगर की बस्ती को तहस-नहस करके वहां के लोगों की जिंदगी को तबाह करने का काम क्यों किया गया? अभी सरकार पंतनगर, इंद्रप्रस्थ नगर जैसी बस्तियों को उजाड़ने पर क्यों आमादा है?

दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार इस समय रियल एस्टेट कारोबारी और कारपोरेट घरानों की एजेंट बनी हुई है। उनके लिए लैंड पूलिंग करने में सरकार ने सबकुछ झोंक दिया है। इन रियल स्टेट खिलाड़ियों के निशाने पर आस्था की नगरी अयोध्या और वाराणसी रही, जहां शंकराचार्य और धर्म गुरूओं के विरोध के बावजूद प्राचीन मंदिरों को तोड़ा गया और आम नागरिकों की जिंदगी को तबाह कर दिया गया। अब उनके निशाने पर लखनऊ है। हैदर कैनाल के किनारे बसी करीब 6 लाख की आबादी को एक्टीवेटेड रोड के नाम पर उजाड़ने की कार्रवाई जारी है। नजूल की संपत्ति पर बसी रामनगर की बस्ती को खाली कराने की धमकी दी जा रही है।

इतना ही नहीं इस मानसून सत्र में विधानसभा में सरकार ने नजूल संपत्ति कानून सत्ता पक्ष तक के विधायकों के विरोध के बावजूद पास करा दिया था। इस कानून के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में नजूल की भूमि पर बसे हुए सभी लोगों की बेदखली का बड़ा खतरा पैदा हो गया है। आम नागरिकों, व्यापारियों और गरीबों के पुश्तैनी बाजार, कॉलोनियां और बस्तियों की तबाही की हालत पैदा हो गई थी। हालांकि कल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा विधान परिषद् में किए विरोध के बाद सरकार को इसे प्रवर समिति को भेजना पड़ा।

योगी सरकार की इस कारपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ जन प्रतिवाद भी प्रदेश में बढ़ रहा है। योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में आम नागरिकों के घरों पर लगाए लाल निशान के खिलाफ महिलाएं और नागरिक गोलबंद हो रहे हैं। लखनऊ में राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और गणमान्य नागरिकों की लखनऊ बचाओं संघर्ष समिति ने आगामी 6, 9 व 11 अगस्त को कुकरैल नाले के उद्भव वाले अस्ति गांव, रामनगर और हैदर कैनाल से उजाड़ी जा रही, बस्ती छितवापुर पजावा में सम्मेलन करने का फैसला लिया है।

(दिनकर कपूर उप्र वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष हैं।)

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