मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर में मॉब लिंचिंग की एक घटना सामने आयी है। ऐसे समय में जबकि कोरोना पूरी मानवता के लिए जानलेवा बना हुआ है और इस मामले में पूरा देश मुसीबतों से घिरता जा रहा है और उसमें भी बिहार की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है तब इस तरह की सांप्रदायिक घटना का सामने आना कई सवाल खड़े करता है। आपको बता दें कि कोरोना की बढ़त को रोकने के लिए राजधानी पटना में कल से ही लॉकडाउन लागू हो गया है और यह सिलसिला 16 जुलाई तक जारी रहेगा।
मॉब लिंचिंग में मारे गए शख्स का नाम मोहम्मद राशिद है और वह मीनापुर प्रखंड के चतुरी पट्टी पंचायत में स्थित भगवान छपरा गांव का रहने वाला था। इस गांव में हिंदुओं और मुसलमानों की मिश्रित आबादी है। बताया जा रहा है कि इलाके के स्थानीय बीजेपी नेता विधानसभा चुनावों के नजदीक होने के मद्देनजर लगातार सांप्रदायिक तनाव को पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस लिहाज से वे उसी तरह के मुद्दों को उठा रहे है जिससे सांप्रदायिक वोट की फसल को काटा जा सके। इस घटना के सिलसिले में एक खास शख्स विद्यानंद शाह का नाम सामने आ रहा है जो स्थानीय बीजेपी इकाई के नेता हैं। बताया जा रहा है कि घटना से दो दिन पहले राशिद को जान से मारने की धमकी दी गयी थी।

इस बात की पुष्टि घटनास्थल के दौरे पर गयी सीपीआई (एमएल) और इंसाफ मंच की टीम ने भी किया।
जांच टीम ने कहा कि भगवान छपरा गांव में स्थानीय भाजपा नेता विद्यानंद शाह के द्वारा कई बार सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई। 2 दिन पूर्व भी मृतक राशिद को जान से मारने की धमकी दी गई थी लेकिन लोगों ने इसको गंभीरता से नहीं लिया।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने इस सिलसिले में प्रशासन से कई सवाल पूछे हैं। और उसका कहना है कि प्रशासन को इसका जवाब देना ही चाहिए। टीम ने कहा कि रात में अजय कुमार, प्रभात कुमार और मुकुल कुमार द्वारा राशिद को घर से ले जाया गया था। उसका कहना था कि जब हत्या स्थल तुर्की पश्चिमी पुरानी घरारी लाल बाबू चौबे के घर पर राशिद को पकड़ा गया तो इन तीनों लड़कों में से किसी ने राशिद के परिजनों को उसकी सूचना क्यों नहीं दी? या फिर उसके किसी दूसरे परिचित को क्यों नहीं बताया? इसमें एक और सबसे अहम सवाल यह बनता है कि जब पुलिस ने विद्यानंद शाह को पकड़ लिया था तो फिर किसके कहने पर उनको छोड़ दिया गया?
जांच टीम ने इस पूरी घटना पर एक और एफआईआर की मांग की है जिसमें उसका कहना है कि वीडियो फुटेज और आम लोगों के जरिए मिले ब्योरे के हिसाब से धाराएं लगायी जानी चाहिए। साथ ही उसने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
जांच टीम का कहना है कि इस पूरे मामले में स्थानीय पुलिस ऊपरी दबाव में काम कर रही है और वह इस घटना को चोरी और प्रेम प्रसंग का मामला बताकर रफा-दफा कर देना चाहती है। टीम ने इसे बड़ी साजिश करार दिया है।
टीम का नेतृत्व भाकपा (माले) के नगर सचिव सूरज कुमार सिंह और इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष आफताब आलम कर रहे थे। इंसाफ मंच के सचिव इंजीनियर रियाज खान, नूर आलम, मोहम्मद फिरोज टीम के दूसरे सदस्य थे।